दिवाली का पर्व न केवल दीपों की जगमगाहट और आतिशबाजियों की चमक का उत्सव है, बल्कि यह धन-समृद्धि और सुख-शांति की कामना का प्रतीक भी है. इस मौके पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. पुराणों में देवी लक्ष्मी को समुद्र मंथन से उत्पन्न बताया गया है, और उसी समुद्र से निकला शंख भी उनका भाई माना जाता है. इसीलिए देवी लक्ष्मी की पूजा में शंख नहीं बजाते हैं. मान्यता है कि देवी की आरती के समय शंख बजाने से देवी नाराज होती हैं. इसीलिए देवी की पूजा में भोंपू बजाने का चलन है.
शंख वैसे तो कई प्रकार के होते हैं, लेकिन पूजा-पाठ में उपयोग के आधार पर इन्हें दो प्रकार का माना गया है वामावर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख. दक्षिणावर्ती शंख तो बेहद चमत्कारी होता है और यह देवी लक्ष्मी का स्वरूप उनका सगा भाई माना जाता है. क्योंकि रत्न के रूप में जब देवी की उत्पत्ति हुई तब वह कमल पर आसीन थीं और शंख के साथ अपने पूर्ण शृंगार रूप में प्रकट हुई थीं. इसी रूप में उन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया था, इसीलिए विवाह परंपरा में कन्या का पूर्ण शृंगार करके उसे मंडप में बैठाया जाता है.
देवी लक्ष्मी के साथ प्रकट होने के कारण शंख भी उनके समान पवित्र और पूजनीय हो गया है. तंत्र शास्त्र में लक्ष्मी का निवास शंख में ही माना गया है. दक्षिणावर्ती शंख घर में स्थापित हो और उसकी पूजा में कोई भी अपवित्रता न हो और यह सिद्ध हो जाए तो अपार धन की वर्षा करता है. इसीलिए दिवाली की रात में इसकी पूजा करने से दरिद्रता का नाश होता है और लक्ष्मी का वास स्थायी हो जाता है.
शंख की पूजा का प्राचीन महत्व हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है. इसकी पूजा का मंत्र "
त्वं पुरा सागरोत्पन्नः विष्णुनाविघृतःकरे
देवैश्चपूजितः सर्वथै पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते" है, और इसी के जाप के साथ इसकी आराधना की जाती है. सामान्य शंख वामावर्ती होते हैं, जिनका मुंह बाईं ओर खुलता है और ये बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. मंदिरों में भी इन्हीं का उपयोग पूजा में होता है. लेकिन दक्षिणावर्ती शंख दुर्लभ है, इसका मुंह दाईं ओर खुलता है, जो दक्षिण दिशा की भंवर जैसा प्रतीत होता है. तंत्र शास्त्र में इसे वामावर्ती शंख से श्रेष्ठ माना गया है. अधिकांश दक्षिणावर्ती शंख मुख बंद होते हैं और इन्हें बजाया नहीं जाता,बल्कि केवल पूजा-अनुष्ठानों में रखा जाता है. दिवाली पर इसकी स्थापना लक्ष्मी पूजन को और प्रभावशाली बना देती है, क्योंकि दोनों की उत्पत्ति समुद्र से ही हुई है. जहां यह शंख होता है, वहां लक्ष्मी स्थिर रहती हैं.
दक्षिणावर्ती शंख के अनेक लाभ
शास्त्रों में दक्षिणावर्ती शंख के अनेक लाभ वर्णित हैं, जो दिवाली की लक्ष्मी साधना के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं. यह राज-सम्मान प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति को उच्च पदवी और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. यह लक्ष्मी वृद्धि सुनिश्चित करता है, यानी धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती. यश और कीर्ति में वृद्धि होती है, जो सामाजिक सम्मान बढ़ाती है. संतान प्राप्ति का वरदान देता है, विशेषकर बांझपन से मुक्ति प्रदान करता है.
यह आयु की वृद्धि करता है, जिससे दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. शत्रु भय और सर्प भय से मुक्ति दिलाता है. दरिद्रता का पूर्ण नाश करता है. इसमें जल भरकर छिड़कने से व्यक्ति, वस्तु या स्थान पवित्र हो जाता है. तिजोरी में स्थापित करने पर सुख-समृद्धि का विस्तार होता है. यह वास्तु-दोषों का भी निवारण करता है. इसमें शुद्ध जल भरकर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है. टोने-टोटके निष्फल हो जाते हैं. ये लाभ दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के दौरान इसकी स्थापना से तुरंत फलदायी होते हैं, क्योंकि यह पर्व धन प्राप्ति का विशेष काल है.
दक्षिणावर्ती शंख की पूजन विधि
दिवाली पर दक्षिणावर्ती शंख की पूजन विधि सरलता से अपनाई जा सकती है. तंत्र शास्त्र के अनुसार, इसे विधिपूर्वक जल में स्थापित करने से बाधाएं शांत होती हैं और भाग्य द्वार खुलता है. लक्ष्मी का स्वरूप मानकर शुद्धिकरण करने के लिए लाल कपड़े पर शंख रखें, गंगाजल भरें. कुश आसन पर बैठकर मंत्र "ऊँ श्री लक्ष्मी सहोदराय नमः" का कम से कम पांच मालाएं जपें. उसके बाद पूजा स्थल पर स्थापित करें.
दीपावली के दिन या किसी शुक्रवार को अष्ट धातु के कुबेर और श्री यंत्र, लघु नारियल, एकाक्षी नारियल, कमलगट्टा के दाने, 11 चित्ती कौड़ी, 11 गौमती चक्र, चांदी का गणेश-लक्ष्मी सिक्का, काले-लाल गुंजा के दाने को अरवा चावल के साथ शंख में रखें. कुमकुम लगाकर लक्ष्मी पूजन करें. अगले दिन लाल वस्त्र में लपेटकर तिजोरी या धन स्थान में रखें और रोज पूजा करें. इससे लक्ष्मी स्थिर रहती है और दरिद्रता नष्ट होती है. यह विधि दिवाली की अमावस्या रात्रि में करने से चमत्कारिक परिणाम देती है, क्योंकि त्रिकुल विपरीत राजयोग का संयोग लक्ष्मी साधना को बलवान बनाता है.
शंखपूजा की सिद्ध विधि
तंत्र शास्त्र में धन प्राप्ति के अनेक प्रयोग हैं, किंतु दक्षिणावर्ती शंख आधारित प्रयोग अचूक हैं. दिवाली से पूर्व शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें. शंख के समक्ष बैठकर केसर से स्वस्तिक चिह्न बनाएं. स्फटिक माला से मंत्र "ॐ श्रीं ह्रीं दारिद्रय विनाशिन्ये धनधान्य समृद्धि देहि देहि नमः" का जप करें. हर मंत्रोच्चार के साथ एक-एक अखंड चावल शंख के मुंह में डालें. 30 दिनों तक नित्य एक माला जप करें. पहले दिन के चावल शंख में रहने दें, अगले दिन डिब्बी में संचित करें. प्रयोग समाप्ति पर चावल और शंख को सफेद कपड़े में बांधकर पूजा घर, फैक्ट्री या ऑफिस में स्थापित करें. इससे घर में धन-धान्य की कमी कभी नहीं होती. यह प्रयोग दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के साथ जोड़कर करने से धन वर्षा का द्वार खुल जाता है.
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