नितेश राणे का ठाकरे बंधुओं को चैलेंज, उद्धव और राज क्या स्वीकार करेंगे?

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महाराष्ट्र में 5 जुलाई यानी कल शनिवार को ठाकरे बंधुओं, पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे, की मराठा विजय दिवस रैली है. करीब 20 साल बाद दोनों भाई एक साथ एक मंच पर होंगे. जाहिर है कि मराठा अस्मिता को मराठी भाषा से जोड़कर राजनीति चमकाने की कोशिश की जाएगी. हिंदी-मराठी भाषाई विवाद की आग भड़काने के बाद दोनों भाई बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के मत्स्य पालन मंत्री नितेश राणे के निशाने पर हैं. दोनों भाइयों की मंशा को राणे ने चैलेंज किया है.  

मीरा-भायंदर में MNS कार्यकर्ताओं द्वारा मराठी न बोलने के चलते एक व्यापारी की पिटाई के बाद महाराष्ट में माहौल तनावपूर्ण है. नितेश राणे ने इस घटना को हिंदू-मुस्लिम मुद्दे से जोड़ते हुए ठाकरे बंधुओं को चुनौती दी है कि वे मुस्लिम बहुल इलाकों में जाकर उनसे मराठी बुलवाएं. जाहिर है कि यदि ठाकरे बंधु असल चुनौती मिली है. इस चुनौती को अगर वे स्वीकार करते हैं, तो वे कई तरह की मुश्किलों में पड़ सकते हैं. फिलहाल अभी तक ठाकरे बंधुओं की ओर से राणे के चैलेंज पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. साफ लगता है कि ठाकरे बंधु राणे के बयान को अवॉयड कर रहे हैं. नहीं तो अब तक कम से कम शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत का बयान तो आ ही गया होता. 

नितेश राणे ने 3 जुलाई 2025 को एक टीवी साक्षात्कार में ठाकरे बंधुओं को चैलेंज करते हुए कहा था कि अगर हिम्मत है, तो नल बाजार और मोहम्मद अली रोड जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में जाकर मराठी बुलवाकर दिखाएं. अपनी ताकत सिर्फ गरीब हिंदुओं पर क्यों दिखाते हैं? जावेद अख्तर और आमिर खान क्या मराठी बोलते हैं? हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. राणे ने इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण से जोड़ते हुए ठाकरे बंधुओं पर जिहादी मानसिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.

राणे की चुनौती न केवल MNS की हिंसा की प्रतिक्रिया थी, बल्कि ठाकरे बंधुओं की मराठी अस्मिता की राजनीति को कमजोर करने की रणनीति भी है. 5 जुलाई 2025 को राज और उद्धव ठाकरे की मराठी विजय दिवस रैली में मराठी अस्मिता को और भड़काया जाएगा.  राणे इसे अवसरवादी गठजोड़ करार देते हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि मुंबई का माहौल इतना खराब होने के बावजूद देश का कोई भी नेता हिंदी बोलने वालों के फेवर में सामने नहीं आ रहा है. महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मुंह में तो जैसे दही जम गया हो. बीजेपी नेता भी शांत है. दुर्भाग्य से उत्तर भारत विशेषकर यूपी और बिहार के बीजेपी विरोधी नेता भी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. दूसरा कोई मामला होता तो बीजेपी के विरोध में कांग्रेस , समाजवादी पार्टी, आरजेडी जैसे दलों ने बीजेपी सरकार के खिलाफ कमर कस लिया होता. पर बेचारे हिंदी भाषियों के लिए ठाकरे बंधुओं को ललकारने वाला कोई भी नेता सामने नहीं आया. 

ऐसे समय में नितेश राणे हिंदी भाषियों के पक्ष में संकटमोचक बनकर सामने आए हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार राज ठाकरे को उन्हीं के अंदाज में चुनौती मिली है. राणे चैलेंज देते हैं कि हिम्मत हैं तो नल बाजार या मोहम्मद अली रोड पर जाकर मराठी बोलकर दिखाओ. ...दम है तो यहां किसी को कान के नीचे मारकर दिखाओं.गरीब दुकानदार को क्यों मारते हो , जावेद अख्तर और आमिर खान के मुंह से मराठी निकालने की हिम्मत है? जाहिर है कि नितेश राणे के चैलेंज का जवाब देने की हिम्मत दोनों ठाकरे बंधुओं में नहीं है. दरअसल उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ यही मुश्किल है . 

यदि उद्धव और राज ठाकरे नितेश राणे की चुनौती को स्वीकार करते हैं और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मराठी लागू करने की कोशिश करते हैं, तो वे निश्चित ही मुश्किलों में पड़ सकते हैं. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों (जैसे नल बाजार, डोंगरी) में मराठी लागू करने की कोशिश को धार्मिक भेदभाव के रूप में देखा जा सकता है. उद्धव ठाकरे ने जब से महाविकास अघाड़ी जॉइन किया है तब से उन्होंने अपने पिता बाला साहब ठाकरे के उलट धर्मनिरपेक्ष राजनीति करनी शुरू कर दी है. अगर मुसलमानों के साथ आक्रामक रवैया अपनाते हैं तो तो न तो कांग्रेस का साथ मिलेगा और बीजेपी में जाने के रास्ते पहले ही बंद हो चुके हैं.

राज ठाकरे के लिए भी यही मुश्किल है. बहुत दिनों बात कोई राजनीतिक पार्टी उनके साथ चलने को तैयार हुई है. महाराष्ट्र की राजनीति में अकेले पड़ चुके राज ठाकरे के लिए बहुत जरूरी है किसी का साथ. जाहिर है कि 20 साल बाद परिवार का साथ मिला है उसे यूं ही नहीं जाया करना चाहेंगे राज .

वैसे भी राज ठाकरे के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है. उनकी लाख कोशिश के बाद भी मनसे महाराष्ट्र में अपनी पैठ नहीं बना सकी. हालत यह है कि पार्टी का केवल एक विधायक है. सांसद तो एक भी नहीं है. राज ठाकरे चाहते हैं कि बीएमसी के चुनावों में अपने भाई उद्धव ठाकरे का साथ लेकर कुछ सीटें जीत लें. जाहिर है कि भाषा विवाद को भड़काकर उन्हें बीएमसी चुनावों में कुछ लाभ हो सकता है. पर उनके भाई उद्धव ठाकरे के लिए यह भाषा विवाद अगर हिंदुत्व बनाम मराठी में बदलता है तो उन्हें सिर्फ नुकसान ही होने वाला है.

उद्धव के पिता शिवसेना के फाउंडर बाला साहब ठाकरे ने पहले भाषा की राजनीति की. पर बाद में अपना कैनवस बढ़ाने के लिए उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति शुरू की थी. राम जन्मभूमि आंदोलन के जरिए वो पूरे भारत में हिंदू हृदय सम्राट के रूप में लोकप्रिय हुए. पर उनके बेटे उद्धव उल्टी गंगा बहाना चाहते हैं. उद्धव ने हार्ड कोर हिंदुत्व की राजनीति करने के बाद अब फिर से भाषाई राजनीति के रस्ते पर हैं. जाहिर है कि ठाकरे बंधुओं को अगर हिंदुत्व से चुनौती मिलती है तो उनके अस्तित्व के लिए भी यह मुश्किल हो सकती है.

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