साउथ कॉकस का देश आर्मेनिया हाल के सालों में भारत के बेहद करीब आया है. पड़ोसी अजरबैजान से दुश्मनी के बीच आर्मेनिया ने भारत से रक्षा संबंध भी बढ़ाए हैं और कई डिफेंस डील की है. लेकिन आर्मेनिया अब एक ऐसा काम करने जा रहा है जो भारत के लिए शायद चिंता की बात हो सकती है. आर्मेनिया के विदेश मंत्री अरारत मिर्जोयान ने कहा कि उनका देश चीन के साथ बिना किसी लिमिट के हर क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करना चाहता है.
आर्मेनियाई विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश पांच साल पहले नागोर्नो-काराबाख युद्ध के बाद से रूस के प्रभाव से अलग अपनी विदेश नीति में विविधता लाने की कोशिशों को तेज कर रहा है और इसी दिशा में चीन के साथ रिश्ता बढ़ाया जाएगा.
पिछले हफ्ते चीन पहुंचे मिर्जोयान ने बीजिंग में साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'हमारे संबंधों को मजबूत करने के रास्ते में कोई रुकावट नहीं है बल्कि हम बिना किसी सीमा के संबंधों को मजबूत करने के लिए खुले हुए हैं और तत्पर हैं.'
साउथ कॉकस में तीन देश आते हैं, आर्मेनिया, जॉर्जिया और अजरबैजान और आर्मेनिया एकमात्र ऐसा देश है जिसने अभी तक चीन के साथ रणनीतिक साझेदारी नहीं बनाई है. मिर्जोयान ने कहा कि अब आर्मेनिया और चीन दोनों ही अपने संबंधों को उच्च स्तर पर बढ़ाने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने कहा, 'मैंने पहले ही अपने चीनी सहयोगियों के साथ इस बारे में बात की है. हम अपने संबंधों को रणनीतिक स्तर पर ले जाने की सोच रहे हैं और संबंधों को आधिकारिक रूप से बढ़ाने में हमारे आपसी हित भी हैं.'
चीनी विदेश मंत्री से भी मिले आर्मेनियाई मंत्री
मिर्जोयान ने अपने चीन दौरे में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी. उनका यह दौरा 2021 में विदेश मंत्री बनने के बाद से चीन का पहला आधिकारिक दौरा था.
यह दौरा ऐसे समय में हुआ है जब 2020 में नागोर्नो-काराबाख युद्ध के बाद आर्मेनिया अपनी विदेश नीति में सक्रिय तरीके से विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. इस युद्ध में रूस ने मध्यस्थता के जरिए युद्धविराम कराया था लेकिन युद्धविराम से पहले नागोर्नो-काराबाख का अधिकांश हिस्सा अजरबैजान के कब्जे में चला गया था.
2020 में 44 दिनों तक चले संघर्ष में 3,800 से ज्यादा आर्मेनियाई सैनिक और 2,700 से ज्यादा अजरबैजानी सैनिक मारे गए. सितंबर 2023 में अजरबैजान ने फिर युद्धविराम का उल्लंघन किया और स्वघोषित अलग हुए राज्य आर्ट्सख के खिलाफ बड़े पैमाने पर सैन्य हमला किया था. इसके बाद विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र से 100,000 से ज्यादा आर्मेनियाई समूह के लोगों को वहां से भागना पड़ा था.
इन सब में रूस के हस्तक्षेप में विफलता से परेशान होकर आर्मेनिया ने पिछले साल जून में घोषणा की थी कि वो सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन से हट जाएगा. यह सैन्य संगठन रूस ने सोवियत संघ से निकले देशों के साथ मिलकर बनाया था. आर्मेनिया ने संगठन से निकलने के बाद अपनी विदेश नीति में बड़े बदलाव किए हैं.
जनवरी में, इसने सुरक्षा, परमाणु ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए अमेरिका के साथ एक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए. एक महीने बाद, आर्मेनिया की संसद ने यूरोपीय संघ में शामिल होने के लिए एक विधेयक पारित किया.
आर्मेनिया ने भारत की सदस्यता वाले समूह ब्रिक्स (उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का समूह) के साथ-साथ शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भी शामिल होने में रुचि दिखाई है.
भारत-पाक तनाव के बीच आर्मेनिया के करीब जा रहा चीन
आर्मेनिया और चीन के बीच रिश्ते मजबूत करने की यह खबर ऐसे वक्त में आई है जब भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच पाकिस्तान-तुर्की और अजरबैजान की धुरी को टक्कर देने के लिए भारत आर्मेनिया से अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है.
भारत ने जब 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था तब आर्मेनिया उन पहले देशों में था जो भारत के साथ खड़े थे. पहलगाम हमले में 26 लोग मारे गए थे जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकियों को जिम्मेदार बताया था.
जवाब में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में स्थित 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था. इसके बाद भारत और पाकिस्तान में चार दिनों की लड़ाई चली. भारत-पाक संघर्ष के दौरान तुर्की और अजरबैजान पाकिस्तान के साथ खड़े दिखे जबकि आर्मेनिया ने भारत का साथ दिया था.
भारत के साथ संघर्ष में पाकिस्तान ने चीनी हथियारों का जमकर इस्तेमाल किया था और चीन अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा. इस भू-राजनीतिक समीकरण को देखते हुए भारत के दोस्त आर्मेनिया का चीन के करीब जाना भारत के लिए परेशानी का सबब हो सकता है.
भारत और आर्मेनिया के रक्षा संबंध
रूस कई सालों से आर्मेनिया का सबसे बड़ा रक्षा हथियार आपूर्तिकर्ता था लेकिन हाल के सालों में दोनों देशों के रिश्तों में तनातनी देखने को मिली है जहां आर्मेनिया यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस का साथ भी नहीं दे रहा है. आर्मेनिया ने रूस से हथियार खरीदने भी कम कर दिए हैं और भारत से हथियार खरीद बढ़ा दी है. भारत से आर्मेनिया बड़ी मात्रा में हथियार खरीद रहा है और अब भारत उसका शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आर्मेनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है जिससे 2022-24 के बीच आर्मेनिया ने अपने कुल हथियार खरीद का 43% हथियार खरीदा.
भारत आर्मेनिया को आकाश-1एस एयर डिफेंस सिस्टम और पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर जैसे बड़े हथियार सप्लाई करता है. इसके अलावा भारत आर्मेनिया को आर्टिलरी सिस्टम, ZADS काउंटर ड्रोन सिस्टम, कोंकुर एंटी टैंक मिसाइल सिस्टम, मोर्टार जैसे रक्षा हथियार देता है.
लेकिन अगर चीन आर्मेनिया संबंध बढ़ते हैं तो चीन जरूर चाहेगा कि वो भारत की जगह ले और आर्मेनिया पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित करे.