भगवान शिव के परम दिव्यधाम अमरनाथ की यात्रा जारी है. भक्तों-श्रद्धालुओं का जत्था उस ओर बढ़ चला है और हिमालय के बर्फीले रास्तों और घाटियों से गुजरता यहां का यात्रा मार्ग जय बाबा बर्फानी के जयकारों से गूंज रहा है. अमरनाथ को लेकर एक भ्रम की स्थिति हमेशा रही है कि इसका जिक्र पुराणों में कहां मिलता है और इसे किसने खोजा.
कई जगहों पर ऐसा दावा किया जाता है कि एक मुस्लिम गड़रिये बूटा मलिक ने इस हिमलिंग गुफा की खोज की थी और इसके बाद ही यात्रा शुरू हुई. कहा जाता है कि यह खोज उसने 16वीं सदी में की थी, लेकिन यह महज एक दावा है और इसका विरोध होता रहा है. कई इतिहासकार और विद्वान इसे गलत प्रचार बताते रहे हैं और इसके संबंध में उनके तर्क भी मजबूत लगते हैं.
आइन-ए-अकबरी में अमरनाथ का जिक्र
अमरनाथ गुफा के बूटा मलिक द्वारा खोजे जाने की बात को पहली चोट तो खुद सोलहवीं सदी में लिखी गई और मुगल इतिहास के बड़े रेफरेंस के तौर पर मानी जानी वाली किताब आइन-ए-अकबरी से ही मिल जाती है. इसके लेखक अबुल फजल ने अपनी इस किताब में कश्मीर का जिक्र किया है और वहां के तीर्थ स्थानों को भी पूरी तवज्जो दी है. आइन-ए-अकबरी में अबुल फजल ने गुफा और शिवलिंग का जिक्र करते हुए लिखा है कि, 'हिंदुओं का वो स्थान बहुत चमत्कारिक है, और हिंदू वहां जाते रहे हैं. वह बड़े पैमाने पर हिंदुओं को अपनी ओर आने के लिए आकर्षित करता है. चांद रातों के हिसाब से ये शिवलिंग घटता है और बढ़ता है.'

फ्रांसीसी डॉक्टर ने भी की थी अमरनाथ यात्रा
शाहजहां के बड़े बेटे दाराशिकोह के निजी चिकित्सक थे फ्रांस्वा बर्नियर. डॉ. बर्नियर फ्रांसीसी थे और मुगल एम्पॉयर के दौरान जब वह भारत में रहे तो उनकी दिलचस्पी सनातन और हिंदू आस्था में भी बढ़ी. भारत के बड़े भू-भाग की यात्रा कर बर्नियर ने बुक "ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर" लिखी और भारत के इतिहास और संस्कृति पर अध्ययन करते हुए अपना नजरिया भी पेश किया. डॉ. बर्नियर 1656 में भारत आए थे. शाहजहां के शासन की अवनति के बाद उन्होंने सनातन में अपनी दिलचस्पी को जिया. 1663 में अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान उन्होंने उन स्थानों का विवरण दिया जो उन्होंने देखे, और किताब में उल्लेख किया.
डॉ. बर्नियर लिखते हैं कि वे "संगसफेद से दो दिन की यात्रा पर एक गुफा की ओर जा रहे थे, जो अद्भुत जमावटों से भरी थी," जब उन्हें "खबर मिली कि मेरे नवाब मेरी लंबी अनुपस्थिति के कारण बहुत अधीर और असहज महसूस कर रहे थे. मैंने बर्फ के खंड, छत से टपकते पानी से बने स्टैलेग्माइट्स को देखा, वह वाकई अद्भुत था और कई हिंदू उसे शिव की छवि के रूप में पूजते हैं. " खुद बर्नियर भी इस गुफा की बहुत पुराने समय से मौजूदगी की बात स्वीकारते हैं. अमरनाथ गुफा और हिम शिवलिंग की कई पेंटिंग सोलहवीं सदी से मौजूद हैं. इनमें से कुछ चित्रकलाएं पहाड़ी कलम पेंटिंग शैली, कुछ में राजपूती शैली तो कुछ चित्रकलाएं उत्तर भारत के मैदानी भाग में विकसित मुगल काल के पेंटिंग शैली में हैं. बाद की कंपनी पेंटिंग में भी अमरनाथ को उकेरा, लेकिन सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में बनी पेंटिंग, इसके प्राचीन होने का प्रमाण हैं.

