जम्मू और कश्मीर सेवा चयन बोर्ड (जेकेएसएसबी) ने नायब तहसीलदार भर्ती के उम्मीदवारों से 6.43 करोड़ रुपये से ज़्यादा आवेदन शुल्क वसूला है. सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, सिर्फ़ 75 नायब तहसीलदार पदों के लिए हुई भर्ती फायदेमंद साबित हुई है. सामान्य वर्ग के लिए प्रत्येक फॉर्म की क़ीमत 600 रुपये और आरक्षित वर्ग के लिए 500 रुपये है.
आरटीआई कार्यकर्ता रमन कुमार शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कुल राशि से पता चलता है कि एक लाख से ज़्यादा उम्मीदवारों ने इन पदों के लिए आवेदन किया था, लेकिन पिछले महीने भर्ती प्रक्रिया स्थगित होने से ये उम्मीदवार अब अधर में लटक गए हैं. हालांकि, यह भर्ती दोबारा आयोजित होगी या नहीं, इसे लेकर कोई नोटिफिकेशन सामने नहीं आया है.
75 पदों के लिए आए एक लाख आवेदन
आरटीआई आवेदन दायर करने वाले शर्मा ने आगे कहा कि 75 पदों के लिए एक लाख से ज़्यादा उम्मीदवारों का परीक्षा देना बेरोज़गारी के बढ़ते संकट को बयां करता है, यह उन शिक्षित युवाओं की हताशा को दर्शाता है, जिनके पास डिग्रियां और योग्यताओं के बावजूद बहुत कम अवसर बचे हैं.
शर्मा ने आगे रहा कि हज़ारों उम्मीदवारों के लिए, जिनमें से कई आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्ठभूमि से हैं. भर्ती प्रक्रिया को स्थगित करने का मतलब न केवल उम्मीदों का टूटना है बल्कि उनकी मेहनत की कमाई का भी नुकसान है क्योंकि जमा किए गए आवेदन शुल्क की कोई वापसी नीति नहीं है.
जेकेएसएसबी ने प्रश्न के जवाब में कहा कि राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार के 75 पदों के लिए उम्मीदवारों से 9 जून को 6,43,28,400 रुपये की राशि फीस के रूप में एकत्र की गई थी. जेकेएसएसबी द्वारा केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट), जम्मू द्वारा भर्ती के लिए ‘केवल उर्दू’ नियम पर रोक लगाने के बाद अगली सूचना तक भर्ती स्थगित करने के एक सप्ताह बाद रमन कुमार शर्मा ने 21 जुलाई को आरटीआई आवेदन दायर किया था.
कार्यकर्ता ने नौकरी की अधिसूचना के जवाब में प्राप्त आवेदनों की कुल संख्या और उनसे ली गई राशि का विवरण मांगा था. जेकेएसएसबी के जन सूचना अधिकारी ने 2 अगस्त को अपने जवाब में चयन प्रक्रिया पूरी होने से पहले आवेदनों की संख्या की जानकारी साझा करने से इनकार कर दिया, लेकिन कुल ली गई फीस का विवरण शेयर किया.
उर्दू भाषा को लेकर शुरू हुआ विवाद
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, नायब तहसीलदार भर्ती को लेकर सबसे बड़ा विवाद उर्दू भाषा की अनिवार्यता पर हुआ. विज्ञापन जारी होने के तुरंत बाद ही जम्मू क्षेत्र में लोगें ने इसका विरोध किया साथ ही भाजपा ने इसे "भेदभावपूर्ण आदेश" बताया और प्रोटेस्ट किया, जिसमें मांग रख गई ही भर्ती प्रक्रिया को रद्द किया जाए.
इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस प्रावधान का बचाव किया. उन्होंने कहा कि आज़ादी से पहले से ही राजस्व विभाग के सारे रिकॉर्ड उर्दू में लिखे जाते हैं और अगर कर्मचारी भाषा नहीं जानते तो वे काम नहीं कर पाएंगे. अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि पहले भी जो अफसर उर्दू नहीं जानते थे उन्हें नियुक्ति के बाद भाषा सीखने का समय दिया जाता था.
14 जुलाई को उर्दू की अनिवार्यता पर लगाई थी रोक
14 जुलाई को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने इस नियम पर रोक लगा दी, जिसमें नायब तहसीलदार पद के लिए स्नातक के साथ उर्दू का ज्ञान अनिवार्य किया गया था. इस पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आईं. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कोर्ट के आदेश पर नाराज़गी जताई और कहा कि उर्दू को सांप्रदायिक रंग में पेश किया जा रहा है. उनके मुताबिक यह प्रावधान प्रशासनिक दक्षता के लिए था, न कि किसी राजनीतिक या धार्मिक आधार पर.
---- समाप्त ----