जावेद अख्तर का पश्चिम बंगाल में विरोध ममता बनर्जी की सेक्युलर पॉलिटिक्स पर सवालिया निशान है

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उर्दू को लेकर हिंदुत्‍व की राजनीति में जैसा बवाल है, वैसा ही फसाद मुस्लिम कट्टरपंथियों के नैरेटिव में कम नहीं है. आरोप लगाया जाता है कि हिंदुत्‍व की राजनीति करने वाले उर्दू को मुसलमानों और पाकिस्‍तान की भाषा मानकर उससे नफरत करते हैं. जबकि उर्दू को लेकर कोलकाता में आयोजित होने जा रहे एक कार्यक्रम में मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों ने ऐसा बवाल काटा, जैसे उर्दू सिर्फ मुसलमानों की ही भाषा हो.

दरअसल, हुआ यूं कि 'हिंदी सिनेमा में उर्दू' विषय पर 31 अगस्‍त से 3 सितंबर तक कोलकाता में पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी कार्यक्रम करने जा रही थी. जिसमें जावेद अख्‍तर को भी शिरकत करनी थी. लेकिन, जावेद अख्‍तर के नास्तिक विचारों से खफा जमीयत उलेमा ए हिंद और वाहियान फाउंडेशन ने जावेद अख्तर को कार्यक्रम में बुलाए जाने का तगड़ा विरोध किया. इस पर हुआ यूं कि उर्दू पर कार्यक्रम आयोजित कर मुस्लिम तबके और सेक्‍यूलर विचार वालों से वाहवाही बटारने जा रही पश्चिम बंगाल सरकार ने कट्टरपंथियों के आगे सरेंडर कर दिया. और कार्यक्रम ही रद्द कर दिया.

जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द होने के बाद तृणमूल कांग्रेस सरकार निशाने पर आ गई है. पश्चिम बंगाल सरकार पर कट्टरपंथियों के दबाव में घुटने टेक देने का इल्जाम लग रहा है. जावेद अख्तर को 'शैतान' बताते हुए धमकी दी गई थी कि विरोध प्रदर्शन वैसा ही होगा, जैसा 2007 में तसलीमा नसरीन का हुआ था. 

ऊर्दू अकादमी के फैसले का चौतरफा विरोध हो रहा है. जावेद अख्तर के समर्थन में लेफ्ट छात्र संगठनों के साथ साथ रंगकर्मियों और कलाकारों ने ऊर्दू अकादमी के बहाने पश्चिम बंगाल सरकार पर तीखा हमला बोला है. जाने माने गीतकार जावेद अख्तर का कहना है कि ये उनके लिए कोई नई बात नहीं है.

पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं. ये तो है कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सरकार चुनाव से पहले मुस्लिम वोटर को नाराज नहीं करना चाहेगी - लेकिन, ये भी है कि जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द होना ममता बनर्जी की सेक्युलर पॉलिटिक्स पर बड़ा सवालिया निशान है. 

ममता बनर्जी का विरोध एकतरफा क्यों

ममता बनर्जी का दावा है कि वो सेक्युलर पॉलिटिक्स करती हैं. सभी धर्मों और भाषाओं को बराबर सम्मान देती हैं. बीजेपी के खिलाफ भाषा आंदोलन चला रहीं ममता बनर्जी नंदीग्राम में चंडी पाठ भी करती हैं, और मौका देखकर फुरफुरा शरीफ भी पहुंच जाती है. लेकिन, प्रयागराज महाकुंभ को मृत्युकुंभ बताती हैं. राम मंदिर उद्घाटन समारोह का बहिष्कार भी उनका राजनीतिक बयान ही होता है. 

