2 साल से तिरपाल में चल रही क्लासेज, हाई टेंशन वायर और जर्जर इमारत के बीच खतरे में भविष्य

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यूपी में सरकारी स्कूलों की हालत को सुधारने के लिए ऑपरेशन कायाकल्प जारी है लेकिन इस बीच में कुछ तस्वीरें ऐसी आ जाती हैं जो यह साबित करती हैं कि कुछ जगह कारवाई केवल कागजी है. ऐसा ही एक उदहारण लखनऊ के काकोरी स्थित अपर प्राइमरी स्कूल महीपतमऊ का है, जहां दो वर्ष से तिरपाल के नीचे कक्षाएं चल रही हैं. स्कूल का भवन 10 साल से जर्जर है. स्कूल के ऊपर से हाईटेंशन लाइन गई है. शिक्षकों ने बीईओ से लेकर बीएसए तक को कई शिकायती पत्र भेजे, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की और न हाईटेंशन लाइन हटवाने का प्रयास किया. 

टीचर ने पैसे जोड़कर लगवाएं छप्पर
जर्जर भवन के ढहने और हाईटेंशन लाइन के डर से शिक्षकों ने खुद के खर्च से बांस के टट्टर और तिरपाल से तीन अस्थायी कक्षाएं बनवाई. यहां की 4 टीचर्स ने अपने पैसे जोड़कर 25 हजार रुपये इकट्ठा किए और 4 छप्पर डलवाए जिससे बच्चों की पढ़ाई न रुकने पाए. टीचर्स ने आज तक से कहा यह सब हमारे बच्चों की तरह ही तो हैं इनकी सुरक्षा और शिक्षा दोनों हमारे ही दायित्व हैं. 

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दीवारों और छतों में का उखड़ रहा प्लास्टर
25 जुलाई को राजस्थान में एक सरकारी स्कूल की घटना के बाद बीएसए राम प्रवेश ने जर्जर स्कूलों में कक्षाएं न संचालित करने का आदेश जारी किया था, लेकिन जर्जर स्कूलों की मरम्मत के सम्बंध में कोई कदम नहीं उठाए. काकोरी के महीपतमऊ में वर्ष 2008 में अपर प्राइमरी स्कूल का नया भवन बना था. तालाब के किनारे बने स्कूल के कमरों में छह वर्ष बाद ही सीलन आने दीवारों और छतों में दरारें पड़ने लगीं और प्लास्टर उखड़ने लगा. 

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शिक्षकों ने निर्माण पर सवाल भी उठाएं
इतने कम समय स्कूल भवन जर्जर होने पर ब्लॉक के कई शिक्षकों ने निर्माण पर सवाल उठाए इसकी शिकायत भी हुई, लेकिन कुछ दिन बाद ‌मामला शांत हो गया. वर्ष 2015 में अभिभावकों के दबाव में स्कूल के शिक्षकों ने सामूहिक रूप से भवन की मरम्मत के लिए विभागीय अधिकारियों को पत्र लिखा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. निजी ठेकेदार ने मरम्मत में 50 हजार रुपये का खर्च बताया. रुपये न मिलने पर मरम्मत नहीं हो पाई.

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स्कूल में बच्चों की घटी संख्या
स्कूल में कक्षा छह, सात और आठ के 113 बच्चे इन्हीं कक्षाओं में पढ़ाई कर रहे है. स्कूल में चार शिक्षक और दो अनुदेशक तैनात हैं. जर्जर भवन के चलते स्कूल में बच्चों की संख्या घट गई है. पहले यह संख्या 117 थी. अभिभावकों ने दूसरे स्कूल में दाखिला करा दिया है. जर्जर स्कूल भवन किसी समय ढह सकता है. ऊपर से हाईटेंशन लाइन गई है. शिक्षकों और बच्चों ने बताया कि तेज बारिश में पानी की बौछारें कक्षाओं के भीतर आती है.

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बांस के टट्टर से बनवाई गई क्लासेज
तिरपाल से भी पानी टपकने लगता है. कक्षाओं में पानी भर जाता है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती है. गर्मी, सर्दी और बारिश में बच्चे तिरपाल के नीचे पढ़ाई करने के लिए मजबूर है. कई शिकायतों के बावजूद विभागीय अधिकारियों ने मरम्मत नहीं कराई. भवन के ज्यादा जर्जर होने पर शिक्षकों ने ग्रामीणों की मदद से बांस के टट्टर से तीन कक्षाएं बनवाईं. अब इन्हीं कक्षाओं में बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. शिक्षकों ने भवन की मरम्मत के लिए बीईओ से लेकर बीएसए को कई पत्र भेजे, लेकिन अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली.

एक से डेढ़ महीने में व्यवस्था ठीक करने का आदेश
स्कूल मामले ने जब BSA लखनऊ राम प्रवेश से आज तक ने सवाल किया तो वह सवालों से बचते नजर आए और कहा कि वह बयान देने को अधिकृत नहीं है. इस पर सवाल किया गया कि इतने पत्र मिलने के बाद कार्रवाई नहीं की कार्रवाई तो कर सकते थे इस पर गाड़ी में बैठकर, शीशा बंद कर, ऐसी स्टार्ट कर  गए. SDM सदर भी मामले की जांच के लिए लखनऊ के DM के साथ स्कूल का निरीक्षण करने पहुंचे. मनोज सिंह, SDM सदर, ने आज तक को बताया यहां अभी निरीक्षण डीएम लखनऊ के द्वारा भी किया गया है. उन्होंने निर्देश दिया है कि जो भी बच्चे शहर में पढ़ रहे हैं उन्हें शिफ्ट किया जाए और अगले एक से डेढ़ महीने में व्यवस्था उनके लिए बेहतर कर दी जाएगी.

क्लास कहीं और शिफ्ट करने का आदेश 
मनोज सिंह ने कहा कि पहले प्राथमिकता है कि बच्चों की व्यवस्था सही हो जाए जिससे वह सही से बैठ पाए. यहां कमियां तो पाई गई है बच्चों को शहर में पढ़ाया जा रहा है. इस बात को इग्नोर नहीं किया जा सकता है. वहीं,  पर एक जगह एक एक कक्षा चल सकती है वहां बैठाया जाएगा तब तक और शिफ्ट में तब तक बच्चों की पढ़ाई होगी और एक से डेढ़ महीने में पूरी व्यवस्था की जाएगी. 

क्या बोले कैबिनेट मंत्री?

यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा जो भी अफसर इसमें शामिल है उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। जनता का पैसा और उनका भविष्य पर उनका हक है. गरीब के टैक्स से सब चलता है. ज्यादातर गरीबों के बच्चे प्राइमरी स्कूल में पढ़ते हैं. 70 साल हो गया है उसके बाद भी छप्पर के नीचे बच्चे पढ़ रहे हैं. व्यवस्था के शिकार बच्चे हैं. अभी राजस्थान में घटना हुई है विपक्ष को मुद्दा मिल गया. कितने नए विद्यालय बन गए आखिर वह क्यों नहीं बना छप्पर के नीचे क्यों पढ़ाई हो रही है.

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