देश-दुनिया में लाखों तरह के बिजनेस हैं, सब चल रहे हैं. लेकिन हर तरह का बिजनेस हर कोई नहीं कर सकता. बिजनेस चलाने के लिए अनुभव के साथ-साथ पूंजी की जरूरत होती है. लेकिन अगर आप हफ्ते भर की ट्रेनिंग और कम लागत में दोगुनी-तिगुनी कमाई वाला छोटा कारोबार शुरू करना चाहते हैं तो एक बेहतरीन आइडिया है- चप्पल बनाने का काम.
चप्पल बिजनेस एक ऐसा कारोबार है, जिसे भारत में कम निवेश के साथ शुरू कर अच्छे मुनाफा कमाया जा सकता है. कहा जाता है कि चप्पल की एक ऐसी चीज है, जो बचपन से लेकर पचपन तक के लोग इस्तेमाल करते हैं. इस मॉडर्न जमाने में अब एक-एक शख्स के पास कई जोड़ी चप्पलें होती हैं, घर में पहनने के लिए अलग, बाजार जाने के लिए अलग, ठंडी के अलग, गर्मी के लिए अलग. ऐसे में हर उम्र वर्ग के लोग इसके ग्राहक हैं, और ये 12 महीनों चलने वाला बिजनेस है.
अब बात करते हैं कि कैसे आप चप्पल की छोटी-मोटी फैक्ट्री लगा सकते हैं, शुरुआत में कितना निवेश करना होगा, और कमाई कितनी हो सकती है? दरअसल, आज के दौर में स्लीपर मार्केट में एक से बढ़कर एक ब्रांड हैं, लेकिन इन कंपनियों ने भी शुरुआत बेहद कम लागत की थीं. खासकर Relaxo जैसी कंपनी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. सबसे खास बात यह है कि आप ये बिजनेस यूनिट शहर हो या गांव, कहीं भी लगा सकते हैं, क्योंकि स्लीपर की डिमांड सब जगह एक जैसी है.
कैसे शुरू करें चप्पल मैन्युफैक्चरिंग?
अगर आप चप्पल बनाने की फैक्ट्री लगाने की सोच रहे हैं, शुरुआत में मैनुअल या सैमी-ऑटोमैटिक मशीन खरीद सकते हैं. इसके लिए आपको कम से कम 5 तरह की मशीनें लगानी होंगी. स्लीपर सीट बनाने से लेकर कटिंग, ड्रिलिंग, ग्राइडिंग, डिजाइनिंग, प्रिंटिंग औैर स्ट्रैप फिटिंग की मशीनें लेनी होंगी. अगर आप शुरुआत में स्लीपर शीट की मशीन नहीं लगाना चाहते हैं तो देश में तमाम मैन्युफैक्चरर हैं, जहां से आप स्लीपर शीट खरीद सकते हैं. क्योंकि सबसे ज्यादा कीमत स्लीपर शीट मशीन की होती है.
कितनी लागत, कितनी कमाई?
तमाम मैन्युफैक्चरर से बातचीत के बाद एक बात साफ हो गई है कि अगर आप स्लीपर मेकिंग की छोटी यूनिट भी लगाते हैं तो 35 से 40 रुपये की लागत में एक जोड़ी चप्पल बनकर तैयार हो जाती है. कुछ मैन्युफैक्चरर्स तो महज 25-27 रुपये प्रति जोड़ी लागत का दावा करते हैं. यही चप्पल रिटेल मार्केट में 120-150 रुपये में बिकती है. अधिकतर वीकली मार्केट्स और छोटे दुकानदारों के पास यही चप्पलें मिलती हैं, जो बड़े ब्रॉन्ड के तो नहीं होती, लेकिन फिनिशिंग और देखने में अच्छे-खासे ब्रांड को टक्कर देती हैं. होलसेल में यही स्लीपर 60-70 रुपये पेयर आसानी से बिक जाती है.
अगर आप स्लीपर शीट खरीदकर चप्पल बनाते हैं तो एक शीट से 25 जोड़ी स्लीपर बनकर तैयार हो जाती हैं. वहीं अगर एक जोड़ी पर 20 रुपये मुनाफा जोड़ते हैं तो एक छोटी मशीन से रोजाना कम से कम 200 से 300 जोड़ी चप्पलें बना सकते हैं. यानी रोजाना 4000 से 6000 रुपये मुनाफा. इस कारेाबार से महीने में 1 लाख रुपये शुद्ध कमाया जा सकता है. वहीं, ऑटोमैटिक मशीन से 8 घंटे में 1500-2000 जोड़ी चप्पलें बनकर तैयार हो जाती हैं. इस मशीन पर 5 साल की गारंटी दी जाती है.
जैसा कि हम चर्चा कर चुके हैं कि चप्पलें बनाने के लिए 4 से 5 तरह की मशीनों की जरूरतें होती हैं. कटिंग, ड्रिलिंग, ग्राइडिंग, डिजाइनिंग, इमबोजिंग यानी प्रिंटिंग और स्ट्रैप फिटिंग.
लागत: चप्पल बनाने की यूनिट लगाने के लिए छोटे स्तर पर 20,000 से 1 लाख रुपये तक, मध्यम स्तर पर 1 से 3 लाख रुपये और बड़े स्तर पर 6 से 10 लाख रुपये तक का निवेश करना पड़ सकता है.
