आने वाली 6 जुलाई को तिब्बती बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा 90 वर्ष के हो जाएंगे और इससे पहले ही उनके उत्तराधिकार का विवाद नई चर्चा का विषय बन चुका है. चीन इस बात पर जोर दे रहा है कि किसी भी भावी उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी लेनी होगी. चीन के इस बयान ने चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म के दशकों पुराने संघर्ष को और बढ़ा दिया है, साथ ही बौद्ध धर्म की मान्य संस्था दलाई लामा के इतिहास में एक नया अध्याय भी जोड़ दिया है.
क्या है दलाई लामा का अर्थ?
इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि को समझने के लिए जरूरी है कि 'दलाई लामा' के अर्थ, इतिहास और इस शब्द की उत्तत्ति पर निगाह डाली जाए. दलाई लामा शब्द का अर्थ है 'महासागर शिक्षक'. संभवतः इस पद को यह नाम ज्ञान और दर्शन शास्त्र की गहराई से जानकारी की वजह से मिला होगा. पहली बार 1580 में मंगोल सरदार अल्तान खान की ओर से तीसरे दलाई लामा, सोनम ग्यात्सो को यह उपाधि दी गई थी.
क्या था उस दौर में महत्व, पहले-दूसरे दलाई लामा कौन थे?
उस दौर में यह उपाधि आध्यात्मिक और राजनीतिक गठबंधन का प्रतीक बनी. हालांकि गेदुन त्रुप्पा (जन्म 1391) को बहुत बाद में (मरणोपरांत) प्रथम दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई, उनके जीवनकाल में उन्हें यह उपाधि कभी नहीं मिली. सोनम ग्यात्सो के दो पूर्ववर्तियों को दलाई लामा वंश को स्थापित करने के लिए यह मान्यताएं दी गईं. शुरू में गेलुग्पा संप्रदाय के धार्मिक नेता, 17वीं शताब्दी तक दलाई लामा तिब्बत के सर्वोच्च आध्यात्मिक और राजनीतिक व्यक्ति बन गए.
त्सेपोन डब्ल्यू डी शकाब्पा अपनी पुस्तक "तिब्बत: एक राजनीतिक इतिहास" में इस बात को बहुत ब्यौरेवार दर्ज करते हैं. किताब में लिखा मिलता है कि, 'दलाई लामाओं की उत्पत्ति और उनके सत्ता में आने को समझने के लिए 15वीं शताब्दी में जाना जरूरी है. पहले दलाई लामा के रूप में मरणोपरांत प्रसिद्ध लामा का नाम गेदुन त्रुप्पा था. उनका जन्म 1391 में त्सांग के शबतोद में हुआ था. उन्होंने 1405 में नार्थांग मठ में त्रुप्पा शेरब के समक्ष गेत्सुल की शपथ ली, जो भिक्षु जीवन का पहला चरण है.'

इसी किताब की मानें तो 1447 में गेदुन त्रुप्पा ने दर्ग्यास पोन पालज़ांग की वित्तीय सहायता से शिगात्से में ताशील्हुनपो मठ की स्थापना की. 1474 में 84 वर्ष की आयु में ताशील्हुनपो में उनका निधन हो गया. अगले वर्ष, 1475 में, त्सांग के तनाग सेगमे में गेदुन ग्यात्सो का जन्म हुआ. उन्हें गेदुन त्रुप्पा का अवतार माना गया और मरणोपरांत उन्हें दूसरा दलाई लामा कहा गया.
चखोरग्याल मठ की स्थापना
1509 में, गेदुन ग्यात्सो ने ल्हासा से लगभग 90 मील दक्षिण-पूर्व में चखोरग्याल मठ की स्थापना की, जहां एक झील है जिसके प्रतिबिंबों में भविष्य की घटनाओं की भविष्यवाणी होने की मान्यता है. कहा जाता है कि तेरहवें और चौदहवें दलाई लामा के अवतारों की खोज से संबंधित भविष्यवाणियां इस झील के प्रतिबिंबों में देखी गई थीं.'
कौन था अल्तान खान?
गेदुन ग्यात्सो का 1542 में 65 वर्ष की आयु में द्रेपुंग मठ में निधन हो गया. "तिब्बत और मंगोलिया का ऐतिहासिक बंधन दलाई लामा का आध्यात्मिक और राजनीतिक व्यक्ति के रूप में उदय सोनम ग्यात्सो और तुमात मंगोलों के नेता अल्तान खान के बीच ऐतिहासिक बंधन से जुड़ा है. अल्तान खान ने तिब्बती बौद्ध धर्म के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की और 1577 में सोनम ग्यात्सो को मंगोलिया आने के लिए मनाया. वहां सोनम ग्यात्सो ने बौद्ध धर्म की शिक्षा दी, जिसके परिणामस्वरूप अल्तान खान का बौद्ध धर्म में रूपांतरण हुआ. कृतज्ञता में, अल्तान खान ने उन्हें "दलाई लामा" की उपाधि दी, जिसका अर्थ मंगोल भाषा में "महासागर" है. इस घटना ने तिब्बत और मंगोलिया को जोड़ा, जिसने क्षेत्र के आध्यात्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को सदियों तक प्रभावित किया.
