कौन है कांग्रेस हाईकमान? खड़गे और राहुल गांधी के बयानों में है इस सवाल का जवाब

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आजादी के बाद से ही कांग्रेस पर गांधी-नेहरू परिवार के प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती है. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद दशक दर दशक यह बढ़ता ही गया. 1991 में राजीव गांधी के निधन और फिर नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद के बाद कुछ सालों के लिए ये प्रभाव थोड़ा कम हुआ था. लेकिन,आम जनमानस में कांग्रेस मतलब गांधी परिवार ही समझा गया.

गांधी परिवार का कुछ ऐसा जलवा है कि कांग्रेस के सबसे बुरे दौर में भी उनके खिलाफ बगावत की बात कोई सोच नहीं सकता है. जिसने ऐसा किया, वो तो हाशिये पर ही चला गया. यही कारण है कि कांग्रेस हाईकमान और गांधी परिवार का प्रभाव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के संगठनात्मक ढांचे और निर्णय लेने की प्रक्रिया में हमेशा से चर्चा का विषय रहा है. हाल ही में कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की अटकलों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान ने इस धारणा को और बल दिया है कि पार्टी पर गांधी परिवार का प्रभाव कायम ही नहीं, सर्वोपरि है. हालांकि राहुल गांधी के बयानों में भी यह पहले से ही झलकता रहा है कि वे किस तरह कांग्रेस पार्टी को किस तरह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी समझते हैं.

खड़गे ने ऐसा क्या कहा जो कांग्रेस अध्यक्ष पद को रिमोट संचालित बनाता है

कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने का सवाल पर 30 जून को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बेंगलुरु में एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने उंगली का इशारा करते हुए कहा कि देखिए, यह आलाकमान के हाथ में है. यहां कोई नहीं कह सकता कि आलाकमान के मन में क्या चल रहा है. यह आलाकमान पर छोड़ दिया गया है और आगे कोई भी फैसला लेने का अधिकार उसी के पास है. लेकिन अनावश्यक रूप से किसी को समस्या पैदा नहीं करनी चाहिए.

खड़गे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जाहिर है पार्टी के लिए हाईकमान तो वही हैं. चलिए मान लेते हैं कि पार्टी में गांधी परिवार भी है पर अध्यक्ष का भी कुछ मतलब होता है. खड़गे के बयान से लगता है कि हाईकमान में वो शामिल भी नहीं है. खड़गे के  बयान से ऐसा लगता है कि कर्नाटक जैसे महत्वपूर्ण राज्य में मुख्यमंत्री बदलने जैसे बड़े निर्णय हाईकमान द्वारा लिए जाते हैं जिसमें पार्टी का अध्यक्ष शामिल नहीं है. 

खड़गे के इस बयान पर विपक्षी नेताओं, जैसे कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता आर. अशोक और अन्य नेताओं ने तंज कसते हुए सवाल उठाया कि अगर खड़गे स्वयं हाईकमान नहीं हैं, तो फिर हाईकमान कौन है? उन्होंने इसे गांधी परिवार से जोड़ा, खासकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ. अशोक ने कहा, प्रिय खड़गे जी, अगर आप आलाकमान नहीं हैं, तो कौन हैं? राहुल गांधी? सोनिया गांधी? प्रियंका गांधी या इस एक उपनाम की कोई अदृश्य समिति है? जाहिर है कि यह टिप्पणी इस धारणा को और मजबूत करती है कि हाईकमान का मतलब गांधी परिवार है.

खड़गे का इस तरह साफगोई से कहना कि हमें नहीं पता हाईकमान क्या चाहता है? बहुत हद तक खड़गे के अधिकारों की सीमाओं को उजागर करता है. सोशल मीडिया पर भी खरगे के बयान को लेकर बहुत मजे लिए जा रहे हैं. खड़गे ने अपने बयान में यह भी कहा कि किसी को अनावश्यक समस्या नहीं पैदा करनी चाहिए, जो कर्नाटक में सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच चल रही गुटबाजी और नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों की ओर इशारा करता है.

खड़गे के वो बयान और बॉडी लैंग्वेज उन्हें आज भी कार्यकर्ता की ही हैसियत देते हैं

कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण को लेकर 20 मई 2025 को वो कहते हैं कि जातिगत गणना करो, लेकिन ठीक से करो… राहुल गांधी का नाम खराब नहीं होना चाहिए. जैसे कि खड़गे स्वयं को कुछ नहीं समझते. खड़गे कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण को सावधानीपूर्वक करने और राहुल गांधी की छवि को नुकसान न पहुंचने की बात कही, जाहिर है कि इसका मतलब है कि राहुल गांधी पार्टी की छवि और रणनीति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. यह बयान इस बात का संकेत है कि राहुल गांधी की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता को बनाए रखना पार्टी के लिए प्राथमिकता है, जो उनके केंद्रीय प्रभाव को दर्शाता है.

