क्या है कार्बन क्रेडिट, जिसके लिए खुद को किसान बता रहे अरबपति?

3 days ago 1

शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान ने कुछ वक्त पहले महाराष्ट्र में खेती की जमीन खरीदी. किसी ने इसे स्टार किड का नेचर लव कहा तो किसी ने इन्वेस्टमेंट. लेकिन अगर इस खरीदी को बाकी अरबपतियों से जोड़कर देखें तो कई डॉट मिलते दिखेंगे. ये सिर्फ संयोग नहीं कि ज्यादातर अमीर लोग खेती की जमीन लेने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यह सारा मामला कार्बन क्रेडिट से जुड़ा दिखता है, जिसे बेचकर भारी मुनाफा कमाया जा सके. 

क्या है कार्बन क्रेडिट

यह एक तरह का सर्टिफिकेट है, जो ये साबित करता है कि आपने एक टन कार्बन डाइऑक्साइड या इसके बराबर का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम किया है. यह क्रेडिट कंपनियां और देश आपस में खरीद-बेच सकते हैं. यानी जिसने ज्यादा प्रदूषण किया, वह उन लोगों से क्रेडिट खरीद सकता है जिन्होंने कोई ग्रीन प्रोजेक्ट किया हुआ हो, जैसे पेड़ लगाना या सोलर प्लांट बनाना.

यहां मसला यह है कि कंपनियां कार्बन कम नहीं कर रहीं, बल्कि दूसरों से क्रेडिट खरीदकर खुद को क्लाइमेट फ्रेंडली दिखाने का सर्टिफिकेट ले रही हैं. 

शुरुआत कैसे हुई

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने और  उसके नतीजे दिखने के साथ इंटरनेशनल संस्थाएं चिंता में आ गईं. कई बड़े समझौतों में तय हुआ कि प्रदूषण कम करना होगा. हर देश को टारगेट दिया गया. लेकिन कारखाने-गाड़ियां हर देश में हैं. सबको कम लागत पर मुनाफा चाहिए. ऐसे में सीधे-सीधे प्रदूषण कम करना मुश्किल है. ऐसे में यह रास्ता आसान लगा कि जहां संभव हो, वहां कार्बन घटाओ और उसका क्रेडिट बेच दो. यहीं से शुरू हुआ कार्बन क्रेडिट का व्यापार. 

carbon footprint (Photo- Pexels)प्रदूषण पर काबू की बजाए कारखाने ग्रीनवॉशिंग कर रहे हैं. (Photo- Pexels)

पेरिस समझौते के तहत देश भी आपस में कार्बन क्रेडिट खरीद-बेच सकते हैं. इससे कम प्रदूषण वाले देशों में पैसे आएंगे और क्रेडिट्स खरीदकर प्रभावित देश अपने काम-धंधे में लगे रह सकेंगे. कुल मिलाकर ये मॉडल- धुआं छोड़ो और पैसे देकर पाप धो डालो, का है. 

कार्बन क्रेडिट को कागजों पर क्लाइमेट चेंज का तोड़ बताया गया लेकिन हकीकत में यह सबसे विवादित क्लाइमेट टूल हो चुका. 

क्या हो रहा है

- कंपनियां या देश अपने कारखानों से धुआं छोड़ते रहते हैं,  लेकिन दिखाने के लिए कार्बन क्रेडिट खरीद लेते हैं. मतलब पॉल्यूशन हो रहा है लेकिन रिपोर्ट में वो ग्रीन दिख रहे हैं. 

- कई बार पेड़ लगाने या जंगल बचाने के नाम पर प्रोजेक्ट दिखाए जाते हैं. लेकिन होता कुछ नहीं. पहले से लगे जंगलों को ही नया बता दिया जाएगा और क्रेडिट कमा लिया जाएगा. 

- अरबपति खेती की जमीनें खरीद रहे हैं ताकि वहां से कार्बन क्रेडिट पैदा कर सकें. प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियां उनसे क्रेडिट खरीद लेती हैं. इससे गरीबों की जमीन जा रही है. 

farmland carbon credit (Photo- Pixabay)पेड़ों की जड़ें और मिट्टी कार्बन को सालों, कभी-कभी सदियों तक रोक सकती हैं. (Photo- Pixabay)

खेती की जमीनें क्यों खरीदी जा रहीं

धरती का सबसे बड़ा कार्बन सिंक (जहां कार्बन डाइऑक्साइड कैद हो जाए) मिट्टी और जंगल हैं. पेड़ कार्बन सोखते हैं. मिट्टी में ऑर्गेनिक तरीके से खेती हो तो कार्बन लंबे समय तक टिका रहता है. यानी जितना ज्यादा कार्बन मिट्टी और पौधों में कैद रहेगा, उतना कम वातावरण में जाएगा. इससे ग्लोबल वार्मिंग धीमी पड़ती है. यही वजह है कि अरबपति अब फार्मलैंड खरीद रहे हैं. जितनी ज्यादा जमीन, उतने ज्यादा पैसे. 

वैसे खेतों से ही कार्बन क्रेडिट नहीं बनता, बल्कि कई और तरीके भी हैं. मसलन, जंगल, नदी-तालाब कार्बन तेजी से सोखते हैं. तक कि समुद्र भी कार्बन क्रेडिट का बड़ा जरिया हैं. 

यही असल विवाद है

कंपनियां पॉल्यूशन उतना ही करेंगी लेकिन कार्बन क्रेडिट खरीद लेंगे ताकि कागजों पर ग्रीन दिखती रहें और कोई रोकटोक न हो. क्लाइमेट एक्टिविस्ट इसे ग्रीनवॉशिंग कह रहे हैं. जैसे किसी एयरलाइंस को ही लें. वो हर साल करोड़ों टन कार्बन हवा में छोड़ती है. इसे कम करने के लिए पूरी तकनीक बदलनी होगी, जो कि काफी महंगा पड़ेगा. तो आसान रास्ता है कि कंपनी क्रेडिट खरीद ले. रिपोर्ट बनेगी कि एयरलाइंस कितनी ग्रीन है, जबकि असल में वो बेखौफ प्रदूषण कर रही है. 

कार्बन क्रेडिट के जरिए ग्रीनवॉशिंग के इस खेल से बड़ा मंच भी अनजान नहीं. शुरुआत में इसपर हामी तो दे दी गई थी लेकिन फिर समझ आया कि मामला उलझा हुआ है. अब यूएन की क्लाइमेट चेंज बॉडी इसके लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बना रही है जो दुनिया भर में लागू हो सके. मकसद ये है कि कोई भी फर्जी पेड़ लगाकर या पुराने जंगल को नया बताकर क्रेडिट न बेच सके. 

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