इंस्टा पर स्क्रॉल करते रहिए तो एक बड़ी इंट्रेस्टिंग रील अक्सर सामने आ जाती है. एक बड़ी बहन है. नाइंटीज बॉर्न है, लिहाजा 30-32 की उम्र होगी उसकी. वो अपनी 10 साल छोटी बहन के लहजे, लिहाज, तौर-तरीके और उसकी जिंदगी की सामान्य बातचीत से परेशान है. उसके बोलने के तरीके से चिढ़ती है. चिढ़ती इसलिए है क्योंकि छोटी बहन अपने पापा से डैडी कूल बोलकर बात करती है और बड़ी बहन की न सिर्फ पापा से बल्कि अपनी मां से भी एक दूरी बनी हुई है.
छोटी बहन ऑफिस में अपना दो लीटर का टम्बलर (Gen Z लोगों की पानी बोटल) लेकर जाती है, ताकि वो टाइमली वॉटर इनटेक कर सके, लेकिन बड़ी बहन अपने उसी पुराने अंदाज में फंसी रहती है, जहां सारी दुनिया फॉर्मल है. बॉस उससे छह बजे के बाद भी काम लेता है और रात के दो बजे भी मेल पर डिटेल मांग सकता है. छोटी बहन इन सबसे परे है. वो बॉस की पीपीटी में उससे कह देती है, इसमें वो नहीं है... क्या नहीं है? ये वो साफ शब्दों में नहीं कहती, लेकिन जो उसे नहीं पसंद तो नहीं पसंद. उसने मना कर दिया तो कर दिया.
एक पीढ़ी के बीच उम्र की खाई
ये एक रील का कंटेंट है. महज 40 या 50 सेकेंड में आप देख सकेंगे कि एक ही सदी में एक ही पीढ़ी के दो लोगों के बीच महज उम्र का अंतर है, लेकिन ये अंतर इतना बड़ा है कि आपको संस्कृति सभ्यता, मर्यादा, नीतियां सब खतरे में लगने लगती हैं.
आप अपने से 10 साल छोटी उस नई पनप रही पीढ़ी को छपरी, लापरवाह, आवारा, बेअंदाज और न जाने क्या-क्या... कहकर पुकारते रहे हैं. अपने ग्रुप में उन्हें लेकर बेवजह इंसिक्योर रहे हैं, लेकिन हमेशा ये कहते पाए जाएंगे कि बाबू तुम क्या जानो जिंदगी की सच्चाई. तुम्हारे लिए तो सब आसान है.
लेकिन नहीं, असल में आप जिस कठिन प्रणाली में खुद को फंसाते चले आए हैं, गाते रहे हैं कि 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा' आप से 10 साल बाद की पीढ़ी ने खुद को उससे आजाद कर लिया है. आप मुक्ति का मार्ग खोज रहे हैं, वो मुक्त हो चुकी है और उसे अपने फैसले लेने आते हैं. असल में आप तो दोतरफा चलने वाली स्पिसीज बन चुके हैं. ये भी कहेंगे कि ज्यादा मोबाइल देखना, सोशल मीडिया पर रहना असल गोल से डिस्ट्रैक्ट करता है, आप ये मानते भी हैं, लेकिन फिर फुरसत मिलते ही उसी 5 इंच की स्क्रीन में आंखें धंसा लेते हैं.
हमसे क्यों अलग है Gen-Z?
Gen-Z का किसी से दुराव-छिपाव नहीं है. उसे किसी से दिक्कत भी नहीं है. उसमें पूर्वाग्रह भी नहीं है और उसे फर्जी का जुनून और पागलपन भी नहीं पसंद. उसे जिस समय जो चाहिए, उसे वो हासिल कर रहा है, बिना अपने ऊपर कोई प्रेशर डाले और बिना किसी तनाव के. उसे सोशल मीडिया चाहिए तो चाहिए, उसे उसके फायदे और नुकसान सब पता हैं, लेकिन उसे ये भी पता है कि यही वो मीडियम है जिसके जरिए वो अपनी बात, अपनी आवाज सब तक पहुंचा सकता है.
नेपाल में जो हुआ, जो हो रहा है और वो Gen-Z जो कर रहा है, वो उसके लिए कितना जरूरी है? हैरानी हो रही है कि हम इससे हैरान क्यों हो रहे हैं? हमें हैरान क्यों होना चाहिए? इसमें नया क्या दिख रहा है?
