सोने की कीमतें आसमान छू रहीं हैं और हर रोज एक नया रिकॉर्ड बना रही हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजारों से लेकर भारत के घरेलू मार्केट तक में सोना पहुंच से बाहर होता जा रहा है. वहीं दूसरी ओर दुनियाभर के सेंट्रल बैंक लगातार सोने की खरीद बढ़ाते जा रहे हैं. चीन से लेकर भारत के आरबीआई तक के गोल्ड रिजर्व में तेज बढ़ोतरी हुई है. ये खरीद अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका है और बीते 30 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि वैश्विक केंद्रीय बैंक भंडार में सोना अमेरिकी ट्रेजरी से अधिक हो गया है.
जोरदार डिमांड से आसमान पर भाव
ग्लोबल इकोनॉमिक स्थितियां बदल रही हैं और ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने इसमें जोरदार तेजी ला दी है. दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने अब सोने की खरीदारी प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है और ताबड़तोड़ खरीद के चलते उनके रिजर्व में सोने का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है. दूसरी ओर सोने की कीमतें भी जोरदार डिमांड के चलते अंतरराष्ट्रीय मार्केट में 3,592 डॉलर प्रति औंस के ऑल टाइम हाई लेवल पर पहुंच गई हैं. सिर्फ 2025 में ही इसमें 36% से ज्यादा का उछाल आया है.
1996 के बाद पहली बार हुआ ऐसा
बैंकों द्वारा सोने की खरीद में बढ़ोतरी अमेरिका के लिए बड़ा झटका देने वाली साबित हुई है और करीब 30 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि वैश्विक केंद्रीय बैंक रिजर्व में सोना यूएस ट्रेजरी से आगे निकला है और तमाम संपत्तियों का सम्राट बनकर सिंहासन पर बैठ गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, सोना अब केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार का 20% हिस्सा बन गया है, जो यूरो के 16% हिस्से को पीछे छोड़ रहा है. यही नहीं 1996 के बाद पहली बार अमेरिकी ट्रेजरी से भी आगे निकला है.
हर साल 1000 टन सोने की खरीद
2022 से लेकर बीते साल 2024 तक हर वर्ष सेंट्रल बैंकों द्वारा 1,000 टन से ज्यादा सोना खरीदा जा रहा है, जो 2020 से पहले के औसत से दोगुना है. वहीं इससे पहले तो ये आंकड़ा 100 टन के आस-पास रहता था. यूरोपीय सेंट्रल बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, अब सेंट्रल बैंकों के पार 36,000 टन से अधिक सोना मौजूद है. वहीं चीन जहां अपने फॉरेक्स रिजर्व में विविधता लाने और डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए सोना खरीद और उसके कुल रिजर्व में सोने का हिस्सा करीब 7 फीसदी है. वहीं आरबाई के विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा 10 फीसदी से ज्यादा हो गया है, जो 2021 में 5 फीसदी के आसपास था. इससे अंदाजा लग जाता है कि केंद्रीय बैंक लगातार सोने की खरीद बढ़ा रहे हैं.
इस खरीदारी के पीछे क्या है वजह?
सेंट्रल बैंकों द्वारा सोने की इस बढ़ती खरीदारी के पीछे एक नहीं, बल्कि कई वजह हैं. इजरायल-हमास से लेकर रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध, अमेरिकी प्रतिबंधों की चिंता का सोने की ग्लोबल खरीदारी में बड़ी भूमिका है. इसके अलावा अमेरिका का लगातार बढ़ता कर्ज का बोझ (37 ट्रिलियन डॉलर-अगस्त 2025 तक) और डॉलर में लगातार गिरावट भी कारण है. जो सिर्फ 2025 में अब तक 10 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है. ग्लोबल रिजर्व में 46% की बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले डॉलर के भाव में कमी इसपर भरोसे में कमी आने की ओर इशारा करता है और सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग बढ़ रही है.
'अभी रुकने वाला नहीं है सोना'
यूरोपैक के चीफ इकोनॉमिस्त पीटर शिफ ने वर्तमान अमेरिकी हालातों के बारे में बात करते हुए कहा है कि यूएस फेड के कमजोर पड़ने से सोना और बॉन्ड यील्ड में पहले से ही बढ़ोतरी हो रही है. अमेरिका में रोजगार के आंकड़े कमजोर होने और ब्याज दरों में कटौती की संभावना के बीच, सोने की तेजी कम होने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है. वहीं दूसरी ओर ट्रेड वॉर की स्थिति और अमेरिका पर बढ़ता कर्ज इस रुझान को और तेज कर सकता है.
1.25 लाख रुपये का 10 ग्राम होगा सोना!
गोल्डमैन सैश का अनुमान है कि अगर 30 ट्रिलियन डॉलर के अमेरिकी ट्रेजरी बाजार का 1 फीसदी हिस्सा भी सोने में चला जाए, तो इसकी कीमतें 5,000 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती हैं, जो मौजूदा स्तर से 43% ज्यादा होंगी. भारत में आईसीआईसीआई बैंक की ओर से साल 2026 के मध्य तक सोने की कीमत 1,25,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंचने का अनुमान जाहिर किया गया है. बता दें सप्ताह के पहले कारोबारी दिन सोमवार को एमसीएक्स पर सोने की कीमतें 1,08,732 रुपये प्रति 10 ग्राम के नए हाई पर पहुंच गईं.
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