हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोयबल्स (Joseph Goebbels) कहा करता था कि यदि आप एक झूठ को बार-बार दोहराते हैं, तो अंततः लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं. पाकिस्तान में शायद यही हो रहा है. हर रोज वहां भारत पर जीत के लिए जश्न मनाया जा रहा है. पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने कहा है कि भारत को युद्ध में मात देने के बाद पाकिस्तानी पासपोर्ट की दुनिया में इज्जत बढ़ गई है. विदेशों में पाकिस्तानी लोगों का स्वागत किया जा रहा है. हद तो तब हो गई जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर को भारत -पाक युद्ध स्वघोषित विजयी भूमिका के लिए प्रमोशन दिया जा रहा है. सवाल उठता है कि यह कैसे संभव हो रहा है. क्या पाकिस्तानी अवाम ने भी अपनी आंख कान और मुंह बंद कर लिए हैं? भारत की मिसाइलों ने वहां जो तबाही मचाई है उसके बाद भी अगर पाकिस्तान जश्न मना रहा है तो मानना होगा कि यह देश अब मानसिक गुलाम भी हो चुका है. एक जिंदा राष्ट्र की पहचान होती है कि वो अपने शासकों से सवाल कर सके. भारत में युद्ध जीतने के बाद सरकार से विपक्ष सवाल कर रहा है. आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिसके चलते पाकिस्तानी अवाम ने अपने शासकों को लेकर आंखें मूंद ली हैं और सरकारी जश्न में उन्हें भी मजा आ रहा है. या, सरकार अवाम के डर से इस तरह का माहौल बना रही है कि सरकार या सेना के खिलाफ विद्रोह न हो सके?
1-दुर्गति होने के बाद भी मुनीर के खिलाफ नहीं उठ रही आवाज
असीम मुनीर के खिलाफ पाकिस्तान में खुलकर आवाज न उठने की वजह सेना की ताकत, प्रचार तंत्र, विपक्ष का दमन, और जनता का आर्थिक संकटों में उलझा होना है. हालांकि, सेना में असंतोष और जनता का गुस्सा भविष्य में चुनौती बन सकता है, लेकिन अभी संगठित विरोध की कमी और डर का माहौल मुनीर के खिलाफ आवाज को दबा रहा है.
पाकिस्तान में जनरल असीम मुनीर के खिलाफ खुलकर आवाज न उठने के कई कारण हैं, जो सैन्य, राजनीतिक, सामाजिक और प्रचार तंत्र से जुड़े हैं. पाकिस्तान में सेना का राजनीति और समाज पर गहरा नियंत्रण है. असीम मुनीर, सेना प्रमुख के रूप में, इस ताकतवर संस्थान का नेतृत्व करते हैं. सेना के खिलाफ बोलना जोखिम भरा है, क्योंकि इसका इतिहास विरोधियों को दबाने का रहा है. उल्लेखनीय है कि सेना ने इमरान खान जैसे प्रभावशाली नेताओं को भी चुप कराया, जिससे जनता और नेताओं में डर बना हुआ है. इमरान खान और उनकी पार्टी (PTI) जैसे प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल, मुकदमों और प्रतिबंधों के जरिए दबाया गया है.मुनीर ने विपक्ष को कमजोर कर अपनी स्थिति मजबूत की है. इमरान खान के सारे विरोधी आसिम मुनीर के पीछे मजबूती से खड़े हैं. इससे संगठित विरोध की संभावना कम हो गई.
पत्रकारों (जैसे अहमद नूरानी) और बुद्धिजीवियों ने हार की सच्चाई उजागर करने की कोशिश की, लेकिन सरकारी नियंत्रण और सेंसरशिप ने उनकी आवाज को दबा दिया. सैन्य शासन के इतिहास और कठोर दंड (जैसे गिरफ्तारी, गायब करना) के कारण लोग खुले तौर पर मुनीर की आलोचना करने से बचते हैं.
पाकिस्तानी सरकार और सेना ने ऑपरेशन सिंदूर में हार को जीत के रूप में पेश किया, जिसे सरकारी मीडिया और प्रचार तंत्र ने बढ़ावा दिया है. वीडियो गेम फुटेज और भ्रामक बयानों से जनता को गुमराह किया गया है. यह प्रचार मुनीर के खिलाफ असंतोष को दबाने में मदद करता है.
2- क्या मुनीर का कट्टर इस्लामी रूप लोगों को भा रहा है?
