दर्जनों हमलों के बाद भी जिंदा है अलकायदा, क्या है इसका ऑपरेटिंग मॉडल?

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इस्लामिक देशों में फैले आतंकी संगठनों की बात करें तो अलकायदा के बगैर ये लिस्ट पूरी नहीं हो सकती. नब्बे की शुरुआत में अफगानिस्तान से शुरू हुआ ये गुट ओसामा बिन लादेन के साथ ही अपने चरम पर पहुंच गया. 9/11 अटैक के बाद अमेरिका ने अपने साथी देशों के साथ मिलकर इसे खत्म करने की ठानी. हालांकि दो दशक की कोशिश के बाद भी संगठन पूरी तरह से मिटा नहीं, बल्कि हेडक्वार्टर बदल लिया. अब अफ्रीकन देश माली में इसी संगठन ने तीन भारतीयों को अगवा कर लिया है. 

यहां कई बातों पर बात हो सकती है

- वेस्ट की कोशिशों के बाद भी कहां कमी रह गई, जो कमजोर होकर भी फिर लौट आता है ये आतंकी संगठन. 

- क्या है इसका ऑपरेटिंग मॉडल और कौन कर रहा है फंडिंग. 

- एशिया से हटकर अफ्रीका की तरफ क्यों और कैसे चला गया. 

- अलकायदा से लेकर इस्लामिक स्टेट तक सारे इस्लामिक संगठन क्या एक विचारधारा रखते हैं, या एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा रहे. 

सोवियत के खिलाफ हुआ था जन्म, फिर यूएस बना दुश्मन

अलकायदा की शुरुआत सत्तर से अस्सी के दशक के बीच हुई. तब सोवियत संघ (अब रूस) ने अफगानिस्तान में जंग छेड़ी हुई थी. इधर वेस्ट हमेशा की तरह घबराया और रूस की काट के लिए जेहाद के नाम पर अफगानिस्तान में लड़ने के लिए मुस्लिम युवाओं को समर्थन देना शुरू कर दिया. अमेरिका से लेकर सऊदी ने भी लड़ाकों को हथियार और ट्रेनिंग दी. इसी दौरान ओसामा बिन लादेन सऊदी से पाकिस्तान पहुंचा. उसने न केवल इसमें फंडिंग की, बल्कि खुद भी सक्रिय लड़ाई में आ गया. ओसामा ने ही साल 1988 में एक नेटवर्क खड़ा किया, जिसे नाम दिया अलकायदा यानी नींव या फाउंडेशन.

osama bin laden al qaeda photo Wikipedia

क्या था मकसद

अपील की गई कि दुनियाभर के मुस्लिम एकजुट होकर ग्लोबल स्तर पर जेहाद छेड़ें. लादेन का मानना था कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश इस्लाम के दुश्मन हैं और उनका कमजोर पड़ना या खत्म होना जरूरी है. 

साल 1989 में सोवियत फौजें अफगानिस्तान से बाहर चली गईं. अब देश में लड़ाके ही लड़ाके थे लेकिन कोई साफ मकसद नहीं था. तभी अलकायदा ने पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका को टारेगट करना शुरू किया. 

किस तरह कर रहा था काम

तब इस संगठन का काम का तरीका फोकस्ड था. उसने दुनियाभर में नेटवर्क बनाया. छोटे-छोटे समूह अलग देशों में काम करते लेकिन किसी न किसी तरह से आपस में कनेक्टेड होते. उन्हें आत्मघाती हमलों की ट्रेनिंग भी मिली. मकसद साफ था, अमेरिका और उसके दोस्तों को जहां भी मौका मिले, चोट दी जाए. 

इसी कड़ी में 9/11 हमला हुआ और फिर अलकायदा के बुरे दिन शुरू हो गए. अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और कथित तौर पर संगठन को खत्म कर दिया. लेकिन असल में आतंकी कमजोर होकर बस यहां-वहां फैल गए. 

