JNU से सीवान तक मचा था बवाल... बिहार की हिंसक राजनीति का काला अध्याय है चंद्रशेखर हत्याकांड

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Chandrashekhar Prasad Murder Case: 31 मार्च 1997 का दिन था. बिहार के सीवान की एक सड़क उस दिन खून से रंग गई थी, क्योंकि उस दिन जेएनयू (JNU) के पूर्व छात्रनेता और CPI (ML) कार्यकर्ता चंद्रशेखर प्रसाद उर्फ चंदू की दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई थी. यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि अपराध और राजनीति के काले गठजोड़ का बेरहम चेहरा था.

सीवान के जे.पी. चौक पर गोलियों की तड़तड़ाहट ने न केवल चंदू की आवाज को सदा के लिए खामोश किया था, बल्कि पूरे देश में छात्र आंदोलन की आग को भी हवा दे दी थी. ताकतवर नेताओं के साये में हुआ यह हत्याकांड बिहार की हिंसक सियासत का काला अध्याय बन गया था. 'क्राइम कथा' में पेश है सत्ता, अपराध और बलिदान की ऐसी कहानी, जो बिहार के इतिहास में सदियों याद रखी जाएगी.

कौन थे चंद्रशेखर प्रसाद उर्फ चंदू?

चंद्रशेखर प्रसाद का जन्म 20 सितंबर 1964 को बिहार के सीवान जिले के एक साधारण परिवार में हुआ था. लोग प्यार से उन्हें चंदू कहते थे. आठ साल की उम्र में उनके पिता जीवन सिंह का निधन हो गया. जिसने उनके जीवन को चुनौतीपूर्ण बना दिया. सैनिक स्कूल, तिलैया में पढ़ाई के बाद उनका चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में हो गया. लेकिन उनका मन सैन्य सेवा में नहीं रमा. उनकी असली मंजिल थी सामाजिक न्याय और जनसेवा. पटना विश्वविद्यालय और फिर JNU में पढ़ाई ने उनके क्रांतिकारी विचारों को पंख लगा दिए. उन्होंने एक बार कहा था, “मेरी महत्वाकांक्षा है भगत सिंह की तरह जीना और चे ग्वेरा की तरह मरना.”  

JNU का उभरता सितारा

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में चंद्रशेखर ने छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई. उनकी वाकपटुता, सामाजिक मुद्दों पर गहरी समझ और निर्भीकता ने उन्हें छात्रों का चहेता बना दिया. वे CPI (ML) लिबरेशन से जुड़े और सामंती व्यवस्था, गरीबी और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई. JNU में उनके नेतृत्व में कई आंदोलन हुए, जो बिहार की हिंसक राजनीति को चुनौती देते थे. उनकी लोकप्रियता ने सिवान के सामंती ताकतों को असहज कर दिया. चंदू का नाम जल्द ही सिवान की गलियों तक गूंजने लगा था.  

सिवान: अपराध और राजनीति का गढ़

1990 के दशक में सिवान बिहार का एक ऐसा जिला था, जहां अपराध और राजनीति का गठजोड़ खुलेआम फल-फूल रहा था. तत्कालीन जनता दल (बाद में RJD) की सरकार में मोहम्मद शहाबुद्दीन जैसे नेता सिवान में अपनी ताकत का दुरुपयोग करते थे. CPI (ML) कार्यकर्ताओं पर हमले और हत्याएं आम थीं. 1990 से 1996 के बीच 70 से अधिक CPI (ML) कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. चंद्रशेखर ने इस हिंसा के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई, जिसने उन्हें शहाबुद्दीन जैसे प्रभावशाली नेताओं का निशाना बना दिया.