भगिनि निवेदिता की पुस्तक में भी मिलते हैं प्राचीनता के प्रमाण
स्वामी विवेकानंद की अनन्य शिष्या के तौर पर मशहूर भगिनि निवेदिता ने भी अपनी पुस्तक नोट्स ऑफ सम वांडरिंग्स विद द स्वामी विवेकानंद में अमरनाथ गुफा की प्राचीनता का जिक्र किया है. उन्होंने इस किताब में यह भी बताया है कि कैसे स्वामी विवेकानंद को अमरनाथ पहुंचकर अध्यात्म का एक अलग और नया ही सिरा मिला है. विवेकानंद साल 1898 में अमरनाथ यात्रा पर गए थे और लिखते हैं कि महाकाली के बाद मेरा महाकाल से भी साक्षात्कार हुआ.
राजतरंगिणी और नीलमत पुराण में जिक्र
कश्मीर के इतिहास पर कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ और नीलमत पुराण भी गहराई से बताते हैं. कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इसका उल्लेख है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे. नीलमत पुराण में भी अमरनाथ तीर्थ का कई बार उल्लेख मिलता है. यहां लिखा है कि अमरनाथ की गुफा की यात्रा में मार्ग में अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) और अमरावती में यात्री धार्मिक अनुष्ठान करते थे. छठी सदी में लिखे गए नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा का स्पष्ट उल्लेख अमरेश्वरा नाम से मिलता है. यह वर्णन बताता है कि छठी शताब्दी के पहले से श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा किया करते थे.
श्रीमद्भागवत पुराण की रहस्य भरी कथा
श्रीमद्भागवत पुराण में एक रहस्यमयी कथा भी आती है, जहां अमरनाथ का विस्तार से जिक्र आता है. कथा के मुताबिक, अमरकथा सुनते हुए एक वक्त ऐसा आया कि देवी पार्वती ऊंघने लगीं और उनके स्थान पर एक तोता हुंकारी भरने लगा. शिव ने उस तोते को क्रोध से देखा तो वह उड़कर भाग गया. अब वह चारों ओर जहां देखता शिव की आंखें उसका पीछा करती थीं. बचने के लिए वह तोता व्यास मुनि की कुटी में पहुंच गया. उसी समय व्यास मुनि की पत्नी को जम्हाई आई तो तोता उनके मुख में प्रवेश कर गर्भ में पहुंच गया और 12 वर्षों तक रहा. इस दौरान उसने शिव से अमरकथा के रहस्य के बल पर गर्भ में ही वेदों का सत्व जान लिया.

फिर श्रीकृ्ष्ण से रक्षा के आश्वासन पर वह तोता जन्म लेकर बाहर निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया. वेदों के ज्ञान के कारण वह ऋषि शुकदेव कहलाए. उन्होंने राजा परीक्षित को भागवत धर्म में दीक्षित किया और सात दिन में भागवत कथा सुनाई. आज उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में शुक्रतीर्थ नाम का धार्मिक स्थल है, जहां मौजूद शुक्रताल का धार्मिक महत्व है. यहीं पर शुकदेवजी ने अमरनाथ की रहस्य कथा सुनाई थी इसलिए इस तीर्थ की महत्ता अमरनाथ के बराबर मानी जाती है. ये सारी कथाएं प्रमाण के तौर पर बताई जाती हैं, जिससे बूटा मलिक द्वारा अमरनाथ को खोजे जाने का दावा छोटा और झूठा पड़ जाता है.
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