अब काम का क्या तरीका

अब ये अफगानिस्तान की बजाए डी-सेंट्रलाइज्ड मॉडल बन चुका है, जिसका मकसद ग्लोबल जेहाद है. ये अलग देशों में अलग-अलग नामों से काम करते हैं. अलकायदा इन द इस्लामिक मगरेब अफ्रीका के पश्चिम में है, जिसने अगवा करने की हालिया कार्रवाई की. हर जगह ये स्थानीय आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि नए सिरे से अपनी जमीन न बनानी पड़े. 

अलकायदा भले ही उतना सुर्खियों में न हो जितना नब्बे के वक्त था, लेकिन जिंदा आज भी है. अब ये शैडो संगठन की तरह काम कर रहा है, जो लोकल गुटों की जमीन इस्तेमाल करता है. अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद इसकी वापसी की खबरें आ जाती हैं. पाक के  खैबर-पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में कुछ पुरानी कट्टरपंथी जमातें अब भी अलकायदा से जुड़ी हैं. हालांकि यमन, सीरिया और अफ्रीका के कुछ देशों में ये अपनी जड़ें जमा चुका. 

islamic state of iraq and syria photo AP

फंडिंग कहां से आती है

- खाड़ी देशों में इसके कई समर्थक रहे, जो ग्लोबल जेहाद के नाम पर चंदा देते थे, लेकिन ये अब कम हो चुका. 

- फर्जी चैरिटी संस्थाएं कॉज के नाम पर पैसे जमा करती हैं, लेकिन फंडिंग इसे मिलती है.

- ड्रग्स, हथियारों की तस्करी, अपहरण जैसे कामों से इसे काफी पैसे मिल रहे हैं. 

क्या अब भी सॉफ्ट सपोर्ट मिल रहा

नब्बे के दौर में अलकायदा को मुस्लिम दुनिया से बैकडोर सहानुभूति मिलती रही. खासकर जो देश अमेरिका और इजरायल के खिलाफ रहे, वे इसके साथ रहे. लेकिन 9/11 अटैक के बाद इसकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरा. वैसे किसी भी देश ने कभी नहीं माना कि उसके तार अलकायदा से जुड़े रहे. एक दिलचस्प कूटनीतिक एंगल यहां भी आता है. ईरान शिया देश है और अलकायदा सुन्नी कट्टर संगठन. इसके बाद भी 9/11 के बाद कुछ अलकायदा लीडर्स ईरान में शेल्टर लेकर रहे. अमेरिकी और इजरायली खुफिया एजेंसियों ने दावा किया कि तेहरान यूएस से अपनी दुश्मनी के चलते उन्हें बचा रहा है. 

क्या इस्लामिक स्टेट ने अलकायदा को रिप्लेस कर दिया

ISIS साल 2014 से तेजी से ऊपर आया. उसने सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा करते हुए पूरी दुनिया को चौंका दिया. अब डिजिटल मीडिया भी आ चुका था. इस्लामिक स्टेट ने इसे अपनाते हुए लाखों युवाओं का ब्रेनवॉश कर दिया. मुस्लिम देशों ही नहीं, पश्चिमी मुल्कों से भी लोग इस्लामिक स्टेट के लिए सीरिया या इराक आने लगे. इस दौरान अलकायदा का असर कम होने लगा. कुछ जगहों पर दोनों के बीच टकराव भी हुआ. हालांकि अमेरिकी सैन्य कार्रवाई से इस्लामिक स्टेट कमजोर हो गया, जिसे अलकायदा ने मौके की तरह लपका. वो दोबारा अपनी जमीन मजबूत करने में जुट गया. 

लड़ाके कहां से आ रहे हैं

अलकायदा भर्ती के लिए इंटरनेट का भरपूर इस्तेमाल करता है. इसके लिए वो यूट्यूब और टेलीग्राम का सहारा लेता है ताकि गोपनीयता भी बनी रहे और नेटवर्क भी फैलता रहे. ये युवाओं को एक ग्लोबल मिशन का सपना देता है जो उन्हें जमीनी हकीकत से काट देता है. यानी पुरानी ताकत पाए बगैर अलकायदा अब भी सर्वाइवल मोड में है और सरकारों के कमजोर होते ही अपनी विचारधारा को दोबारा फैला सकेगा. 

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