"मैंने उनको ज्ञान देना शुरू कर दिया...', जयशंकर ने सुनाई अपनी UPSC इंटरव्यू की कहानी, बताया क्या था सवाल

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने यूपीएससी के दिनों को याद किया है. उन्होंने उस दिन की कहानी बताई है जब उन्हें UPSC का इंटरव्यू देना था. ये तारीख थी 21 मार्च 1977. इक्कीस मार्च कोई सामान्य तिथि नहीं थी. ये वो दिन था जब इंदिरा गांधी ने देश से आपालकाल हटाने की घोषणा की थी. इमरजेंसी के दौरान हुए चुनाव के नतीजे इसी दिन आ रहे थे.

इसी सुबह को यूपीएससी का मेन्स पास कर चुके 22 साल के एस जयशंकर इंटरव्यू देने के लिए पहुंचे थे. 

संकल्प फाउंडेशन में सिविल सेवा में प्रवेश पाने वाले नए बैच के उम्मीदवारों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने यूपीएससी परीक्षा को 'अग्नि परीक्षा' के समान बताया और कहा कि इन सेवाओं के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए यह दुनिया की एक "बहुत ही अनोखी" परीक्षा प्रणाली है. 

70 साल के हो चुके जयशंकर ने उस दिन को याद करते हुए कहा, "मेरा साक्षात्कार 21 मार्च, 1977 को हुआ था. उसी दिन आपातकाल हटा लिया गया था, मैं शाहजहां रोड पर साक्षात्कार के लिए गया. उस सुबह सबसे पहले मैं वहां पहुंचा."

जयशंकर ने कहा, "मैं पॉटिकल साइंस का छात्र था, पहला सवाल जो उन्होंने मुझसे पूछा... अच्छा आप पॉलिटिकल साइंस पढ़ते हैं, कृपया हमें बताइए कि इस चुनाव में हुआ क्या?"

विदेश मंत्री ने कहा कि, 'मुझे इस इंटरव्यू से दो सबक मिले. पहला- बहुत वरिष्ठ लोग, जिनमें कई सरकार में सचिव रह चुके थे, कुछ राजनीति विज्ञान के पुरोधा थे, बौद्धिक थे. ये लोग 22 साल के एक छात्र से पूछ रहे हैं कि भाई हमें समझाओ कि इस चुनाव में हुआ क्या?'

बता दें कि 21 महीने का आपातकाल 25 जून 1975 को लगाया गया था और 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया था. इस चुनाव में विपक्षी नेताओं का गठबंधन जनता पार्टी विजयी हुई. इंदिरा को हार का मुंह देखना पड़ा था.

उन्होंने आगे कहा कि, "यहां मैं लकी था. भारत के लोग राजनीति में रूचि रखते हैं और अगर आप जेएनयू में हैं तो आप और भी ज्यादा रूचि रखते हैं. इसके अलावा मैं राजनीति विज्ञान का छात्र था. हमने 77 के चुनावी अभियान में हिस्सा लिया था. हमनें आपातकाल को हराने के लिए काम किया था. मैं भूल ही गया कि मैं इंटरव्यू दे रहा हूं, मैंने उनको 'ज्ञान' देना शुरू कर दिया. जबकि मैं 22 साल का ही था."

विदेश मंत्री ने कहा कि दूसरी बात जो मैंने वहां सिखी वो ये थी कि उन्होंने इस "लुटियंस बुलबुले" के बारे में सीखा.

विदेश मंत्री ने साक्षात्कार के अनुभव को याद करते हुए कहा, "ये लोग सचमुच हैरान थे, उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह चुनाव परिणाम आया है, जबकि हम आम छात्र देख सकते थे कि आपातकाल के खिलाफ एक लहर थी."

उन्होंने कहा कि उस दिन से उन्होंने दबाव में संवाद करना और लोगों को ठेस पहुंचाए बिना ऐसा करना सीखा.

केंद्रीय मंत्री ने कहा, "आप अपनी बात कैसे रखते हैं, कैसे समझाते हैं. यह एक बात थी. दूसरी बात यह थी कि महत्वपूर्ण लोग शायद एक बुलबुले में रह रहे हैं और उन्हें यह एहसास नहीं है कि देश में क्या हो रहा है."

केंद्रीय मंत्री ने अपने संबोधन में यह भी पूछा कि एक सफल लोकतंत्र का आकलन करने का पैमाना क्या है? यह रिकॉर्ड मतदान या मतदान प्रतिशत से नहीं होता है. 

जयशंकर ने कहा, "मेरे लिए एक सफल लोकतंत्र वह है जब पूरे समाज को अवसर दिया जाता है; तभी लोकतंत्र काम कर रहा होता है. उन्हें अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन यह पूरे समाज की ओर से कुछ लोगों द्वारा अपनी बात कहने का अधिकार नहीं है."
 

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