दिल्ली-NCR का पॉल्यूशन 'लॉक' क्यों हो जाता है? हिमालय-अरावली से जानिए कनेक्शन

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दिल्ली-एनसीआर की हवा अक्सर इतनी जहरीली हो जाती है कि इसे गैस चैंबर कहा जाने लगा है. सर्दियों में तो सांस लेना मुश्किल हो जाता है. लेकिन ऐसा क्यों होता है? क्या सिर्फ गाड़ियां और फैक्ट्रियां जिम्मेदार हैं? नहीं, बल्कि प्रकृति की कुछ खास परिस्थितियां प्रदूषण को यहां लॉक कर देती हैं. आइए समझते हैं कि कैसे दिल्ली का यह छोटा-सा इलाका कैसे प्रदूषण का जेल बन जाता है? 

दिल्ली की भौगोलिक स्थिति: एक प्राकृतिक कटोरा

दिल्ली-NCR इंडो-गंगा मैदान में बसी है, जो हिमालय की तलहटी में एक सपाट इलाका है. उत्तर में हिमालय की ऊंची चोटियां, दक्षिण में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी – ये सब मिलकर दिल्ली को एक कटोरे जैसी शक्ल देते हैं. यह कटोरा प्रदूषण को फंसाने का काम करता है. 

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कैसे? हवा में उड़ने वाले कण (जैसे धूल या धुआं) आसपास के इलाकों से आते हैं, लेकिन पहाड़ियां उन्हें बाहर नहीं जाने देतीं. उदाहरण के लिए, पंजाब-हरियाणा से जलने वाली पराली का धुआं सीधे दिल्ली पहुंच जाता है, लेकिन हिमालय उसे उत्तर की ओर नहीं जाने देते. नतीजा? प्रदूषण इकट्ठा होता जाता है.

Delhi gas chamber effect

तथ्य: एक अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली की यह भौगोलिक स्थिति प्रदूषण को 30-50% तक बढ़ा देती है, भले ही दिल्ली में कोई उत्सर्जन न हो. यह कटोरा सर्दियों में और खतरनाक हो जाता है, जब हवा की गति कम हो जाती है.

तापमान उलटाव: प्रदूषण की ढक्कन

सबसे बड़ा राज़ है "तापमान उलटाव" (टेम्परेचर इनवर्शन). आमतौर पर ऊंचाई बढ़ने पर तापमान कम होता है, लेकिन सर्दियों में उल्टा हो जाता है – जमीन के पास ठंडी हवा, ऊपर गर्म हवा. यह गर्म हवा ठंडी हवा पर "ढक्कन" की तरह बैठ जाती है. प्रदूषण नीचे फंस जाता है. 

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  • सरल उदाहरण: सोचिए, एक कमरे में धुआं है. अगर छत बंद हो जाए, तो धुआं बाहर नहीं जा पाएगा. वैसे ही, इनवर्शन प्रदूषण को जमीन के 200-300 मीटर ऊपर तक सीमित कर देता है.
  • सर्दी में क्यों? दिसंबर-फरवरी में तापमान 10-15 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है. नमी 80% तक पहुंच जाती है. इससे कोहरा बनता है, जो प्रदूषण के कणों को चिपका लेता है.
  • आंकड़े: एक रिसर्च में पाया गया कि इनवर्शन के दौरान PM2.5 (बारीक कण) की मात्रा 45% तक बढ़ जाती है. दिल्ली में सर्दियों में मिक्सिंग हाइट (हवा में प्रदूषण फैलने की ऊंचाई) सिर्फ 200-300 मीटर रह जाती है, जबकि गर्मियों में 1 किलोमीटर. 

WHO का मानक PM2.5 के लिए सालाना 5 माइक्रोग्राम/घन मीटर है, लेकिन दिल्ली में सर्दियों में यह 100-300 माइक्रोग्राम/घन मीटर तक पहुंच जाता है.

Delhi gas chamber effect

मौसम की भूमिका: हवा की शांति और सूखापन

मौसम भी प्रदूषण को लॉक करने में पार्टनर है. सर्दियों और पोस्ट-मॉनसून (अक्टूबर-नवंबर) में हवा की रफ्तार 1 मीटर/सेकंड से कम हो जाती है. बारिश न होने से प्रदूषण धुलता नहीं.

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  • स्टैग्नेशन (स्थिरता): वैज्ञानिक इसे एटमॉस्फेरिक स्टैग्नेशन कहते हैं. इंडो-गंगा प्लेन में साल में 101 दिन ऐसे होते हैं, जब हवा स्थिर रहती है. इन दिनों PM2.5 45 माइक्रोग्राम/घन मीटर ज्यादा बढ़ जाता है. 
  • नमी और कोहरा: उच्च नमी (70-80%) प्रदूषण को जमाती है. मॉनसून में बारिश (0.29-7.83 मिमी प्रतिदिन) प्रदूषण को 20-30% कम कर देती है, लेकिन सर्दी में यह मदद नहीं करती. 
  • तथ्य: 2017 के नवंबर में ग्रेट स्मॉग के दौरान AQI 360-823 तक पहुंच गया, जो गंभीर श्रेणी है. PM10 768 माइक्रोग्राम/घन मीटर और PM2.5 374 माइक्रोग्राम/घन मीटर था – यह सुरक्षित सीमा (100 और 60) से 5-14 गुना ज्यादा. 

Delhi gas chamber effect

वैज्ञानिक अध्ययन: क्या कहते हैं विशेषज्ञ

  • नेचर कम्युनिकेशंस (2024): स्टैग्नेशन इंडेक्स से पता चला कि जलवायु परिवर्तन से सर्दियों में स्टैग्नेशन 1 दिन/डिग्री ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगा, PM2.5 7 माइक्रोग्राम/घन मीटर ज्यादा. 
  • PMC स्टडी (2022): दिल्ली के 8 इलाकों में PM2.5 उत्तर-पश्चिम में 106 माइक्रोग्राम/घन मीटर, जबकि मॉनसून में 20% कम. इनवर्शन और कम हवा ने सर्दी में प्रदूषण दोगुना किया. 
  • EHP जर्नल (2018): नवंबर 2017 के स्मॉग में PM2.5 999 माइक्रोग्राम/घन मीटर तक पहुंचा, ट्रैफिक वाले इलाकों में 3 गुना ज्यादा. 
  • रीडिंग यूनिवर्सिटी (2025): अरावली और हिमालय ने प्रदूषण को बाउल में फंसा दिया, सर्दी में AQI 400+. 

ये अध्ययन बताते हैं कि प्रदूषण सिर्फ लोकल समस्या नहीं, बल्कि मौसम और भूगोल से जुड़ी है.

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