कई सप्ताह की कूटनीतिक और कानूनी दबाव के बाद सोथबी नीलामी घर ने बुद्ध से जुड़े प्राचीन रत्नों की प्रस्तावित बिक्री को रद्द कर दिया है और उन्हें भारत को वापस कर दिया है. 334 अवशेषों का समूह, जिसे सामूहिक रूप से पिपराहवा रत्न के रूप में जाना जाता है. यह मूल रूप से उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पिपराहवा में स्थित एक स्तूप में दफन किया गया था.
ऐसा कहा जाता है कि इनमें बुद्ध की मृत्यु के 200 वर्ष बाद लगभग 480 ईसा पूर्व उनके अवशेषों को पुनः स्थापित करने के दौरान अर्पित किए गए प्रसाद शामिल हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रत्नों की वापसी को सांस्कृतिक विरासत के लिए एक खुशी का दिन बताया.
प्रधानमंत्री मोदी ने पोस्ट करके दी जानकारी
पीएम मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि हर भारतीय को इस बात पर गर्व होगा कि भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद स्वदेश लौट आए हैं. ये पवित्र अवशेष भगवान बुद्ध और उनकी महान शिक्षाओं के साथ भारत के घनिष्ठ जुड़ाव को दर्शाते हैं. उन्होंने आगे कहा कि यह हमारी गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है.
A joyous day for our cultural heritage!
It would make every Indian proud that the sacred Piprahwa relics of Bhagwan Buddha have come home after 127 long years. These sacred relics highlight India’s close association with Bhagwan Buddha and his noble teachings. It also… pic.twitter.com/RP8puMszbW
1878 में अंग्रेज इसे ब्रिटेन ले गए थे
इस संग्रह की खोज मूलतः ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारी और शौकिया पुरातत्वविद् विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने पिपराहवा में एक स्थल पर की थी. ब्रिटिश राज ने 1878 के भारतीय खजाना अधिनियम के तहत पेप्पे परिवार की खोज को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन परिवार को 1,800 रत्नों में से पांचवां हिस्सा अपने पास रखने की अनुमति दी गई.
वहीं मुकुट के रत्न कोलकाता के औपनिवेशिक संग्रहालय में चले गए. परिवार ने अपनी कलाकृतियां सोथबी को सौंप दीं. जहां मई के आरंभ में उन्हें हांगकांग में नीलामी के लिए रखा जाना था.
इस संग्रह में भगवान बु्द्ध के अवशेष भी शामिल
संग्रह में मौजूद हड्डियां और राख सियाम (वर्तमान थाईलैंड) के बौद्ध सम्राट राजा चुलालोंगकोर्न को उपहार स्वरूप दी गई थीं. भारत सरकार द्वारा रत्नों को वापस लौटाने की मांग करने तथा कानूनी कार्रवाई की धमकी देने के बाद बिक्री को रद्द कर दिया गया. सरकार ने कहा था कि अवशेषों को बुद्ध के पवित्र शरीर के रूप में माना जाना चाहिए. यह नीलामी अब भी औपनिवेशिक शोषण में शामिल होने जैसा होगा.
इन रत्नों की नीलामी 100 मिलियन हांगकांग डॉलर (9.7 मिलियन पाउंड) की शुरुआती बोली के साथ होनी थी. इनमें हड्डियों के टुकड़े, क्रिस्टल और सोपस्टोन के अवशेष, सोने के आभूषण और गार्नेट, मोती, मूंगा और नीलम जैसे बहुमूल्य पत्थर शामिल थे.
रत्नों की नीलामी की घोषणा के बाद, भारत के संस्कृति मंत्रालय ने सोथबी पर निरंतर औपनिवेशिक शोषण में भाग लेने का आरोप लगाया और कहा कि अवशेषों को पुरातात्विक नमूनों के रूप में नहीं, बल्कि बुद्ध के "पवित्र शरीर" के रूप में माना जाना चाहिए, जो धार्मिक सम्मान के योग्य हैं.
भारत सरकार ने नीलामी घर को दिया था नोटिस
मंत्रालय के कानूनी नोटिस में कहा गया है कि ये अवशेष - जिन्हें 'डुप्लिकेट रत्न' कहा गया है - भारत और वैश्विक बौद्ध समुदाय की अविभाज्य धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत हैं. उनकी बिक्री भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों का भी उल्लंघन करती है.
विलियम क्लैक्सटन पेप्पे के वंशज क्रिस पेप्पे ने नीलामी का बचाव करते हुए तर्क दिया कि यह बौद्धों को अवशेष हस्तांतरित करने का सबसे उचित और पारदर्शी तरीका था. उन्होंने कहा कि ये रत्न भौतिक अवशेष नहीं थे, बल्कि बाद के काल के चढ़ावे थे तथा उनका स्वामित्व कानूनी रूप से निर्विवाद था.
सोथबी की वेबसाइट पर एक पोस्ट में, श्री पेप्पे ने कहा कि उन्हें और उनके दो चचेरे भाइयों को 2013 में ये अवशेष विरासत में मिले थे और उन्होंने उनके ऐतिहासिक संदर्भ में शोध शुरू किया.
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