नेपाल में सोशल मीडिया बैन से भड़के युवा आंदोलन ने गुरुवार को नया मोड़ ले लिया. ‘Gen Z’ प्रदर्शनकारियों के एक धड़े ने नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के पूर्व कार्यकारी प्रमुख कुलमन घिसिंग का नाम अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में प्रस्तावित किया. इससे पहले पूर्व सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम सबसे आगे चल रहा था, लेकिन प्रदर्शनकारियों का एक हिस्सा उनके खिलाफ हो गया और कहा कि संविधान उन्हें प्रधानमंत्री बनने की अनुमति नहीं देता.
गौरतलब है कि हजारों युवाओं ने पहले ऑनलाइन वोटिंग में सुशीला कार्की का समर्थन किया था. लेकिन बाद में यह तर्क दिया गया कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश या जज प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. इसके अलावा, काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने साफ कर दिया कि वह इस जिम्मेदारी को नहीं लेना चाहते. वहीं इस रेस में धरान नगरपालिक के मेयर हर्क सम्पांग का नाम भी आया, लेकिन उन्हें सर्वमान्य उम्मीदवार मानने पर सहमति नहीं बनी.
बालेन शाह, कार्की के होते नए नाम की जरूरत क्यों पड़ी?
वहीं प्रदर्शनकारी युवाओं के एक धड़े ने अपने बयान में कहा, 'चूंकि बालेन शाह ने रुचि नहीं दिखाई, हर्क सम्पांग सबको साथ नहीं ले पाएंगे और सुशीला कार्की 70 वर्ष से अधिक उम्र की और अयोग्य हैं, इसलिए यह तय किया गया कि कुलमन घिसिंग जैसे देशभक्त और सबके चहेते शख्स को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करना चाहिए.'
54 वर्षीय घिसिंग को नेपाल में उस शख्सियत के रूप में जाना जाता है, जिसने वर्षों तक चली बदनाम ‘लोडशेडिंग’ समस्या को खत्म किया था. एक समय नेपाल में 18 घंटे तक बिजली कटौती होती थी, जिसे घिसिंग ने खत्म कर देश को बड़ी राहत दी. उन्होंने भारत के झारखंड, जमशेदपुर स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी.
सोमवार से शुरू हुआ Gen-Z आंदोलन
बताते चलें कि सोमवार को शुरू हुए Gen Z आंदोलन ने पूरे नेपाल को झकझोर दिया है. शुरुआत सरकार द्वारा फेसबुक, एक्स (Twitter) और यूट्यूब समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध से हुई. सरकार का दावा था कि इन कंपनियों ने स्थानीय नियामकों के साथ पंजीकरण नहीं कराया, लेकिन आम जनता ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया. इसके बाद राजधानी काठमांडू से लेकर कई शहरों तक युवा सड़कों पर उतर आए.
प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गए. सुरक्षाबलों ने आंसू गैस, रबर बुलेट और गोलियों तक का इस्तेमाल किया, जिसमें अब तक 34 प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं और 1,000 से ज्यादा घायल हैं. इस भारी दबाव के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने गुरुवार को इस्तीफा दे दिया.
इधर, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने भी बयान जारी कर कहा है कि वे Gen-Z समूह से सहयोग को तैयार हैं, लेकिन कोई भी फैसला संविधान और कानूनी प्रक्रिया के तहत ही होना चाहिए. इस बीच, राजधानी में स्थित सेना मुख्यालय में गुरुवार को गहन विचार-विमर्श जारी रहा, जिसमें सुशीला कार्की और राजतंत्र समर्थक नेता दुर्गा प्रसाई भी मौजूद रहे.
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