बेंगलुरु में स्थित डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की प्रयोगशाला एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ADE), एक नए कामिकेज़ ड्रोन पर काम कर रही है, जिसका नाम है स्विफ्ट-के. यह ड्रोन भारत का पहला कामिकेज़ ड्रोन है, जो 0.6 मैक (लगभग 735 किमी/घंटा) की रफ्तार से उड़ सकता है. इसमें ऑटोनॉमस और छिपने की खास तकनीक (स्टील्थ) है.
स्विफ्ट-के क्या है?
स्विफ्ट-के एक खास तरह का ड्रोन है, जो कामिकेज़ ड्रोन कहलाता है. यह दुश्मन के महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करने के बाद खुद नष्ट हो जाता है. यह ड्रोन स्विफ्ट (Stealth Wing Flying Testbed) प्रोग्राम का हिस्सा है. इसमें एक विस्फोटक हथियार (वॉरहेड) लगा होता है, जिससे यह दुश्मन के हवाई रक्षा सिस्टम जैसे कि पाकिस्तान के पास मौजूद चीनी HQ-9 सिस्टम को निशाना बना सकता है. हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर में इस तरह के सिस्टम को नाकाम करने में भारत ने सफलता पाई थी.
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स्विफ्ट-के की खासियतें
- रफ्तार: यह ड्रोन 0.6 मैक की रफ्तार से उड़ता है, जिससे इसे पकड़ना मुश्किल होता है.
- स्टील्थ तकनीक: इसका डिज़ाइन ऐसा है कि रडार इसे आसानी से नहीं पकड़ सकता.
- स्वचालित उड़ान: यह पूरी तरह से ऑटोनॉमस है, यानी इसे चलाने के लिए पायलट की जरूरत नहीं होती.
- लॉन्चिंग सिस्टम: अभी यह सामान्य रनवे से उड़ान भरता है, लेकिन भविष्य में इसे बूस्टर या कैटपॉल्ट लॉन्चर से छोड़ा जाएगा, जिससे इसे किसी भी जगह से इस्तेमाल किया जा सकेगा.
कैसे बन रहा है स्विफ्ट-के?
ADE ने इस ड्रोन के दो प्रोटोटाइप बनाए हैं, जो इसकी तकनीक को परखने के लिए हैं. बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के साथ मिलकर इसका ढांचा तैयार किया गया है. सिर्फ नौ महीनों में इसका शुरुआती डिज़ाइन और प्रोटोटाइप तैयार कर लिया गया, जो भारत की तेज़ तकनीकी प्रगति को दिखाता है.
इस ड्रोन का परीक्षण कर्नाटक के चित्रदुर्ग के पास एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ATR) में हुआ, जहां इसने हाई-स्पीड टैक्सी ट्रायल (HSTT) पास किया. यह टेस्ट ड्रोन की स्थिरता और खास लैंडिंग गियर की जांच के लिए था. इसे और बेहतर करने के लिए गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) का स्वदेशी स्मॉल टर्बो फैन इंजन (STFE) इस्तेमाल किया जाएगा.
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स्विफ्ट-के और घातक प्रोग्राम
स्विफ्ट-के, घातक अनमैन्ड कॉम्बैट एयर व्हीकल (UCAV) प्रोग्राम का एक छोटा संस्करण है. घातक एक बड़ा और उन्नत ड्रोन होगा, जो मिसाइल और बम ले जा सकता है. स्विफ्ट-के इसके लिए तकनीकों को परखने का काम कर रहा है. इसका डिज़ाइन एक खास फ्लाइंग-विंग शेप में है, जो इसे और छिपने में मदद करता है.
क्यों है यह खास?
स्विफ्ट-के दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने का एक सस्ता और प्रभावी तरीका है. यह उन हवाई रक्षा सिस्टम को निशाना बना सकता है, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हैं. यह ड्रोन ऊंचाई पर उड़ सकता है. 200 किमी की दूरी तक कमांड ले सकता है. इसका वजन लगभग 1,050 किलो है. यह एक घंटे तक उड़ सकता है.
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भारत का भविष्य है ये ड्रोन
21वीं सदी के युद्धों का मानव रहित हवाई वाहन यानी यूएवी एक अभिन्न हिस्सा हैं. इस दशक में हुए सभी युद्ध-संघर्षों में यूएवी के इस्तेमाल का चलन देखा गया है. युद्ध के एक निर्णायक हथियार के तौर पर यूएवी को बीते साल के आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए नागोर्नो-कराबाख संघर्ष के दौरान पहचान मिल गई है, जिसमें युद्ध के मैदान पर ड्रोन पूरी तरह से हावी हो गए थे.
पड़ोसी देश ड्रोन मामले में भारत से आगे हैं
भारत ड्रोन और यूएवी के मामले में पाकिस्तान से एक दशक और चीन से और भी ज्यादा पीछे है. पाकिस्तान और चीन लड़ाकू ड्रोन समेत कई सैन्य प्लेटफार्मों और हथियारों को विकसित और पाने के लिए एकदूसरे के करीबी सहयोगी की भूमिका निभा रहे हैं. भारतीय नौसेना में शामिल करने के लिए इसके एक डेक-आधारित लड़ाकू यूएवी वेरिएंट की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं.
कैसा होगा घातक UCAV?
यह 30 हजार फीट की ऊंचाई तक जा सकता है. इसका वजन 15 टन से कम है. इस ड्रोन से मिसाइल, बम और प्रेसिशन गाइडेड हथियार दागे जा सकते हैं. इसमें स्वदेशी कावेरी इंजन लगा है. यह 52 किलोन्यूटन की ताकत विमान को मिलती है. अभी जो प्रोटोटाइप है उसकी लंबाई 4 मीटर है. विंगस्पैन 5 मीटर है. यह 200 किलोमीटर की रेंज तक जमीन से कमांड हासिल कर सकता है. अभी एक घंटे तक उड़ान भर सकता है.
चुनौतियां और भविष्य
हालांकि स्विफ्ट-के का विकास तेजी से हो रहा है, लेकिन इसे अभी तक सेना की ओर से औपचारिक मंजूरी या फंडिंग नहीं मिली है. ADE और भारतीय उद्योग इसे तेजी से विकसित कर रहे हैं. हाल के ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि ड्रोन युद्ध में कितने महत्वपूर्ण हैं, जिससे इस प्रोजेक्ट को और तेज करने की उम्मीद है.
स्विफ्ट-के भारत की रक्षा तकनीक में एक नया कदम है. यह न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाता है, बल्कि आधुनिक युद्ध में भी देश को मजबूत स्थिति देता है. DRDO, ADE और भारतीय उद्योगों की मेहनत से यह ड्रोन जल्द ही भारत की सेना का हिस्सा बन सकता है, जो दुश्मनों के लिए एक बड़ा खतरा होगा.