"कोह-ए-नूर!" (मतलब रोशनी का पहाड़)... ऐसा कहा जाता है कि नादिर शाह ने 1739 में ये शब्द कहे थे. ये वो दौर था जब वो भारत लूट रहा था और दिल्ली में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह की पगड़ी में छुपा ये हीरा उसके हाथ लग गया. उसी दिन भारत से कोहिनूर ही नहीं बल्कि मोर सिंहासन और मुगल खजाना भी फारस ले जाया गया.
फारस यानी आज का ईरान, यहां से ये हीरा काबुल पहुंचा, फिर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के हाथ लगा. रणजीत सिंह इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर को दान करना चाहते थे लेकिन उससे पहले ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे उनके बेटे दलीप सिंह से 1843 में ये छीन लिया और ऐसे कोहिनूर ब्रिटिश क्राउन तक पहुंच गया.
दुनिया का ये सबसे चर्चित और विवादित हीरा, जिसे भारत में विजय का प्रतीक कहा गया, आंध्र प्रदेश की गोलकुंडा की खानों से निकला था. लेकिन इन खानों का फारस से एक और पुराना रिश्ता भी है. नादिर शाह के भारत पर हमले से 150 साल पहले, फारस का एक गरीब तेल व्यापारी का बेटा यहां आकर गोलकुंडा की खानों और हीरे के कारोबार पर राज करने लगा था. 1591 में इस्फहान (फ़ारस) में जन्मे इस लड़के का नाम मीर जुमला था. बाद में वही औरंगज़ेब का वजीर-ए-आज़म बना.
टेलर स्विफ्ट की सगाई की अंगूठी, जो ट्रैविस केल्स ने पहनाई, एक 'ओल्ड माइन कट डायमंड' बताई जा रही है और ऐसी संभावना है कि ये भारत या ब्राज़ील की पुरानी खानों से आई हो.
गोलकुंडा की इन्हीं खानों से निकला कोहिनूर, जिसे नादिर शाह दिल्ली से लूटकर अपने साथ फ़ारस ले गया था. स्विफ्ट की अंगूठी ने गोलकुंडा खानों का इतिहास फिर से ताजा कर दिया है और उसी से जुड़ी एक भूली-बिसरी कड़ी यानी मीर जुमला की कहानी फिर से सामने आई है. वही मीर जुमला, जिसने अपनी सूझबूझ, राजनीतिक चालों और घूसखोरी से गोलकुंडा की खानों और कोहिनूर के ठिकाने पर कब्जा कर लिया था.
मीर जुमला की कहानी एक गरीब लड़के से ताकतवर हुक्मरान बनने की है. वो क्लर्क से शुरू होकर व्यापारी बना, फिर सेनापति, फिर कर्नाटक का गवर्नर, बंगाल का विजेता और आखिरकार असम अभियान से लौटते वक्त उसकी मौत हो गई.
कोहिनूर फारस, काबुल, पंजाब से ब्रिटिश क्राउन तक कैसे पहुंचा
कोहिनूर जिसका फारसी में मतलब है रोशनी का पहाड़, आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा इलाके (कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच) से निकला था. यह 14वीं सदी से पहले ही मिल चुका था. 16वीं सदी तक यह इलाका मुगल शासन के अधीन था. इसी दौर में शाहजहां ने 1628 में कोहिनूर को मोर सिंहासन में जड़वा दिया. इसकी चमक ताकत का प्रतीक बन गई, लेकिन इसकी वजह से ही लूट और हमले भी बढ़े.
मुग़ल साम्राज्य जब कमजोर हो रहा था, तब फारस में नादिर शाह का उदय हुआ. उसने 1739 में दिल्ली पर हमला किया और मोहम्मद शाह से कोहिनूर छीन लिया. दिल्ली कई दिनों तक लूटी गई और लूट का माल फारस की टैक्स वसूली में काम आया. 1747 में नादिर शाह की हत्या के बाद यह हीरा उसके जनरल अहमद शाह दुर्रानी (अब्दाली) के पास चला गया. उसने इसे काबुल लाया और 1757 में दिल्ली पर चौथी बार हमला करते हुए फिर खजाना लूटा.