चंद्रशेखर की सिवान वापसी  
JNU में अपने कार्यकाल के बाद, चंद्रशेखर ने पूर्णकालिक CPI (ML) कार्यकर्ता के रूप में सिवान लौटने का फैसला किया. यह फैसला आसान नहीं था, क्योंकि सिवान में सामंती और अपराधी ताकतें CPI (ML) के खिलाफ हिंसक अभियान चला रही थीं. चंद्रशेखर ने गरीबों, मजदूरों और दलितों के हक के लिए सिवान की गलियों में सभाएं शुरू कीं. उनकी बेबाकी और जनता से जुड़ाव ने उन्हें स्थानीय लोगों में लोकप्रिय बना दिया. लेकिन यह लोकप्रियता उनकी जान की दुश्मन बन गई.

गोलियों की आवाज़ से गूंज उठा था जे.पी. चौक

31 मार्च 1997 का दिन सीवान के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है. उस दिन जेपी चौक पर CPI (ML) की हड़ताल के समर्थन में एक नुक्कड़ सभा हो रही थी. चंद्रशेखर उस सभा को संबोधित कर रहे थे. अचानक कुछ मोटरसाइकिल सवार हमलावर वहां पहुंचे और गोलीबारी शुरू कर दी. हर तरफ अफरा तफरी मच गई. लोग इधर-उधर भागने लगे. हमलावरों का निशाना थे चंद्रशेखर. इस हमले में हमलावरों ने उन्हें निशाना बनाकर फायरिंग की.

इस हमले में चंद्रशेखर और उनके सहयोगी श्याम नारायण यादव और एक राहगीर भुटेली मियां को गोलियों से भून दिया गया. पूरे बाजार में हड़कंप मचा था. यह हत्याकांड दिन-दहाड़े हुआ, जिसने सीवान की सड़कों को खून से रंग दिया था. चंद्रशेखर और उनके साथी श्याम वहीं मंच पर खून से लथपथ हालत में पड़े थे. उनके जिस्म ठंडे पड़ते जा रहे थे. हर तरफ खून फैल रहा था. हमलावर फरार हो चुके थे. इस वारदात ने पूरे देश को सन्न कर दिया था.  

शहाबुद्दीन पर लगा था हत्या का इल्जाम

मामला सियासी तौर पर भी हाई प्रोफाइल था, लिहाजा पुलिस ने तेजी से मामले की छानबीन शुरू की. CPI (ML) ने इस हत्याकांड के लिए तत्कालीन RJD सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को जिम्मेदार ठहराया था. इसी वजह से एफआईआर (FIR) में शहाबुद्दीन सहित छह लोगों के नाम दर्ज किए गए.

दरअसल, चंद्रशेखर की बढ़ती लोकप्रियता और सामंती ताकतों के खिलाफ उनकी बेबाक आवाज शहाबुद्दीन के लिए खतरा बन रही थी. कहा जाता है कि यह हत्याकांड बाहुबली शहाबुद्दीन के इशारे पर अंजाम दिया गया था. हालांकि, CBI ने बाद में सबूतों के अभाव में शहाबुद्दीन को चार्जशीट से बाहर रखा, जिसने कई सवाल खड़े किए थे.  

विवादों में आई थी CBI जांच

चंद्रशेखर प्रसाद हत्याकांड पर बवाल बढ़ते देख, इस मामले की जांच CBI को सौंप दी गई थी, लेकिन जांच प्रक्रिया विवादों से घिरी रही. CBI ने विशेष अदालत में शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया, जिसे CPI(ML) और चंद्रशेखर के समर्थकों ने पक्षपातपूर्ण माना था. गवाहों पर दबाव और सबूतों के गायब होने की शिकायतें भी सामने आईं थी. इस जांच ने बिहार में अपराध और राजनीति के गठजोड़ की गहरी जड़ों को भी बेनकाब कर दिया था. हालांकि, कई लोगों का मानना था कि सत्ता के दबाव में जांच को प्रभावित किया गया था.  

