अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर तनाव बढ़ रहा है. तालिबान लड़ाके पाकिस्तानी सेना पर हमले कर रहे हैं. ये हमले पारंपरिक जंग की तरह नहीं हैं – ये "गुरिल्ला युद्ध" (छापामार युद्ध) के तरीके से हो रहे हैं. गुरिल्ला युद्ध में छोटे-छोटे समूह अचानक हमला करते हैं, फिर भाग जाते हैं. तालिबान इसी ताकत से पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. लेकिन सवाल यह है: तालिबान कहां मजबूत है? पाकिस्तानी सेना कहां?
गुरिल्ला युद्ध क्या है? आसान शब्दों में समझें
गुरिल्ला युद्ध को "छापामार युद्ध" कहते हैं. यह बड़ी फौज बनाम छोटे विद्रोहियों की जंग है. इसमें...
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- छोटे हमले: लड़ाके जंगल, पहाड़ या शहरों में छिपते हैं. वे अचानक गोलीबारी, बम विस्फोट या चाकूबाजी करते हैं.
- भागना आसान: हमला करने के बाद वे गायब हो जाते हैं. दुश्मन को ढूंढना मुश्किल होता है.
- लोगों का साथ: स्थानीय लोग (जैसे पश्तून कबीले) गुरिल्ला लड़ाकों को खाना, जगह और जानकारी देते हैं.
यह युद्ध वियतनाम (1960-70) या अफगानिस्तान (1980-90) में सोवियत सेना के खिलाफ इस्तेमाल हुआ. तालिबान ने अमेरिकी सेना (2001-2021) को भी इसी से हराया. अब पाकिस्तानी सेना का नंबर है. क्योंकि तालिबान के पास आधुनिक हथियार कम हैं, लेकिन पहाड़ी इलाकों की जानकारी और जिद बहुत है.

तालिबान का पाकिस्तान पर हमला: हाल की घटनाएं
अक्टूबर 2025 में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर भारी झड़पें हुईं. 9 अक्टूबर से शुरू हुई जंग में...
- पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उन्होंने 19 अफगान बॉर्डर पोस्ट कब्जे में ले लीं. 200 से ज्यादा तालिबान लड़ाके मारे गए.
- तालिबान ने उल्टा कहा कि हमने पाकिस्तानी टैंक और वाहन लूट लिए. वीडियो में दिखा कि तालिबान ने आईईडी से पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला किया.
- 12 अक्टूबर को काबुल और पक्तिका में पाकिस्तानी हमले हुए. तालिबान ने जवाब दिया. नतीजा: दोनों तरफ 500 से ज्यादा सैनिक मारे गए.
- टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) नाम का समूह, जो अफगान तालिबान का साथी है, पाकिस्तान के अंदर गुरिल्ला हमले कर रहा है. खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में बम धमाके, सुसाइड बॉम्बर हमले हो रहे हैं.
ये हमले गुरिल्ला स्टाइल के हैं: रात में छापा मारो, सुबह गायब. पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हो रहा है – 2021 से अब तक 500 से ज्यादा सैनिक मारे गए. तालिबान को अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकाने मिलते हैं.

तालिबान की ताकत: गुरिल्ला युद्ध में कहां मजबूत?
तालिबान पारंपरिक जंग में कमजोर है, लेकिन गुरिल्ला युद्ध में माहिर. उनकी मुख्य ताकतें...
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- पहाड़ी इलाके का फायदा: अफ-पाक सीमा (ड्यूरंड लाइन) पर जंगल, पहाड़ और गुफाएं हैं. तालिबान इन्हें छिपने के लिए इस्तेमाल करता है. वैज्ञानिक तथ्य: गुरिल्ला युद्ध में इलाके की जानकारी 70% सफलता देती है (अमेरिकी आर्मी स्टडीज से).
- छोटे हथियार और आईईडी: उनके पास टैंक या प्लेन नहीं, लेकिन रॉकेट, बंदूकें और बम हैं. सुसाइड बॉम्बर से एक हमले में 10-20 सैनिक मर जाते हैं.
- लोगों का समर्थन: पश्तून कबीले पाकिस्तानी सेना को आक्रमणकारी मानते हैं. तालिबान को खाने-पीने और जानकारी मिलती है. विचारधारा (इस्लामिक जिहाद) से युवा जुड़ते हैं.
- लंबी जंग की आदत: 20 साल अमेरिका से लड़े. थकान नहीं आती. हाल में, टीटीपी ने पाकिस्तान के अंदर "रिवेंज साइकिल" शुरू की – हमला, भागो, दोबारा हमला.
- अफगान मदद: अफगान तालिबान टीटीपी को ट्रेनिंग और हथियार देता है.
- नतीजा: तालिबान पारंपरिक जंग हार सकता है, लेकिन गुरिल्ला में जीतता है. जैसे वियतनाम में वियत कांग्रेस ने अमेरिका को थका दिया था.
पाकिस्तानी सेना की ताकत: कहां मजबूत, कहां कमजोर?
पाकिस्तानी सेना दुनिया की 7वीं सबसे बड़ी फौज है. लेकिन गुरिल्ला युद्ध में दिक्कतें हैं. उनकी ताकतें...
- बड़ी फौज और हथियार: 6 लाख सैनिक, टैंक, ड्रोन और हेलीकॉप्टर. सीमा पर ड्रोन से निगरानी करते हैं. पारंपरिक जंग में तालिबान को आसानी से हरा सकते हैं.
- अनुभव: 2010 में अमेरिका की मदद से तालिबान को खदेड़ा. अब ऑपरेशन जुल्फिकार जैसे अभियान चला रहे हैं.
- अंतरराष्ट्रीय मदद: सऊदी अरब, कतर और अमेरिका से समर्थन. हाल में, सऊदी ने सीजफायर के लिए मध्यस्थता की.
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लेकिन कमजोरियां
- गुरिल्ला को पकड़ना मुश्किल: बड़ी फौज पहाड़ों में घूम नहीं सकती. हमले छोटे होते हैं, तो जवाब देना कठिन.
- स्थानीय नाराजगी: बलूच और पश्तून लोग सेना को दुश्मन मानते हैं. हमलों में नागरिक मरते हैं तो गुस्सा बढ़ता है.
- लंबी जंग का खर्च: 2025 में 500 सैनिक मारे गए. अर्थव्यवस्था कमजोर तो थकान आ रही है.
- सीमा समस्या: अफगानिस्तान से लड़ाके आ-जा सकते हैं. ड्यूरंड लाइन को फेंसिंग की, लेकिन पूरी नहीं.
वैज्ञानिक तथ्य: काउंटर-इंसर्जेंसी स्टडीज (CTC वेस्ट पॉइंट) कहती हैं कि गुरिल्ला युद्ध में 80% जीत स्थानीय समर्थन से होती है.
कौन जीतेगा? भविष्य की तस्वीर
गुरिल्ला युद्ध लंबा चलता है. तालिबान मजबूत है छिपने, हमला करने और लोगों को जोड़ने में. पाकिस्तानी सेना पारंपरिक ताकत में आगे है, लेकिन थकान से हार सकती है. हाल में 14 अक्टूबर को सीजफायर हुआ, लेकिन तनाव बरकरार. विशेषज्ञ कहते हैं: अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान पर हमला करेगा, तो गुरिल्ला जंग पाकिस्तान के अंदर फैल जाएगी. यह जंग सिर्फ हथियारों की नहीं, बल्कि इलाके, लोगों और जिद की है. तालिबान की ताकत गुरिल्ला युद्ध है, जो पाक सेना के लिए भारी साबित हो रही.
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