भ्रष्टाचार-मुक्त लोकतंत्र बनाने की ईमानदार कोशिशों के बावजूद, नेपाल की टेक-ड्रिवन युवा क्रांति में बड़ी खामियां सामने आई हैं. आंदोलनकारी युवाओं ने आपसी सहमति बनाने और वोटिंग करने के लिए डिस्कॉर्ड का सहारा लिया है. ये वही पॉपुलर चैट ऐप है जिसे गेमर्स खूब इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसी ऐप के जरिए चल रही वोटिंग में एक बड़ी कमजोरी है:
इसमें नेपाली नागरिक न होने वाले लोग भी वोट डाल सकते हैं. यानी नेपाल की Gen-Z द्वारा चलाए जा रहे इस लोकतांत्रिक प्रयोग में बाहरी दखलअंदाजी का खतरा मौजूद है. समूह पहले भी आरोप लगा चुका है कि बाहर से आए कुछ तत्वों ने ही प्रदर्शन को हिंसक बनाया था.
इसी खामी को साबित करने के लिए इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने आधिकारिक 'यूथ अगेंस्ट करप्शन' डिस्कॉर्ड चैनल पर सफलतापूर्वक कई वोट डाले. इस चैनल पर अभी 1.3 लाख से ज्यादा सदस्य जुड़े हुए हैं. ये वोट नेपाल के बाहर से और बिना किसी वैध नेपाली पहचान-पत्र के डाले गए. हालांकि हमारी टीम ने डाले गए सभी वोट बाद में 'अनवोट' कर दिए ताकि नतीजों पर कोई असर न पड़े. लेकिन यह आशंका गहरी है कि संदिग्ध विदेशी तत्वों ने इस कमजोरी का इस्तेमाल कर आंदोलन की दिशा प्रभावित की होगी.
(ये डेमो वीडियो दिखाता है कि गैर-नेपाली नागरिक भी वोट डाल सकते हैं. बता दें कि बाद में वोट अनवोट कर दिए गए ताकि नतीजों पर कोई असर न पड़े).
विदेशी दखल का खतरा
ऐसी खामियां गंभीर चिंता पैदा करती हैं, खासकर नेपाल जैसे देश में, जो लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है और जहां अमेरिका, चीन और पाकिस्तान जैसे बाहरी ताकतें पहले भी सक्रिय रही हैं.
बुधवार को जैसे ही प्रदर्शनकारी अपने अगले प्रतिनिधि को चुनने के लिए वोट डाल रहे थे, ऑनलाइन पोल में वोटर की पहचान की कोई प्रक्रिया नहीं थी. किसी भी व्यक्ति को बिना रोक-टोक कई पोल्स में वोट डालने की अनुमति थी. इस वजह से पूरे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और भरोसे पर सवाल उठने लगे.
कौन बनेगा प्रतिनिधि?
इसी हफ्ते हुए एक ऑनलाइन पोल में सिर्फ 3,833 वोटों के आधार पर बुधवार शाम को पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को पसंदीदा विकल्प बताया गया. हालांकि, कम्युनिटी के भीतर जल्द ही मतभेद भी सामने आ गए. मंगलवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद से ही युवा सदस्यों में यह तय करने को लेकर कशमकश है कि कौन उनकी आवाज़ बनेगा.
सुशीला कार्की
नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस, सुशीला कार्की, तेजी से प्रमुख दावेदार के रूप में उभरीं. समर्थकों का कहना है कि उनके पास कानून और संविधान की गहरी समझ है और वे बेहतरीन नेतृत्व कर सकती हैं. एक यूज़र ने लिखा कि सुशीला कार्की कानून और संविधान जानती हैं. वह शानदार तरीके से नेतृत्व कर सकती हैं. हालांकि, आलोचकों ने उन्हें 'अमेरिका की कठपुतली' करार दिया.
बालेन्द्र शाह
काठमांडू के मेयर और रैपर-इंजीनियर बालेन्द्र शाह भी खूब चर्चा में आए. उनकी ऑनलाइन लोकप्रियता बहुत बड़ी है. सिर्फ इंस्टाग्राम पर ही उनके 8 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं. मॉडरेटर्स ने उन्हें अगला नेता बनने का समर्थन दिया, लेकिन शाह ने खुद इस भूमिका के लिए नाम आगे नहीं बढ़ाया.
सुदान गुरुङ
एनजीओ 'हामी नेपाल' के अध्यक्ष और "यूथ अगेंस्ट करप्शन" डिस्कॉर्ड ग्रुप के संस्थापक सुदान गुरुङ का भी नाम आया. लेकिन उनकी फंडिंग और बैकर्स पर सवाल उठे. एक यूज़र ने आरोप लगाया कि “उनके समर्थक और फंड देने वाले हथियारों के व्यापारी हैं.
सागर ढकाल
ऑक्सफोर्ड से पढ़े सागर ढकाल, जो 2023 के चुनाव में बतौर स्वतंत्र प्रत्याशी उतरे थे, उन्हें भी युवाओं का एक हिस्सा समर्थन दे रहा है. समुदाय में रवि लामिछाने, दुर्गा प्रसाई और हरका सम्पांग के नाम भी संभावित प्रतिनिधियों के तौर पर उछले. लेकिन बहुत से युवाओं का मानना है कि इनमें से ज्यादातर चेहरे शुरू से इस आंदोलन से जुड़े नहीं थे. आरोप यह भी है कि ये लोग सिर्फ मौजूदा अस्थिरता का फायदा उठाकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं.
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