पश्चिम बंगाल की सरकारी ऊर्दू अकादमी में जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द कर दिया जाना ममता बनर्जी की धर्मनिरपेक्षता की राजनीति पर बड़ा सवालिया निशान है. बीजेपी ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप कांग्रेस की ही तरह लगाती है, लेकिन वो अपने मिशन में जुटी रहती हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में फुरफुरा शरीफ टीएमसी के लिए चुनौती बना हुआ था. बिहार चुनाव में बल्ले बल्ले करने वाले असदुद्दीन ओवैसी तो बंगाल पहुंचकर बेअसर हो गए, लेकिन इंडियन सेक्युलर फ्रंट ने टीएमसी के सामने बड़ी चुनौती पेश की - और अब तो पीरजादा कासेम सिद्दीकी को साथ लेकर ममता बनर्जी ने चुनाव से पहले ही बड़ी चाल चल दी है.

लेकिन जमीयत उलेमा के दबाव में जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द किया जाना, ममता बनर्जी की सेक्युलर छवि पर चोट है. अब तो ममता बनर्जी को घेरने का बीजेपी को और भी मौका मिल जाएगा - तब तो और भी अगर ऊर्दू अकादमी की तरफ से नई तारीख बताई जाती है, और इनविटेशन कार्ड पर जावेद अख्तर का नाम नहीं होता.

जावेद अख्तर के कारण उर्दू कार्यक्रम का रद्द किया जाना

ऊर्दू अकादमी का संचालन पश्चिम बंगाल सरकार करती है. जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द किए जाने का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया गया है. ऊर्दू अकादमी की सचिव नुजहत जैनब ने एक बयान में कहा है कि खास वजहों से मुशायरे का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा है, और नई तारीखों की घोषणा बाद में की जाएगी - हालांकि, ये साफ नहीं किया गया है कि बाद में कार्यक्रम होने पर जावेद अख्तर को आयोजन में शामिल किया जाएगा या नहीं.

विरोध करने वालों का कहना है कि जावेद अख्तर की कुछ टिप्पणियों से मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं. जमीयत-ए-उलेमा की पश्चिम बंगाल यूनिट के महासचिव मुफ्ती अब्दुस सलाम कासमी कहते हैं, जावेद अख्तर की टिप्पणियां मुस्लिम समुदाय की भावनाओं के खिलाफ हैं... उर्दू अकादमी एक अल्पसंख्यक संस्था है... और ऐसे व्यक्ति को बुलाना ठीक नहीं है, जिसने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई हो.

मीडिया के प्रतिक्रिया पूछे जाने पर जावेद अख्तर भी हैरान नहीं होते. कहते हैं, मेरे लिए... ये बिल्कुल भी नया नहीं है... मुझे लगातार कट्टरपंथियों, हिंदू और मुस्लिम, दोनों से नफरत भरे ईमेल मिलते हैं... कुछ कहते हैं, मैं जिहादी हूं और मुझे पाकिस्तान चले जाना चाहिए. कुछ कहते हैं कि मैं काफिर हूं, और सौ फीसदी मैं नर्क में जाऊंगा... मुझे अपना नाम बदल लेना चाहिए. मुझे मुस्लिम नाम रखने का कोई हक नहीं है. 

रंगकर्मी सफदर हाशमी की बहन शबनम हाशमी ने सोशल मीडिया के जरिए अपना विरोध प्रकट किया है. सोशल साइट एक्स पर शबनम हाशमी ने लिखा है, ये तो शुरुआत है... मैं जोर-जोर से चिल्ला रही हूं... बोल रही हूं. अपने सीनियर कार्यकर्ताओं और युवाओं से कह रही हूं कि वे मुस्लिम राइट विंग की ओर से चलाए जा रहे मंचों को मान्यता देना बंद करें. 

जावेद अख्तर को टैग करते हुए शबनम हाशमी ने लिखा है, अगर आप इसके लिए तैयार हैं, तो मैं कोलकाता में कार्यक्रम करूंगी... देखती हूं किसकी हिम्मत है जो रोक दे. SFI, AISF और आइसा जैसे संगठनों की तरफ से जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है, ऐसी धमकियों का विरोध करने के बजाय, सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया... ये हमला न केवल जावेद अख्तर पर हुआ है, बल्कि कला, संस्कृति, धर्मनिरपेक्षता और बौद्धिक स्वतंत्रता पर है. 

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