कोर्ट का फैसला और अधूरा इंसाफ

इस हत्याकांड के कुछ महीने बीत जाने के बाद भी छात्रों का बवाल और आंदोलन धीमा नहीं पड़ा था. लेकिन लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, साल 2012 में निचली अदालत ने इस हत्याकांड से जुड़े चार अभियुक्तों ध्रुव प्रसाद जायसवाल, इलियास वारिस, शेख मुन्ना और रुसतम खान को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. साल 2019 में पटना हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार भी रखा. लेकिन मुख्य साजिशकर्ता के रूप में शहाबुद्दीन का नाम जांच से बाहर हो जाना, चर्चाओं में रहा. चंद्रशेखर के समर्थकों के लिए यह फैसला अधूरा इंसाफ था, क्योंकि उनके मुताबिक असली गुनहगार को सजा नहीं मिली थी.  

देशव्यापी छात्र आंदोलन

चंद्रशेखर प्रसाद की हत्या ने देशभर के छात्रों में आक्रोश की लहर पैदा कर दी थी. दिल्ली, पटना, लखनऊ और अन्य शहरों में हजारों छात्र सड़कों पर उतर आए थे. JNU में चंद्रशेखर के साथियों ने इस हत्याकांड को बिहार की हिंसक राजनीति का प्रतीक बताया था. दिल्ली में बिहार भवन पर हुए प्रदर्शन ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा. इन प्रदर्शनों ने चंद्रशेखर के विचारों और उनके बलिदान को अमर कर दिया.  

प्रदर्शन के दौरान हिंसक टकराव

दिल्ली में बिहार भवन पर हुए प्रदर्शन के दौरान स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी. छात्रों ने बिहार सरकार पर हत्याकांड में संलिप्तता का आरोप लगाया. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बहनोई साधु यादव पर हमला हो गया, जिसके लिए अलग से केस दर्ज किया गया. इस प्रदर्शन ने बिहार सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था और चंद्रशेखर की हत्या को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया था.  

चंद्रशेखर प्रसाद की विरासत

हत्या ने चंद्रशेखर को एक शहीद के रूप में अमर कर दिया. उनकी विचारधारा और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष आज भी युवाओं को प्रेरित करता है. JNU में उनकी याद में हर साल आयोजन होते हैं, और सीवान में उनकी प्रतिमा लोगों के लिए प्रेरणा का केंद्र है. CPI (ML) ने उनके बलिदान को अपनी लड़ाई का हिस्सा बनाया. चंद्रशेखर की कहानी बिहार में बदलाव की मांग का प्रतीक बन गई.  

पार्टी को मिली थी नई ताकत

चंद्रशेखर प्रसाद की हत्या ने बिहार में अपराध और राजनीति के गठजोड़ को उजागर किया. मोहम्मद शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली नेताओं का दबदबा और खुलेआम हिंसा उस दौर की कड़वी सच्चाई थी. इस हत्याकांड ने न केवल सिवान, बल्कि पूरे बिहार में व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा भड़काया. इसके बाद CPI (ML) लिबरेशन ने चंद्रशेखर की हत्या को सामंती और अपराधी ताकतों के खिलाफ अपनी लड़ाई का प्रतीक बनाया. पार्टी ने सिवान में अपनी सक्रियता बढ़ाई और शहाबुद्दीन जैसे नेताओं के खिलाफ अभियान चलाया. चंद्रशेखर का बलिदान पार्टी के लिए नई ऊर्जा का स्रोत बना. उनकी हत्या ने संगठन को गरीबों और शोषितों के हक की लड़ाई में और मजबूत किया.  

सीवान में आज भी जिंदा हैं चंदू की यादें

बिहार के सीवान जिले में आज भी चंद्रशेखर प्रसाद का चर्चा होता है. उनकी यादें जिंदा हैं. उनकी हत्या के बाद वहां के लोग राजनीतिक हिंसा और अपराध के खिलाफ जागरूक हुए. हालांकि, अपराध-राजनीति का गठजोड़ पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, लेकिन चंद्रशेखर जैसे युवा नेताओं ने जनता में बदलाव की चेतना जगाई. JNU से सीवान तक, उनकी कहानी अन्याय के खिलाफ साहस और बलिदान की अमर गाथा है.

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