1813 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने ये हीरा दुर्रानी वंश पर दबाव डालकर हासिल कर लिया. उन्होंने इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर को देने का मन बनाया था लेकिन 1839 में उनकी मौत हो गई और फिर अंग्रेजों से हुई जंग के बाद यह 1843 में उनके बेटे दलीप सिंह से छीनकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ले लिया.
ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने इसे क्वीन विक्टोरिया को भेजा और लिखा कि 'कोहिनूर भारत की विजय का प्रतीक है और मुझे खुशी है कि यह आपके ताज में पहुंच गया.'
फ़ारस से गोलकुंडा तक, ऐसे पलटी एक गरीब लड़के की किस्मत
जब मीर जुमला का नाम इतिहास में उभरा, तब तक कोहिनूर गोलकुंडा की खानों से निकल चुका था. फ्रेंच यात्री जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने भारत की हीरा खानों को दुनिया की सबसे अमीर खानें बताया था.
मीर जुमला, जिसका असली नाम मीर मोहम्मद था, 1591 में ईरान के इस्फहान में पैदा हुआ. उसके पिता एक गरीब तेल व्यापारी थे. मीर को पढ़ाई-लिखाई के मौके मिले और इसी से वो एक हीरा व्यापारी के क्लर्क के तौर पर काम करने लगा. ये अनुभव आगे चलकर उसके काम आया.
1630 के दशक में वह रोज़गार की तलाश में भारत आया. पहले वो एक फारसी व्यापारी के साथ घोड़ों का व्यापार करने गोलकुंडा आया. यहां उसकी किस्मत ने करवट ली. धीरे-धीरे उसने हीरे का कारोबार शुरू किया, खानें पट्टे पर लीं और अरबों-खरबों की संपत्ति खड़ी कर ली. यूरोप और फारस तक उसका व्यापार फैला. उसने कई गुप्त नामों से खानों का संचालन किया और अपनी दौलत से गोलकुंडा दरबार में ऊंचा पद खरीद लिया.
लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा यहीं नहीं रुकी
1656 में उसने मुगल साम्राज्य का दामन थाम लिया और औरंगजेब के साथ हो गया. शाहजहां की बीमारी के बाद चारों शाहजादे गद्दी के लिए लड़ रहे थे. औरंगजेब ने भाइयों को हराकर सत्ता हथियाई और इसमें मीर जुमला का बड़ा हाथ था. इसके बाद मीर जुमला ने गोलकुंडा को भी मुगलों के लिए जीत लिया. उसने कर्नाटक तक मुगल साम्राज्य का विस्तार किया और फिर बंगाल में भी विद्रोह दबाया.
मीरजुमला की मौत और कोहिनूर पर जंग
मीर जुमला की जिंंदगी गरीबी से उठकर दौलत और ताकत के शिखर तक पहुंचने की मिसाल है. वहीं कोहिनूर की दास्तान आज भी अधूरी है. भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान चारों देश इस हीरे पर दावा करते हैं. भारत इसे आज़ादी के बाद से वापस मांग रहा है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहते हैं कि ये उनके शासकों के पास था, जबकि ईरान नादिर शाह का हवाला देता है. 2016 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने साफ कहा था, 'कोहिनूर क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है और वहीं रहेगा.'
आज भी कोहिनूर का नाम सुनते ही विवाद और लालसा दोनों उठते हैं. वहीं, इसकी 'मनहूसियत' की दास्तान भी उतनी ही मशहूर है. शायद इसके असली मालिक महाराजा दलीप सिंह के अधूरे शब्द ही इसे सही बयान करते हैं, 'मैं बच्चा था, जब मुझसे कोहिनूर छीन लिया गया. अब मैं बड़ा हूं, लेकिन वो हीरा अभी तक मेरे पास नहीं लौटा.'
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