पाकिस्तानी जनरल असीम मुनीर खुद को कट्टर इस्लामी नेता के रूप में पेश करते रहे हैं. मुनीर को कुरान की सभी आयतें याद हैं. जिन्हें वो जब भी पब्लिक के बीच जाते तो जरूर प्रदर्शित करते हैं. हिंदुओं के प्रति घृणा का भाव भी वह कभी नहीं छिपाते हैं. मुनीर की धार्मिक छवि और कट्टर बयानबाजी (जैसे भारत के खिलाफ जिहादी रुख) कुछ धार्मिक और रूढ़िवादी समूहों को आकर्षित करती है. सेना और सरकार ने यौम-ए-तशक्कुर जैसे आयोजनों और प्रचार के जरिए मुनीर को एक मजबूत, धार्मिक नेता के रूप में पेश किया, जो भारत के खिलाफ जीत का प्रतीक है.
3- आसिम मुनीर को पदोन्नत कैसे मिल गई
जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नति मिलने की प्रक्रिया और कारण पाकिस्तान की सैन्य-राजनीतिक गतिशीलता और रणनीति से जुड़े हैं. दोनों में लगता है कि पैक्ट हो गया है कि तू मुझे सहला - मैं तुझे सहलाऊंगा. दरअसल पाकिस्तानी सेना और राजनीतिक नेतृत्व दोनों आज की तारीख में एक दूसरे की जरूरत बनकर उभरे हैं.
पाकिस्तानी जनता को नेताओं से अधिक सेना पर भरोसा है. सरकार बार-बार सेना की जीत की दावे कर खुद की पीठ भी थपथपा रही है. यही हाल सेना का है. सेना प्रमुख सरकार ने अपनी तारीफ करवाकर खुद के खिलाफ होने वाले विद्रोह को दबाने का सपना देख रहे हैं. असीम मुनीर को फील्ड मार्शल का पद शहबाज शरीफ सरकार द्वारा दिया गया, जो पाकिस्तान में दूसरी बार हुआ है. पहले अयूब खान को 1965 में मिला था. उस समय भी पाकिस्तान को भारत से बुरी हाल मिली थी.
4- क्या विद्रोह को दबाने के लिए मुनीर को मिला प्रमोशन
ऑपरेशन सिंदूर में भारत की सैन्य सफलता (न्यूयॉर्क टाइम्स और सैटेलाइट इमेज के आधार पर) के बाद पाकिस्तानी सेना में असंतोष की खबरें थीं. खासकर जूनियर अधिकारियों में. मुनीर को फील्ड मार्शल का पद देकर सरकार ने सेना का मनोबल बढ़ाने और आंतरिक विद्रोह की संभावना को कम करने की कोशिश की.
इसके साथ ही पाकिस्तान में आर्थिक संकट, महंगाई, और जनता के असंतोष के बीच सरकार और सेना को अपनी छवि बचाने की जरूरत थी.फील्ड मार्शल का पद मुनीर को एक मजबूत, धार्मिक, और राष्ट्रवादी नेता के रूप में पेश करने में मदद करता है.
मुनीर ने सेना के भीतर अपने वफादारों को मजबूत किया और विपक्ष, खासकर इमरान खान और उनकी पार्टी (PTI), को दबाने में सफल रहे.फील्ड मार्शल का पद पाकिस्तान में दुर्लभ और प्रतीकात्मक है. इसे मुनीर को देना सरकार का एक रणनीतिक कदम था, ताकि वे सेना के सर्वोच्च नेता के रूप में अडिग दिखें. यह कदम जनता और सेना को यह संदेश देता है कि मुनीर का नेतृत्व अपरिहार्य है.
5- क्या विद्रोह को रोक पाएगा मुनीर का प्रोमोशन
पाकिस्तान में जिस तरह का आर्थिक संकट, टीटीपी और बलोच विद्रोह, और इमरान खान के समर्थकों का गुस्सा बढ़ रहा है उससे पाकिस्तान में विद्रोह की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.पाकिस्तान या किसी और देश में जहां सैन्य शासन होता है वहां विद्रोह की चिंगारी दिखती नहीं है. जिस तरह बरसात के मौसम में दबाव बढ़ने पर अगर गरज के साथ छींटें पड़ गए तो समझो मूसलाधार बारिश नहीं होती है. उसी तरह विद्रोह की चिंगारी समाज में दिखने का मतलब होता है कि विद्रोह की हवा निकल गई. दुनिया में हुए तमाम तख्तापलट बताते हैं कि पूर्ण शांति के माहौल में एक दिन चुपचाप तख्तापलट हो जाता है. फिर जनता सड़कों पर जश्न मनाने निकलती है. संभवतया कुछ इस तरफ ही पाकिस्तान बढ़ रहा है.