MP: बीजेपी अध्यक्ष के लिए नाम कइयों का चला, मगर हेमंत खंडेलवाल पर ही मुहर क्यों?

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मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी को नया अध्यक्ष मिल गया है. सांसद विष्णुदत्त शर्मा की जगह अब विधायक हेमंत खंडेलवाल ने ले ली है. सत्तारूढ़ दल के मुखिया के नाम की घोषणा से पहले राजनीतिक गलियारों में नरोत्तम मिश्रा, दुर्गादास उइके, सुमेर सिंह सोलंकी और अर्चना चिटनीस जैसे नाम चर्चा में थे. लेकिन बुधवार को आलाकमान ने बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल को नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में चुन लिया. आखिरकार लो प्रोफाइल और पर्दे के पीछे रहने वाले हेमंत खंडेलवाल को पार्टी का झंडा थमाने के पीछे क्या वजह थी? चलिए जानते हैं पूरी कहानी...

दरअसल, इसके पीछे मुख्य कारण है क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन को बनाए रखना. इस बीच, आपको बता दें कि हेमंत खंडेलवाल लाइमलाइट से काफी दूर रहने वाले व्यक्ति हैं. शायद बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि साल 2020 में जब कमलनाथ सरकार गिरी थी, तब उसमें हेमंत खंडेलवाल की भी अहम भूमिका थी. लेकिन उनका नाम कभी सामने नहीं आया. पर्दे के पीछे रहकर काम करने के लिए हेमंत खंडेलवाल जाने जाते हैं. 

हेमंत खंडेलवाल वास्तव में हैं कौन? 
वे बैतूल से विधायक हैं और एक बार सांसद रह चुके हैं. उनके पिता 2008 में चार बार सांसद रहे थे. उनके निधन के बाद उपचुनाव में हेमंत खंडेलवाल पहली बार सांसद बने. इसके बाद उन्होंने दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक भी बने. मूल रूप से उनकी व्यावसायिक पृष्ठभूमि है. हमारे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, वे शोर-शराबे से दूर रहते हैं. व्यावसायिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ उनकी राजनीति में भी लंबी मौजूदगी रही है. खासतौर पर वे मध्य प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं. इसके अलावा, बैतूल जिला अध्यक्ष का पद भी उनके पास रहा है. 

संघ और संगठन में मजबूत पकड़

जाहिर है, संगठन में उनकी मजबूत पकड़ है. बताया जाता है कि हेमंत खंडेलवाल का शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर झुकाव रहा है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि बैतूल और नागपुर के बीच ज्यादा दूरी नहीं है. जाहिर है, विचारधारा का प्रभाव पड़ता है और हेमंत खंडेलवाल का झुकाव शुरू से ही आरएसएस की ओर रहा. जब वे राजनीति में आए, तो उन्होंने इस झुकाव को अपनी ताकत बनाना शुरू किया. संघ में उनकी पैठ बढ़ती गई, कई अहम जिम्मेदारियां उन्हें मिलीं और अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद भी प्राप्त हुआ है. 

पिता रह चुके दिग्गज नेता

उनके पिता विजय कुमार खंडेलवाल मध्य प्रदेश की बैतूल लोकसभा सीट से 11वीं, 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा में सांसद रहे थे. 2008 में उनके निधन के बाद उपचुनाव हुआ और हेमंत खंडेलवाल को टिकट मिला, जिसके बाद वे जीत गए.

कभी नहीं मिल पाया था टिकट

सांसद का कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, लेकिन उस समय उन्हें बैतूल से टिकट नहीं दिया गया. सोचिए, जिस व्यक्ति को आज भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, उसे एक समय बैतूल से विधानसभा का टिकट नहीं मिला था. उस समय हेमंत खंडेलवाल ने न तो सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर की, न आलाकमान से शिकायत की, न ही कोई ऐसी बयानबाजी की, जिससे उनकी छवि खराब हो. वे अपनी व्यावसायिक पृष्ठभूमि के काम में लगे रहे और साथ ही राजनीति में सक्रिय रहे. 

2024 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी 28 सीटों पर जीती थी. छिंदवाड़ा की सीट जीतना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर थी. इमरजेंसी के बाद भी, जब इंदिरा गांधी की सरकार बुरी तरह हारी थी, तब भी छिंदवाड़ा कांग्रेस के पास थी. इसीलिए माना जाता था कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ को हराना बहुत मुश्किल है. लेकिन 2024 में यह कमाल हुआ और छिंदवाड़ा में भाजपा का सांसद बना. इस तरह 29 की 29 सीटें भाजपा ने जीतीं. इसमें हेमंत खंडेलवाल का भी योगदान था. उन्हें 29 लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदारों के चयन की जिम्मेदारी दी गई थी.

