ट्रंप पहले नहीं, इन अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने भी उठाए थे भारत विरोधी कदम, बुरा हुआ उन फैसलों का हश्न

6 days ago 1

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीद के लिए भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाया है. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि भारत तेल खरीदकर रूस को यूक्रेन के खिलाफ जंग लड़ने के लिए फंडिंग कर रहा है. ट्रंप प्रशासन की भारत विरोधी नीतियों और उनके बयानों की वजह से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. भारत का साफ कहना है कि वह अपनी संप्रभुता के साथ किसी तरह का समझौता नहीं करेगा और रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा.

जब अमेरिका ने रोकी थी गेंहू की सप्लाई

ट्रंप प्रशासन की ओर से यहां तक कहा गया कि भारत अगर रूस से तेल खरीद को बंद कर देता है तो उसे टैरिफ में रियायत मिल सकती है. लेकिन भारत किसी भी कीमत पर अमेरिकी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है. हालांकि ट्रंप पहले ऐसे राष्ट्रपति नहीं है जो भारत के खिलाफ दबाव की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इससे पहले भी कई मौकों पर अलग-अलग सरकारों के दौरान भारत पर प्रेशर बनाने की कोशिश की गई, लेकिन भारत हर बार मजबूती के साथ खड़ा रहा.

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साल 1962 में भारत पड़ोसी मुल्क चीन से जंग लड़ रहा था और उस दौर में देश का अन्न भंडार उतना मजबूत नहीं था. जंग के बाद खाद्यान संकट पैदा हो गया, क्योंकि तब खाद्य सुरक्षा को लेकर देश इतना सजग नहीं था. भारत में प्रतिकूल हालात को देखते हुए पाकिस्तान ने 5 अगस्त 1965 को जंग छेड़ दी, तब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे. इस जंग के बीच अमेरिका के तत्कालानी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत को धमकी दी थी कि अगर लड़ाई नहीं रुकी तो अमेरिका, भारत को गेहूं भेजना बंद कर देगा. उस दौर में अमेरिका पीएल-480 स्कीम के तहत भारत को गेहूं की सप्लाई करता था.

भारत ने खाद्य सुरक्षा को बनाया औजार

भारत के सामने करीब 50 करोड़ की आबादी का पेट भरने की चुनौती थी, इसके बावजूद उसके इरादे मजबूत थे. प्रधानमंत्री शास्त्री अमेरिकी धमकी के आगे झुके नहीं बल्कि उन्होंने खुद ही अमेरिका से गेहूं लेने से इनकार कर दिया. उस दौर के लिहाज से बहुत बड़ा फैसला था क्योंकि देश में हरित क्रांति नहीं आई थी और खाद्य सुरक्षा के मामले में भारत पिछड़ा था. लेकिन शास्त्री जी के आह्वान पर देश एकजुट हुआ और खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ने के लिए तैयार हो गया. तब भी अमेरिकी दबाव के आगे भारत ने अपनी स्वायत्तता को बनाए रखा और बाद में जाकर खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में बड़े कदम उठाए.

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग के दौरान भारत के खिलाफ कड़े कदम उठाए थे. उन्होंने न सिर्फ जंग में पाकिस्तान का समर्थन किया बल्कि अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता भी पहुंचाई थी. यह जंग सिर्फ दो देशों के बीच नहीं थी, इसमें लाखों बांग्लादेशियों के हित भी जुड़े थे. बावजूद इसके अमेरिका ने भारत को सोवियत संघ का करीबी बताकर उसकी आलोचना की थी. 

समंदर में खड़ा ही रह गया जंगी जहाज

निक्सन ने बंगाल की खाड़ी में USS एंटरप्राइज की अगुवाई में सातवां बेड़ा तैनात किया, जिसे भारत के खिलाफ एक सैन्य दबाव के रूप में देखा गया. इसका मकसद भारत को युद्ध में पीछे हटने के लिए मजबूर करना था. हालांकि यह जंगी बेड़ा समंदर में तैनात ही रह गया और भारत ने बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से आजादी दिलाई. इस जंग के दौरान निक्सन ने भारत को दी जाने वाली आर्थिक मदद में कटौती की और भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई.

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अमेरिका के तमाम दबाव के बावजूद भारत ने युद्ध जीता, पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा अलग हुआ, जिसे आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है. निक्सन के भारत विरोधी कदम को उनकी असफलता माना गया. अमेरिका में भी निक्सन की नीतियों की आलोचना हुई, क्योंकि यह मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ा मामला था, जिसे अमेरिका नजरअंदाज कर रहा था. अमेरिकी की नीतियों की वजह से भारत, सोवियत संघ के और करीब आ गया. 1971 में भारत-सोवियत के बीच एक डील साइन हुई, जिसके तहत भारत को रणनीतिक और सैन्य समर्थन देने पर सहमति बनी. 

