पृथ्वी की सतह की निगरानी और भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियर और प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान मिल सके. इस उद्देश्य से निसार (NISAR) उपग्रह की लॉन्चिंग जुलाई के अंत तक होने जा रही है.
निसार दरअसल इसरो और नासा का एक संयुक्त पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है, जिसे 20 जुलाई के आसपास भारत के आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया जाएगा.
ISRO की अहमदाबाद स्थित महत्वपूर्ण संस्था SAC यानी स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने S बैंड रडार और NASA की कैलिफोर्निया स्थित JPL यानी जेट प्रप्लशन लैब ने L बैंड रडार बनाकर दोनों का एक साथ इस्तेमाल करके निसार उपग्रह के साथ जोड़कर तैयार किया है.
यह उपग्रह दोहरे आवृत्ति सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) यानी S-बैंड और L-बैंड का उपयोग करेगा. इस उपग्रह की अनुमानित लागत 1.5 अरब डॉलर (12,500 करोड) है. इस कीमत के मुताबिक NISAR दुनिया का सबसे महंगा पृथ्वी-इमेजिंग उपग्रह होगा.
भारत के ISRO- SAC और अमेरिका के NASA- JPL के बीच साल 2012 में निसार उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए साझेदारी की बातचीत शुरू हुई थी. साल 2014 में निसार उपग्रह के प्रक्षेपण की साझेदारी पर ISRO और NASA के बीच हस्ताक्षर हुए, जिसके मुताबिक निसार उपग्रह में दो रडार लगाने पर सहमति हुई, जिसमें से एक रडार अहमदाबाद स्थित SAC में और दूसरा रडार कैलिफोर्निया स्थित JPL में तैयार किया जाना तय हुआ था.
निसार उपग्रह के सफल प्रक्षेपण से पृथ्वी के पर्यावरण को समझने और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी हासिल होगी, जिसे लेकर ना सिर्फ ISRO और NASA बल्कि पूरे विश्व के वैज्ञानिकों की उत्सुकता बढ़ चुकी है.
निसार उपग्रह के लिए ISRO और NASA के बीच समझौता हुआ. उस समय से ही इस मिशन से जुड़े अहमदाबाद स्थित SAC यानी स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर निलेश देसाई ने बताया कि निसार उपग्रह में दो रडार मौजूद है. समझौते के मुताबिक एक रडार जो भारत को तैयार करना था. वो SAC में ही तैयार हुआ है. दूसरा रडार कैलिफोर्निया में JPL ने तैयार किया है. अब दोनों रडार के साथ उपग्रह श्री हरिकोटा में प्रक्षेपण के लिए तैयार है. जुलाई महीने के अंत तक निसार उपग्रह का प्रक्षेपण हो जाएगा, जिसके माध्यम से जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, उस दिशा में अगले एक से तीन महीने में भारत और अमेरिका को डेटा मिलना शुरू होगा.
अहमदाबाद स्थित SAC यानी स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर निलेश देसाई ने कहा, भारत ने 12 साल की मेहनत के बाद अपना पहला एक्टिव रडार 2012 में लॉन्च किया था, जिसने साढ़े चार साल तक काम किया. भारत की इस सफलता के बाद NASA और JPL भारत आए और ISRO और SAC के साथ साझेदारी के तहत मिशन की बातचीत शुरू करके कहा था कि उनके पास नई रडार की तकनीक है. उस समय भारत का रडार सार यानी सिंथेटिक एपर्चर रडार तकनीक पर आधारित था लेकिन NASA के पास तब आधुनिक स्वीप सिंथेटिक एपर्चर रडार तकनीक थी और उसका पेटेंट उनके पास था. रडार में अच्छा रेजोल्यूशन और कवरेज दोनों एक साथ नहीं मिलता लेकिन इसके समाधान के रूप में NASA के पास स्वीप सिंथेटिक एपर्चर रडार तकनीक मौजूद थी.