भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर बढ़ते तनाव के बीच सरकार के एक कदम की सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा है. कुछ लोगों का मानना है कि भारत सरकार ने कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स जैसे कोका-कोला और पेप्सी पर जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) 28% से बढ़ाकर 40% करने का जो फैसला लिया है उसके पीछे अमेरिका को प्रतीकात्मक संदेश देना है. हालांकि सरकार ने कैफीनयुक्त और चीनी-युक्त पेय पदार्थों को भी 40 परसेंट वाले स्लैब में शामिल किया है इसके बावजूद लोग यही मान रहे हैं कि यह अमेरिका को संदेश दिया गया है.
सरकार ने इसके ठीक विपरीत फल आधारित पेय और पौधों से बने दूध जैसे स्वदेशी उत्पादों पर जीएसटी को 12% और 18% से घटाकर 5% किया है. कहने को सरकार इसे स्वास्थ्य सुधार और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने की नीति के रूप में प्रस्तुत कर रही है. पर विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भी अमेरिका को ही संदेश देने का प्रयास है. गौरतलब है कि अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है.
1-क्या यह वास्तव में अमेरिका को संदेश है?
कोका-कोला और पेप्सी अमेरिकी संस्कृति और पूंजीवाद के प्रतीक हैं. इन पर उच्च कर लगाना और स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहन देना भारत की ओर से एक प्रतीकात्मक कदम है, जो अमेरिका को यह दिखाता है कि भारत वैश्विक व्यापार में दबाव में नहीं झुकेगा. हालांकि कुछ लोगों का यह दावा अतिशयोक्तिपूर्ण है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा. क्योंकि कोलड्रिंक्स दुनिया भर से रेवेन्यू कमा रहे हैं. उसमें भारत का हिस्सा करीब 5 से 7 परसेंट का ही है. भारत सरकार के इस फैसले से बहुत होगा तो उनका मार्केट शेयर एक परसेंट कम हो जाएगा. इससे अधिक की उम्मीद करना बेमानी ही है. फिर भी अमेरिका जैसे ताकतवर देश के लिए यह एक बहुत बड़ा संदेश है.
2-स्वास्थ्य कारणों के आधार पर कोलड्रिंक्स को सिन कैटगरी में रखना कितना हास्यास्पद
कोलड्रिंक्स पर जीएसटी वृद्धि को स्वास्थ्य नीति से जोड़ा गया है, क्योंकि ICMR चीनी-युक्त पेय को हानिकारक मानता है. पर यह तर्क गले से नहीं उतरता है. ICMR की सलाह के अनुसार, चीनी-युक्त पेय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं इसलिए इन्हें सिन गुड्स की श्रेणी में रखा गया है. अगर ऐसा है तो भारतीय मिठाइयों पर केवल 5% जीएसटी क्यों लगाई गई है. अगर असली कारण भारतीयों का स्वास्थ्य ही है तो मिठाइयों को सिन गुड्स में न भी रखते तो कम से कम 18 परसेंट वाले स्लैब में तो रखना ही चाहिए था. यह विरोधाभास उस दावे को बल देता है कि जिसमें यह कहा जा रहा कि कोलड्रिंक्स पर को सिन गुड्स में रखने का असली कारण अमेरिका को प्रतीकात्मक संदेश देना है.
3- अमेरिका के खिलाफ नरेटिव सेट करने के लिए महत्वपूर्ण
दरअसल अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 परसेंट की टैरिफ बढ़ोतरी रूस से तेल खरीदने के जवाब में लगाई है. भारत सरकार के कोलड्रिंक्स पर जीएसटी की दरें बढ़ाने से पहले ही बहुत से संगठनों ने अमेरिकी सामानों के बहिष्कार की बात शुरू कर दी थी. लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) के संस्थापक और राज्यसभा सांसद अशोक कुमार मित्तल ने अपने कैंपस में कोका-कोला, पेप्सी, और अन्य अमेरिकी पेय पदार्थों पर प्रतिबंध लगाकर स्वदेशी आंदोलन 2.0 शुरूआत की है. मित्तल ने इसे 1905 के स्वदेशी आंदोलन से जोड़ा, जिसमें ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया गया था.
बिहार से खबरें आईं हैं कि वहां बिंद कस्बे में युवकों ने अमेरिकी सामानों का विरोध किया. खेल उद्योग संघ पंजाब ने अमेरिकी उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ के विरोध में अमेरिकी उत्पादों का बहिष्कार करने का फैसला किया. विरोध में सदस्यों ने कोका-कोला की बोतलें सड़क पर फेंकी.स्वामी रामदेव ने भारतीयों को अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार की सलाह दी है ताकि अमेरिका पर दबाव बनाया जा सके. Wow Skin Science के को-फाउंडर मनीष चौधरी ने लिंक्डइन पर एक वीडियो शेयर किया. इसमें उन्होंने कहा कि हमें भारत के किसानों और स्टार्टअप्स को सपोर्ट करना चाहिए. उन्होंने कहा कि 'मेड इन इंडिया' प्रोडक्ट्स को दुनिया में पहचान दिलानी चाहिए.
जाहिर है कि अगर ऐसे समय में सरकार ने कोलड्रिंक्स पर अगर 12 परसेंट टैक्स बढ़ा दिया है तो इसका मतलब यही जाएगा कि इस फैसले में कहीं न कहीं अमेरिका को संदेश देना भी निहित है.
4-कोलड्रिंक्स पर भारत में टैक्स बढने पर अमेरिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा
इस टैक्स वृद्धि का अमेरिका पर प्रभाव सीमित लेकिन उल्लेखनीय है. कोका-कोला और पेप्सी जैसे अमेरिकी ब्रांड भारत में 60,000 करोड़ रुपये के गैर-अल्कोहलिक पेय उद्योग का एक बड़ा हिस्सा नियंत्रित करते हैं. 40% जीएसटी से इन कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में वृद्धि होगी. इंडियन बेवरेज एसोसिएशन (IBA) ने इसे उद्योग के लिए प्रमुख बाधा करार दिया है. इससे कोका-कोला और पेप्सी की बाजार हिस्सेदारी पर असर पड़ सकता है, क्योंकि उपभोक्ता सस्ते स्वदेशी विकल्पों, जैसे डाबर और कैम्पा, की ओर बढ़ सकते हैं. हालांकि, भारत इन कंपनियों के लिए वैश्विक राजस्व का केवल 5-7% योगदान देता है, इसलिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव सीमित होगा. फिर भी, यह अमेरिकी निवेशकों और ब्रांडों के लिए भारत में कारोबारी माहौल को चुनौतीपूर्ण बनाता है.
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