न्यूक्लियर टेस्ट के बाद लगाए प्रतिबंध

भारत ने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण किया और इस दौरान अमेरिका में बिल क्लिंटन राष्ट्रपति थे. न्यूक्लियर टेस्ट के बाद क्लिंटन प्रशासन ने भारत के खिलाफ कड़े आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए. इनमें विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से भारत का लोन रोकना शामिल था. साथ ही अमेरिका ने भारत के साथ सैन्य सहयोग को सस्पेंड कर दिया और हथियारों की बिक्री पर रोक लगा दी. क्लिंटन ने भारत को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग करने की कोशिश की और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर साइन करने के लिए दबाव डाला.

अमेरिकी दबाव के आगे भारत झुका नहीं और उसने अपनी 'नो फर्स्ट यूज' की परमाणु नीति पर अडिग रहने का फैसला किया. भारत ने NPT पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत किया. हालांकि भारत का साफ मानना है कि वह पहले किसी भी देश पर न्यूक्लियर अटैक नहीं करेगा, जब तक किसी अन्य ने उसपर ऐसा हमला न किया हो. 

ट्रंप फोड़ रहे टैरिफ का बम

क्लिंटन के वक्त में अमेरिका की तरफ से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का असर सीमित रहा, क्योंकि भारत ने स्वदेशी तकनीक को मजबूत किया और रूस और फ्रांस जैसे देशों के साथ सहयोग बढ़ाया. इसके बाद क्लिंटन की साल 2000 की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते फिर से पटरी पर आ गए. आखिर में जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के कार्यकाल में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते को मजबूती मिली.

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डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत के खिलाफ कदम उठाए गए थे. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने भारत को 'टैरिफ किंग' करार दिया और भारतीय निर्यात पर 25% टैरिफ लगाया, जो खासतौर पर स्टील और एल्यूमीनियम पर लागू था. लेकिन दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ज्यादा सख्त और बेलगाम फैसले ले रहे हैं. ट्रंप ने पहले भारत पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया और फिर इसे बढ़ाकर 50% कर दिया.

अवैध प्रवासियों को वापस भेजा

राष्ट्रपति ट्रंप इमिग्रेशन को लेकर लगातार सख्त फैसले ले रहे हैं, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है. पिछले दिनों ट्रंप ने सौ से ज्यादा भारतीय अवैध प्रवासियों को अमेरिका से वापस भेज दिया, जिसे भारत के खिलाफ एक कठोर कदम माना गया. हालांकि अमेरिका से सिर्फ भारतीय की डिपोर्ट नहीं किए गए बल्कि अलग-अलग देशों के अवैध प्रवासियों को वापस भेजा गया है. अभी हाल ही में ट्रंप ने साल के आखिर में भारत में आयोजित होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है.

भारत ने टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने के बजाय कूटनीतिक बातचीत का विकल्प चुना. सरकार ने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने और यूरोप और साउथ-ईस्ट एशिया के वैकल्पिक बाजारों की तलाश शुरू कर दी है. साथ ही भारत अब रूस और चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूती देने की कोशिश कर रहा है, जिससे ट्रंप टैरिफ को जवाब दिया जा सके.

अमेरिका के भीतर उठे विरोध के सुर

अमेरिका के भीतर भी ट्रंप की भारत विरोधी नीतियों का खुलकर विरोध हो रहा है. पूर्व राजदूत निकी हेली, पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी और अर्थशास्त्री जेफरी सैक्स जैसे तमाम विशेषज्ञ ट्रंप टैरिफ को भारत-अमेरिका संबंधों को बिगाड़ने वाला कदम बता रहे हैं. यहां तक कि अमेरिकी अदालत ने भी टैरिफ को गैर-कानूनी करार दिया है. टैरिफ की वजह से अमेरिकी उपभोक्ताओं को भारतीय सामान की ऊंची कीमतों पर मिल रहे हैं, जिससे महंगाई बढ़ी है.

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दूसरी तरफ भारत ने आपदा को अवसर की तरफ लिया है. ट्रंप की नीतियों ने भारत को BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर ज्यादा एक्टिव होने के लिए प्रेरित किया है. भारत ने रूस से तेल खरीद को जारी रखा है, जिससे वैश्विक स्तर पर उसकी स्वतंत्र विदेश नीति मजबूत हुई है. साथ ही चीन के साथ रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की कवायद शुरू हो चुकी है.

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