चीन के तियानजीन में शंघाई शिखर सम्मेलन (SCO) के दौरान दुनिया को नया वर्ल्ड ऑर्डर देखने को मिला, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चीन और रूस के राष्ट्रपति गर्मजोशी के साथ मिले. अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए भारत, रूस और चीन एक साथ आ रहे हैं. ये तीनों देश एक-दूसरे के साथ मिलकर अपनी दोस्ती और आपसी सहयोग को मजबूत कर रहे हैं. इस कदम से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियां और अमेरिकी दबदबा खत्म हो सकता है.
ब्रिक्स और एससीओ की बढ़ती ताकत
दुनिया में डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एक नया वित्तीय ढांचा तैयार करने की कोशिश की जा रही है. भारत, रूस और चीन की यह दोस्ती दुनिया में एक नया पावर सेंटर बना सकती है, जो अमेरिका और उसके सहयोगियों से अलग होगा. यह सब दुनिया में शक्ति संतुलन को बदलने का काम कर रहा है. न सिर्फ SCO बल्कि ब्रिक्स को मजबूत करके भी ये तीनों देश अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकते हैं.
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BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और SCO (शंघाई सहयोग संगठन) दोनों ही संगठन वक्त के साथ ताकतवर हो रहे हैं. दोनों संगठनों का मकसद अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देना है. अमेरिका की टैरिफ नीतियों ने इन देशों को और करीब लाकर खड़ा कर दिया है. हाल के वर्षों में ब्रिक्स एक बड़ा आर्थिक संगठन बनकर उभर रहा है, जिसकी अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है. रूस और चीन मिलकर इसे और मजबूत बनाने में लगे हैं.
ब्रिक्स देश अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक-चौथाई से ज़्यादा और दुनिया की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. ब्रिक्स देशों की साझा जीडीपी ग्रोथ पिछले साल चार फीसदी रही थी जबकि वैश्विक जीडीपी ग्रोथ का औसत तीन फीसदी के करीब था. वैश्विक अर्थव्यवस्था का करीब 40 फीसदी हिस्सा ब्रिक्स देशों के हिस्से आता है, जो कि इस साल एक फीसदी बढ़ने का अनुमान है.
डॉलर को चुनौती, नई दुनिया का प्लान
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वर्ल्ड बैंक में सुधार की बात कही है. उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ देश पैसे को 'नियो कॉलोनियलिज्म' यानी 'नव उपनिवेशवाद' के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. उनका इशारा साफ तौर पर अमेरिका की तरफ था. रूस और चीन एक-दूसरे के साथ रूबल और युआन में व्यापार बढ़ा रहे हैं. दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाएं दुनिया को एक नया वित्तीय विकल्प देना चाहती हैं. अगर ये देश अपनी एक साझा मुद्रा बना लेते हैं, तो यह डॉलर के प्रभुत्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा.
भारत के लिए हालात अभी फूंक-फूंक कर कदम उठाने वाले हैं. एक तरफ उसे ट्रंप टैरिफ को चुनौती देनी है, तो दूसरी तरफ उस चीन के साथ अपने रिश्ते सुधारने हैं, जिसका दगाबाजी का इतिहास रहा है. हालांकि भारत रूस का पुराना दोस्त है और दोनों देशों के रिश्ते विषम परिस्थितियों में भी मजबूती के साथ जुड़े रहे हैं. लेकिन चीन के साथ उसके सीमा विवाद अभी भी जारी हैं.
भारत की भूमिका और चुनौतियां
साल 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद रिश्ते ठंडे पड़े हैं. लेकिन पीएम मोदी और जिनपिंग के बीच हालिया मुलाकात में तनाव कम करने पर बातचीत हुई है. पीएम मोदी ने रविवार को चीन राष्ट्रपति से मुलाकात में रिश्तों को पटरी पर लाने की पहल का स्वागत किया. उन्होंने पिछले साल रूस के कजान में हुई वार्ता को अहम बताया, जिसके बाद बॉर्डर पर डिसइंगेजमेंट हुआ, मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हुई और अब दोनों देश डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने की तैयारी में हैं.
