दिल्ली में यमुना नदी की बाढ़ एक पुरानी समस्या है, जो हर मॉनसून में तबाही मचा देती है. 2025 में भी सितंबर के पहले हफ्ते में भारी बारिश और हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़ने से यमुना का जलस्तर खतरे के पार चला गया. पुरानी दिल्ली रेलवे ब्रिज पर 2 सितंबर को 205.33 मीटर (खतरे का स्तर) पार कर 206.36 मीटर पहुंच गया.
3 सितंबर तक 207.48 मीटर तक उठा. इससे 10,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए, मयूर विहार, यमुना बाजार, मजनू का टीला जैसे इलाके डूब गए, ट्रैफिक जाम लग गया.
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दिल्ली में यमुना बाढ़ का इतिहास: हर साल की तबाही
दिल्ली यमुना के किनारे बसी है, लेकिन बाढ़ हर साल आती है. पुराने रिकॉर्ड्स के अनुसार, 1956 से पहले यमुना हर साल ट्रांस-यमुना इलाकों को डुबो देती थी. 1978 में सबसे भयानक बाढ़ आई, जब जलस्तर 207.49 मीटर पहुंचा और अलीपुर ब्लॉक, मॉडल टाउन जैसे इलाके डूब गए – 18 मौतें, 10 करोड़ का नुकसान. उसके बाद 1988, 1995, 1998 में हाई फ्लड्स आए. लेकिन इम्बैंकमेंट (बांध) बनने के बाद भी समस्या बनी रही.
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पिछले 10 सालों (2015-2025) में यमुना बाढ़ से दिल्ली 4-5 बार गंभीर रूप से प्रभावित हुई...
- 2013: जलस्तर 207.32 मीटर, मध्यम बाढ़, कई इलाके डूबे.
- 2023: सबसे भयानक – 208.66 मीटर (45 साल का रिकॉर्ड), 25000 लोग बेघर, 41000 प्रभावित, सुप्रीम कोर्ट तक पानी पहुंचा.
- 2025: सितंबर में दूसरी बार खतरे का स्तर पार, 207.48 मीटर, 10000+ बेघर, मयूर विहार, यमुना बाजार डूबे.
- अन्य घटनाएं: 2010 (207.11 मीटर), 2019 (204.70 मीटर, चेतावनी स्तर), 2024 में कोई बड़ी बाढ़ नहीं, लेकिन 2025 में दो बार खतरा. कुल मिलाकर, 2015-2025 में 4-5 बार खतरे का स्तर पार हुआ, लेकिन हर साल मध्यम बाढ़ (warning level ऊपर) आती है.
बाढ़ के मुख्य कारण: नदी में कॉलोनियां या कॉलोनी में नदी?
यमुना बाढ़ प्राकृतिक लगती है, लेकिन ज्यादातर मानव निर्मित है. IMD और विशेषज्ञों के अनुसार...
अतिक्रमण और फ्लडप्लेन का नुकसान: यमुना का फ्लडप्लेन (9,700 हेक्टेयर) कॉलोनियों, सड़कों, ब्रिज से भर गया. 1956 से पहले ऐसा कम होता था, लेकिन अब इम्बैंकमेंट ने जगह कम कर दी. 2023 में फ्लडप्लेन एन्क्रोचमेंट मुख्य वजह था. नदी का पानी सोखने की क्षमता खत्म हो गई. मलबा डालने से बेड ऊंचा हो गया.
सिल्टेशन और बैराज मैनेजमेंट: यमुना में गाद जमा हो गई, नदी उथली हो गई. हथिनीकुंड बैराज (हरियाणा) से अचानक पानी छोड़ना (2025 में 3 लाख क्यूसेक) दिल्ली को डुबो देता है. ITO बैराज के गेट जाम हो जाते हैं.
ड्रेनेज सिस्टम की नाकामी: दिल्ली के 18 मेजर ड्रेन (नजफगढ़, शाहदरा) में सीवेज और कचरा जमा, बाढ़ में बैकफ्लो होता है. मॉनसून में नदी का पानी ड्रेन में घुस जाता है.
क्लाइमेट चेंज: हिमालय में ज्यादा बारिश (2025 में 26.7% अतिरिक्त), लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि मानव गतिविधियां मुख्य वजह.
जिम्मेदारी किसकी? सरकारें, अथॉरिटी और लोग
बाढ़ की जिम्मेदारी बहुस्तरीय है...
- हरियाणा सरकार: हथिनीकुंड से पानी छोड़ना मुख्य ट्रिगर है. 2025 में 3.29 लाख क्यूसेक छोड़े, बिना पर्याप्त चेतावनी.
- दिल्ली सरकार और DDA: अतिक्रमण रोकने में नाकाम. 2023 के बाद भी फ्लडप्लेन पर निर्माण (रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट). ड्रेन क्लीनिंग और डिसिल्टिंग नहीं. CM रेखा गुप्ता ने 2025 में कहा कि तैयारी पूरी है, लेकिन राहत कैंपों में कमी.
- केंद्र सरकार (जल शक्ति मंत्रालय, CWC): बैराज ऑपरेशन में समन्वय की कमी, डेटा गलत. 2023 रिपोर्ट में सिल्टेशन और एन्क्रोचमेंट का जिक्र, लेकिन कार्रवाई नहीं.
- लोग और बिल्डर्स: फ्लडप्लेन पर अवैध कॉलोनियां बनाना.
कैसे थमेगी तबाही? समाधान और सुझाव
बाढ़ रोकने के लिए लंबे समय के उपाय जरूरी...
- फ्लडप्लेन बहाल करें: एन्क्रोचमेंट हटाएं, नदी को जगह दें. NGT और कोर्ट के आदेशों का पालन.
- डिसिल्टिंग और ड्रेनेज सुधार: यमुना और ड्रेन साफ करें. ITO बैराज के गेट ठीक रखें.
- बैराज मैनेजमेंट: हरियाणा-दिल्ली-UP में समन्वय, चेतावनी सिस्टम मजबूत. CWC का फोरकास्ट सुधारें.
- क्लाइमेट रेजिलिएंट प्लानिंग: हरित क्षेत्र बढ़ाएं, जलवायु परिवर्तन पर फोकस. IMD की चेतावनी पर तुरंत अमल.
- राहत व्यवस्था: NDRF, कैंप मजबूत. 2025 में 38 कैंप लगे, लेकिन सुधार जरूरी.
समय आ गया बदलाव का
दिल्ली की बाढ़ 'नदी में कॉलोनियां' की समस्या है, न कि नदी की गलती. जिम्मेदारी हरियाणा, दिल्ली और केंद्र की है. पिछले 10 सालों में 4-5 बार तबाही से सबक लें. सस्टेनेबल प्लानिंग से हर साल की बर्बादी रुक सकती है. सरकारें एकजुट हों, वरना यमुना फिर कहर बरसाएगी.
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