चुनाव समिति के संयोजक के रूप में उन्होंने उम्मीदवारों का चयन किया, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा ने सभी सीटें जीतीं. इससे हेमंत खंडेलवाल का कद और बढ़ गया. जब उनका विधायकी का टिकट कटा था, तब भी उन्होंने नाराजगी जाहिर नहीं की. इसके बाद 2024 में उन्हें चुनाव समिति का संयोजक बनाया गया. उन्होंने जो काम किया, उससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी. 

इस बीच, एक ऐसा घटनाक्रम भी हुआ, जो बहुत कम लोग जानते हैं. 2020 में जब कमलनाथ सरकार गिरने वाली थी, तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी विधायक और मंत्री बेंगलुरु गए थे. उस समय हेमंत खंडेलवाल संगठन चुनाव प्रभारी थे. अरविंद भदौरिया, नरोत्तम मिश्रा और संजय पाठक जैसे नेताओं के नाम सामने आए, लेकिन हेमंत खंडेलवाल ने भी पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई. वे बेंगलुरु गए और दिल्ली में आलाकमान व संघ के नेताओं तथा सिंधिया के करीबी विधायकों व मंत्रियों के बीच पुल का काम किया. इस वजह से उनकी विश्वसनीयता बढ़ी. 

2024 के लोकसभा चुनाव में बतौर चुनाव समिति संयोजक उनके उम्मीदवारों के चयन से मिली सफलता ने उनकी स्थिति और मजबूत की. मध्य भारत से आने वाले हेमंत खंडेलवाल को चुने जाने में मध्य भारत का भी योगदान है. 

जातिगत समीकरणों के हिसाब से देखें तो मध्य प्रदेश में बिहार और उत्तर प्रदेश जैसी जातिगत राजनीति नहीं होती, लेकिन भाजपा की संगठनात्मक मशीनरी हर जाति को अपने चुनावी तरीके से देखती और नापती है. मध्य प्रदेश में कैबिनेट मंत्रियों में भी जातियों का वर्चस्व साफ दिखता है. आज मध्य प्रदेश सरकार के बड़े पदों पर हर जाति के लोग मौजूद हैं. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ओबीसी वर्ग से हैं. मध्य प्रदेश में ओबीसी की आबादी 50% से ज्यादा मानी जाती है. इससे पहले शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती और बाबूलाल गौर भी ओबीसी थे. ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए मुख्यमंत्री का पद इस वर्ग को दिया गया. 

उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा दलित समाज से और राजेंद्र शुक्ल ब्राह्मण समाज से हैं. विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर क्षत्रिय समाज से और राज्यपाल मंगूभाई पटेल आदिवासी वर्ग से हैं. इस तरह भाजपा ने जातिगत सोशल इंजीनियरिंग को पूरा किया. प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वैश्य समाज से हेमंत खंडेलवाल के चयन ने इस ढांचे को और मजबूत किया. क्षेत्रीय संतुलन की बात करें तो बैतूल आदिवासी बहुल इलाके के पास है और यह सीट भी आदिवासी बहुल है. वहां से वैश्य उम्मीदवार को पहले विधायक और फिर प्रदेश अध्यक्ष बनाना जातिगत समीकरण के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन को भी दर्शाता है. 

मध्य प्रदेश की कैबिनेट में महाकौशल, विंध्य, बुंदेलखंड, मालवा-निमाड़ जैसे क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व है. मालवा से मुख्यमंत्री मोहन यादव, कैलाश विजयवर्गीय, महाकौशल से राकेश सिंह, प्रहलाद पटेल, बुंदेलखंड से गोविंद सिंह राजपूत, ग्वालियर-चंबल से प्रद्युमन सिंह तोमर, विंध्य से राजेंद्र शुक्ल और निमाड़ से विजय शाह जैसे नेता हैं. लेकिन मध्य भारत, जिसमें छिंदवाड़ा, बैतूल और पांढुर्ना जैसे क्षेत्र आते हैं, से कोई बड़ा चेहरा नहीं था. हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मध्य भारत की भागीदारी सुनिश्चित की गई है. 

मध्य प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का एक साथ होना लंबे समय बाद हुआ है. अब तक सांसद ही प्रदेश अध्यक्ष बनते रहे हैं, लेकिन विधायक को यह जिम्मेदारी देना नया है. इससे विधानसभा सत्र में भाजपा की मजबूती बढ़ेगी और यह एक सकारात्मक संदेश देगा. 

विंध्य, बुंदेलखंड, महाकौशल और मालवा-निमाड़ की भागीदारी पहले से थी, अब मध्य भारत की भी हो गई है. कुल मिलाकर, हेमंत खंडेलवाल का प्रदेश अध्यक्ष के रूप में चयन सिर्फ एक नियुक्ति नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा और आरएसएस की राजनीतिक और सामाजिक संतुलन की रणनीति का हिस्सा है. 

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