पीएम मोदी ने जिनपिंग से मुलाकात में रविवार को आपसी सम्मान, परस्पर विश्वास और संवेदनशीलता के आधार पर दोनों देशों के रिश्तों को मजबूती देने की बात कही. उधर, जिनपिंग ने भी ग्लोबल ऑर्डर में बड़े बदलावों के समय का हवाला देते हुए कहा कि भारत-चीन की दोस्त सही विकल्प है और हमें एक-दूसरे के विरोधी रहने की बजाय सहयोगी बनकर काम करना चाहिए. इन दावों के बावजूद चीन के इरादों पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल है. भारत किसी भी कीमत पर किसी के दबाव में काम नहीं करना, ऐसे में भारत को अपने हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाना होगा.
क्या क्वाड का सपना टूटेगा?
अगर रूस, इंडिया और चीन का गठजोड़ मजबूत होता है तो अमेरिका के क्वाड (जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत) को चुनौती मिल सकती है. भारत के छिटकने से क्वाड की प्रासंगिकता कमजोर हो जाएगा. अमेरिका ने इसे प्रशांत महासागर में चीन को चुनौती देने के मकसद से ही बनाया था. हालांकि इसे लेकर भारत का कहना है कि वह किसी भी एक खेमे में नहीं है और सभी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूती देना चाहता है. मॉडर्न डिप्लोमेसी में कहा भी जाता है कि यहां कोई स्थाई दोस्त या स्थाई दुश्मन नहीं होता, बल्कि हर देश अपने हितों को ध्यान में रखकर फैसले लेता है.
नए वर्ल्ड ऑर्डर से क्या-क्या बदलेगा?
मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती और SCO-BRICS की बढ़ती ताकत से ग्लोबल ऑर्डर पूरी तरह बदल सकता है. भारत और चीन मिलकर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने की रणनीति बना रहे हैं. SCO और BRICS के जरिए वैकल्पिक ट्रेड कॉरिडोर और पेमेंट सिस्टम विकसित किए जा रहे हैं, इससे अमेरिकी डॉलर को चुनौती मिलना तय है. भारत और चीन जैसे देश रेयर अर्थ मेटल्स और अन्य संसाधनों की सप्लाई में सहयोग बढ़ा रहे हैं, जो वैश्विक सप्लाई चेन को लचीला बनाएगा.
BRICS का न्यू डेवलपमेंट बैंक और SCO की आर्थिक पहल ग्लोबल साउथ को IMF और विश्व बैंक पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकती हैं.
SCO और BRICS के जरिए भारत, चीन और रूस एक ऐसे वर्ल्ड ऑर्डर को बढ़ावा दे रहे हैं, जहां कोई एक देश हावी न हो. भारत-चीन सीमा विवादों में कमी और रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी से एशिया में स्थिरता बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है. भारत अपनी नीतियों और रणनीतिक स्वायत्तता के साथ, ग्लोबल साउथ का एक प्रमुख नेता बनकर उभर रहा है.
आतंकवाद से लड़ाई को मिली मजबूती
SCO समिट में पीएम मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ साझा रुख की अपील की, जिसे जिनपिंग ने समर्थन दिया. यह भारत-पाकिस्तान तनाव के संदर्भ में भी अहम है. साथ ही पीएम मोदी ने पहलगाम आतंकी हमले का भी जिक्र किया और SCO के साझा घोषणापत्र में इस हमले की सभी देशों ने मिलकर निंदा की है, जिससे भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को मजबूती मिली है.
भारत-रूस के बीच रक्षा सौदे और चीन के साथ बढ़ता सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा. भारत की 2026 में ब्रिक्स समिट की मेजबानी और SCO में एक्टिव रोल उसे वैश्विक मंच पर एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित करेगी. इस तिकड़ी और SCO-BRICS की ताकत प्रभावशाली है, कुछ मुद्दों का अगर स्थाई हल निकल आए तो यह RIC एक मजबूत शक्ति के तौर पर उभर सकते हैं.
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यह देखना दिलचस्प होगा कि ये तीनों देश मिलकर किस तरह से अमेरिकी वर्चस्व को कम करते हैं. क्या वे एक मजबूत आर्थिक और सैन्य गठजोड़ बना पाएंगे? क्या वे डॉलर का कोई विकल्प पेश कर पाएंगे? फिलहाल, अमेरिका की दादागीरी से पीड़ित ये देश एक नए वर्ल्ड ऑर्डर की नींव रख रहे हैं. जहां सिर्फ एक देश का दबदबा नहीं होगा, बल्कि आपसी हितों और सम्मान का ख्याल रखा जाएगा. इस ऑर्डर में एक पावर सेंटर नहीं होगा, बल्कि सभी को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा.
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