त्सेपोन डब्ल्यू.डी. शकाब्पा अपनी पुस्तक में लिखते हैं- "एक वर्ष बाद, सोनम ग्यात्सो का जन्म ल्हासा के पास तोहलुंग में हुआ. उन्हें द्रेपुंग मठ के दिवंगत मठाधीश गेदुन ग्यात्सो का अवतार माना गया. सोनम ग्यात्सो ने द्रेपुंग मठ में अध्ययन किया और सोनम द्रकपा से अपनी अंतिम शपथ ली. 1559 में नेदोंग गोङ्गमा ने सोनम ग्यात्सो को नेदोंग आने का निमंत्रण दिया. वे गोङ्गमा के निजी शिक्षक बने, जिन्होंने उन्हें लाल स्याही के साथ उपयोग होने वाली एक विशेष मुहर दी. यह विशेषाधिकार केवल खास और बेहद महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए था.
अल्तान खान ने सोनम ग्यात्सो को मंगोलिया बुलाया
अल्तान खान ने सोनम ग्यात्सो को मंगोलिया आने का निमंत्रण दिया, लेकिन लामा ने इसे अस्वीकार कर दिया. कुछ वर्षों बाद, अल्तान खान ने ऊंटों, घोड़ों के साथ एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल तिब्बत भेजा, फिर से सोनम ग्यात्सो को आने का अनुरोध किया. इस बार लामा सहमत हो गए. वे 1577 के Fire-Ox के ग्यारहवें महीने की सत्ताईसवीं तारीख को द्रेपुंग से रवाना हुए.
ल्हासा से लगभग नब्बे मील उत्तर में दम क्षेत्र तक उन्हें तीन बड़े मठों के भिक्षुओं, नेदोंग गोङ्गमा के प्रतिनिधियों और विभिन्न कुलीनों ने विदाई दी. सोनम ग्यात्सो ने खान और उनके लोगों के लिए धार्मिक शिक्षा का कार्यक्रम शुरू किया और एक अवसर पर पूरे जनसमूह के लिए खुली जनसभा में उपदेश दिया. अल्तान खान बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए."
16वीं सदी, जो मंगोलों में सुधारों का दौर बनकर आई
16वीं शताब्दी में, मंगोल शासक अल्तान खान ने सोनम ग्यात्सो की शिक्षाओं को अपनाया, और अपने क्षेत्र में मंगोलों, तिब्बतियों और चीनी लोगों के बीच नैतिक आचरण और आध्यात्मिक अनुशासन को बढ़ावा दिया. उन्होंने भगवान बुद्ध के दस सिद्धांतों को लागू किया. अल्तान खान ने पारंपरिक मृत्यु रीति-रिवाजों में सुधार किया, मृतकों के साथ पत्नियों, निजी सेवकों, घोड़ों और पशुओं की बलि देने पर प्रतिबंध लगाया. पशुओं को केवल सहमति से मठों और लामाओं को दिया जा सकता था, और बदले में परिवार मृतक के लिए प्रार्थना करने का अनुरोध कर सकता था.
मानव या पशु बलि देने वालों को मृत्युदंड या संपत्ति जब्ती का दंड दिया जाता था. यदि कोई घोड़ा या अन्य पशु बलि दी जाती थी, तो मारे गए पशुओं की संख्या का दस गुना जब्त किया जाता था. भिक्षु या लामा को चोट पहुंचाने वाले को कठोर दंड दिया जाता था. इन सुधारों ने सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा दिया और मंगोलियाई शासन में बौद्ध धर्म को एकीकृत किया, जिससे करुणा और जीवन के प्रति सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक बदलाव आया.

...फिर ऐसे मिली दलाई लामा की उपाधि
त्सेपोन डब्ल्यू.डी. शकाब्पा अपनी पुस्तक में लिखते हैं, इसके बाद सोनम ग्यात्सो (तीसरे दलाई लामा), को "दलाई लामा" की उपाधि से सम्मानित किया गया, जिसका अर्थ मंगोल भाषा में "महासागर" है, जो उनकी विशाल आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता और अधिकार का प्रतीक है. उन्हें "दोरजे चांग" (वज्र धारक) शीर्षक के साथ एक मुहर भी दी गई, जो आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक थी. बदले में, उन्होंने अल्तान खान को "धार्मिक राजा, देवताओं का ब्रह्मा" की उपाधि दी और भविष्यवाणी की कि खान के वंशज अस्सी वर्षों के भीतर मंगोलिया और चीन के शासक बनेंगे. इस गठबंधन ने थेचेन चोन्खोर मठ की स्थापना की, जो बौद्ध धर्म का केंद्र और तिब्बती-मंगोल संबंधों का प्रतीक बन गया. इस सहयोग ने मंगोलिया और चीन में तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रसार को प्रेरित किया.
दलाई लामा में अध्यात्मिक शक्ति की मान्यता
जिस खुले स्थान पर दलाई लामा ने उपदेश दिया था और जहां उपाधियों और उपहारों का आदान-प्रदान हुआ था, वह अब पवित्र हो गया. दलाई लामा ने वहां एक मठ स्थापित करने का प्रस्ताव दिया, और अल्तान खान ने इस परियोजना को वित्तपोषित करने के लिए सहमति दी. मठ का नाम थेचेन चोन्खोर रखा गया. कई मंगोल कबीलों के नेता और कुछ चीनी गणमान्य व्यक्तियों ने, दलाई लामा की आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में सुनकर, उन्हें अपने क्षेत्रों में आमंत्रित किया."
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