कच्चा माल: रबर, पीवीसी, फोम, और पैकेजिंग सामग्री. ये चीजें थोक में आपको आसानी से मिल जाएंगी. यूट्यूब और इंडिया मार्ट पर इसकी पूरी जानकारी मिल जाएगी.
मशीन की कितनी कीमत?
मैनुअल सोल कटिंग मशीन: 10,000-20,000 रुपये में.
ऑटोमैटिक चप्पल बनाने की मशीन: 1-2.5 लाख रुपये में.
प्रिंटिंग और फिनिशिंग मशीन: 20,000-50,000 रुपये में.
कुल मशीनरी लागत: 40,000-2 लाख रुपये में
कैसे बनती हैं चप्पलें?
सबसे पहले सोल कटिंग यानी रबर या पीवीसी शीट को चप्पल के आकार में काटा जाता है. फिर फिनिशिंग के लिए किनारों को चिकना किया जाता है, उसके बाद चप्पल पर डिजाइन या लोगो प्रिंट किया जाता है. फिर चप्पल में रबर, चमड़े, या कपड़े की पट्टियां लगाई जाती हैं. आखिर में शानदार पैकेजिंग के साथ चप्पल को पैक करके बिक्री के लिए तैयार किया जाता है.
कैसे बेच सकते हैं चप्पल?
आप सीधे थोक विक्रेता से संपर्क कर सकते हैं, इसके अलावा ये कारोबार रिटेल में भी किया जा सकता है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स (जैसे Amazon, Flipkart) या सोशल मीडिया के जरिए भी कस्टमर तक पहुंच सकते हैं.
प्रोडक्शन से पहले रिसर्च
चप्पल बनाने से पहले स्थानीय दुकानों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से ये जानकारी जुटाएं कि किस तरह की चप्पलों की सबसे ज्यादा डिमांड है. फिर उसी पर फोकस करें. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती चप्पलें ज्यादा बिकती हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में फैशनेबल और ब्रांडेड चप्पलें पसंद की जाती हैं. अच्छी पैकेजिंग ग्राहकों को आकर्षित करती है और ब्रांड वैल्यू बढ़ाती है.
चप्पल निर्माण का प्रशिक्षण खादी ग्रामोद्योग (kvic.org.in) या जिला उद्योग केंद्र से लिया जा सकता है. सरकार की योजनाओं जैसे मुद्रा लोन या PMEGP (प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम) के तहत लोन प्राप्त किया जा सकता है. अगर आप खुद चप्पल बनाते हैं तो लागत कम होती है और मुनाफा 50% तक हो सकता है. आप होलसेलर को 15 से 20% मुनाफा पर प्रोडक्ट्स उपलब्ध करा सकते हैं.
(1) छोटे स्तर की फैक्ट्री (Small-Scale Slipper Manufacturing Unit)
उत्पादन क्षमता: 500-1,000 जोड़ी चप्पल प्रति दिन.
निवेश: 50,000-1.5 लाख रुपये.
मैनुअल सोल कटिंग मशीन: 10,000-20,000 रुपये में.
प्रिंटिंग और फिनिशिंग मशीन: 20,000-50,000 रुपये में.
इसके लिए आपको स्लीपर शीट बाहर से खरीदनी होगी.
(2) मध्यम स्तर की फैक्ट्री (Medium-Scale Slipper Manufacturing Unit)
उत्पादन क्षमता: 1,000-3,000 जोड़ी चप्पल प्रति दिन.
निवेश: 2-5 लाख रुपये.
ऑटोमैटिक सोल कटिंग मशीन: 50,000-1 लाख रुपये में.
ऑटोमैटिक चप्पल बनाने की मशीन: 1-2 लाख रुपये में.
प्रिंटिंग मशीन (डिजाइन के लिए): 20,000-50,000 रुपये में.
कुल मशीनरी लागत: 1.5-3 लाख रुपये.
प्रति जोड़ी लागत: 24-30 रुपये (हवाई और डिजाइनर चप्पल).
(3) बड़े स्तर की फैक्ट्री (Large-Scale Slipper Manufacturing Unit)
उत्पादन क्षमता: 5,000-10,000 जोड़ी चप्पल प्रति दिन.
निवेश: 10-20 लाख रुपये.
पूरी तरह ऑटोमैटिक चप्पल उत्पादन लाइन: 5-10 लाख रुपये में.
हाईटेक प्रिंटिंग और फिनिशिंग मशीन: 1-2 लाख रुपये में.
कुल मशीनरी लागत: 6-12 लाख रुपये.
कच्चा माल: शुरुआती स्टॉक (5,000-10,000 जोड़ी): 1-3 लाख रुपये में.
कर्मचारी: 10-20 कर्मचारी (औसत सैलरी 15-20 हजार रुपये) करीब 1.50 लाख रुपये/माह.
मुनाफा उत्पादन लागत, बिक्री मूल्य, और बिक्री की मात्रा पर निर्भर करता है.
मुनाफे का कैलकुलेशन-
अगर आप मध्यम स्तर की फैक्ट्री लगाते हैं तो फिर कारोबार भी बढ़ेगा और मुनाफा भी.
जब आप इस बिजनेस को बड़े पैमाने पर करते हैं तो फिर मुनाफा ज्यादा होगा.
(नोट: इंडस्ट्रीज एक्सपर्ट्स से बातचीत के आधार पर ये रिपोर्ट तैयारी की गई है, अगर आप कोई भी बिजनेस शुरू करना चाह रहे हैं तो पहले रिसर्च करें और फिर उससे जुड़े जोखिमों के बारे में भी जानकारियां जुटाएं.)
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