अगर आप वीडियो फुटेज गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि खड़गे इस बयान को देते समय गंभीर और सतर्क दिखे. उनकी आवाज में आत्मविश्वास की कमी दिखती है. इसके साथ ही उनके चेहरे पर तनाव के भाव यह संकेत देते हैं कि वे इस मुद्दे पर अपनी व्यक्तिगत राय देने से बच रहे हैं. गांधी परिवार के आस पास होने पर हमेशा खड़गे इस तरह सतर्क रहते हैं जैसे कोई इंप्लाई अपने बॉस के साथ रहता है. उनकी बॉडी लैंगवेज हमेशा ऐसे रहती है जैसे राहुल गांधी पहले बैठ जाएं तो वो बैठें, जैसे टेबल पर पानी का गिलास लेकर वो राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए हमेशा हाजिर रहते हैं.

राहुल गांधी के साथ मंच पर व्यवहार: सार्वजनिक सभाओं में, जैसे कि 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान खड़गे को अक्सर राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के पीछे खड़े देखा गया. उनकी बॉडी लैंगवेज, जैसे हाथ बांधे रखना या राहुल के बोलने के दौरान उनकी ओर देखना, यह बताता है कि वे सहायक की भूमिका में हैं.

राहुल गांधी का बयान कांग्रेस के मालिक मुख्तार जैसा

राहुल गांधी अकसर इस तरह बातें करते रहे हैं जिसका मतलब साफ निकलता है कि पार्टी उनकी मर्जी से चलेगी.राहुल वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं इसलिए उनके बयानों को पहले की अपेक्षा अब गंभीरता से लिया जाता है. उन्होंने हाल के वर्षों में कई ऐसे बयान दिए हैं जिससे ऐसा लगता है कि पार्टी के सब कुछ वो ही हैं. 14 मई 2024 को  उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने गलतियां की हैं, और आने वाले समय में पार्टी को अपनी राजनीति बदलनी होगी.

इसी 28 जून को  राहुल गांधी कहते हैं कि मेरा लक्ष्य है, कांग्रेस पार्टी की जो लगाम है, वो मैं ओबीसी, दलित, आदिवासी... इन कम्युनिटीज के हाथ में दे दूं. राहुल गांधी ने यह बयान एक सार्वजनिक सभा में सामाजिक न्याय और जातिगत जनगणना के मुद्दे पर दिया.  राहुल गांधी का 'मेरा लक्ष्य' और 'कांग्रेस की लगाम' जैसे शब्दों का उपयोग यह दर्शाता है कि वे पार्टी पर व्यक्तिगत नियंत्रण की भावना से ओत प्रोत हैं. लगाम शब्द मालिकाना हक को दर्शाता है, जैसे कि वे पार्टी को अपनी संपत्ति मानते हों और उसे अपनी मर्जी से किसी दिशा में ले जा सकते हों. राहुल का यह बयान यह संकेत देता है कि राहुल गांधी पार्टी की दिशा और नेतृत्व निर्धारिण करने अंतिम अधिकार अपने पास रखते हैं. भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे औपचारिक रूप से अध्यक्ष हों पर उनकी लगाम वे अपने हाथ में रखते हैं.

राहुल इसी साल 22 फरवरी को बोले थे कि मुझे बिकाऊ लोग नहीं चाहिए. मुझे नए, साफ छवि वाले लोग चाहिए. राहुल गांधी ने यह बयान एक पत्रकार के सवाल के जवाब में दिया, जब उनसे पूछा गया कि क्या कांग्रेस में छुपे संघी भाग रहे हैं? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि ऐसे लोगों के जाने से अच्छा है और वे नए, स्वच्छ छवि वाले नेताओं को पार्टी में लाना चाहते हैं. इस बयान में राहुल गांधी की मुस्कान और आत्मविश्वास भरी शैली यह दर्शाती है कि वे पार्टी के नेतृत्व और सदस्यता पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं. मुझे चाहिए जैसे शब्दों का उपयोग यह बताता है कि पार्टी उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी है. यह बयान यह धारणा बनाता है कि राहुल गांधी पार्टी के भीतर नेताओं को चुनने और हटाने का अधिकार अपने पास रखते हैं.

कपिल सिब्बल ने 12 अगस्त 2020 को  एक लेख लिखा कि एक बड़े पब्लिक लिमिटेड कंपनी के सीईओ को शेयरधारकों (कार्यकर्ताओं) की बात सुननी चाहिए और संकटों का तेजी से समाधान करना चाहिए. इस लेख में उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी को एक ऐसे सीईओ के रूप में चित्रित किया, जो इस भूमिका में फिट नहीं बैठते.

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