नेपाल के न्यू यूथ को जो जरूरी लगा तो उसके लिए वो सड़कों पर उतर आए. इंफॉर्मेशन और इंटरटेनमेंट कितनी बेसिक नीड है. नेपाल के Gen- Z (बल्कि हर देश के Gen-Z इसे समझ रहे हैं) इसे समझ रहे हैं और उन्होंने इसकी बहाली की मांग की. मांग नहीं मानी तो वे जुटे और सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया.
नये उत्साही युवाओं को क्यों कमतर आंकते हैं?
Gen-Z यानी नई उमर की इस नई फसल को हमेशा लापरवाह और कमतरी कि निगाह से देखने वाले हमारे समाज के लिए नेपाल का Gen Z प्रोटेस्ट एक आइना है. एक सबक है. जो बताता है कि आप उन्हें छपरी या केयरलेस ब्रीड कहकर नजरअंदाज न करें. इस जमात को ठीक से पता है कि उन्हें क्या करना है, किस चीज की मांग करनी है और वक्त-जरूरत पर देश के लिए कैसे एकजुट हुआ जाता है.
और ये कोई पहली बार नहीं है, जो उनके उत्साह ने कहानियां बदलकर रख दीं. भले ही आज तारीखों के साए में उन्हें एक डिकेड के कारण ये नाम मिला है, लेकिन कायदे से ये वही, 19, 20 या 21 साल के लोग हैं, जो जानते हैं कि असल में 'करो या मरो' का क्या मतलब होता है. एक बुजुर्ग इस नारे को गढ़ सकता है लेकिन एक नौजवान में ही वो ताकत है, जो इस नारे को असल में जी सकता है, इसे निभा सकता है.
नवयुवा ने ही की हैं क्रांति और किए हैं आंदोलन
शहीद भगत सिंह उस जमाने के 'Gen-Z' ही थे. भले ही आप कहें कि आज का जमाना क्या जाने कि शहीद भगत जैसा दीवानापन क्या होता है, लेकिन 'Gen Z' किसी उदाहरण में नहीं फंसता है, वो अपने उदाहरण अपने आप ही गढ़ता है. क्रांति की लौ जलाने वाली रानी लक्ष्मी बाई युवा ही थीं. उनकी सहयोगी झलकारी बाई भी नवयुवती ही थीं.
निर्भया आंदोलन, अन्ना हजारे का आंदोलन, लीबिया में तानाशाही के खिलाफ आंदोलन, म्यांमार का आंदोलन, भारत में CAA के विरोध में हुआ आंदोलन, किसान आंदोलन ये सारे आंदोलन अपने-अपने समय के 'Gen-Z' ने ही अपने कंधे पर ढोए हैं और उन्हें हाथों में ऊपर उठाकर उनका परचम बुलंद किया है.
फ्रांस में 2023 में हुए आंदोलन
नहीं याद आ रहा हो तो दिमाग पर जोर डालिए. साल 2023 की जून-जुलाई थी. फ्रांस की सड़कों पर 'सिविल वार' जैसी सिचुएशन थे. पेरिस की तमाम गलियों में दंगे भड़के थे. वजह थी कि पुलिस की गोली से एक 17 वर्षीय किशोर की जान गई. अगले छह घंटे में 17 से 25 साल की उम्र वालों की एक पूरी खेप पेरिस की सड़कों पर उतर आई. फ्रांस सरकार को इस नई हवा से निपटना मुश्किल जान पड़ रहा था. आखिर में पुलिस की ओर माफीनामा जारी हुआ, तफ्तीश का वादा किया गया और दोषी को सजा के लिए आश्वासन मिले तब जाकर बता बनी.
पुराण कथाओं में भी युवा ही रहे हैं उत्साही
ये सब तो चलिए अब की बातें हैं, Gen Z के उत्साही कारनामों से तो पुराण कहानियां भी भरी पड़ी हैं. अभिमन्यु ने अकेले चक्रव्यूह भेद दिया था. लव-कुश ने अपने ही पिता श्रीराम का घोड़ा रोककर पूरे रघुकुल को घुटनों के बल ला दिया था. खुद श्रीराम ने किशोर अवस्था में ताड़का और सुबाहु को मारकर नई क्रांति का ऐलान किया था. श्रीकृष्ण ने 14 साल की उम्र में कंस के अत्याचारों का अंत किया था और उससे पहले कई राक्षसों को मारा. बल्कि अपने पिता तक को ये बताया कि किसी देवता की पूजा में पूरे गोकुल का दूध-दही उलट देना सिर्फ पाखंड है और इंद्र की पूजा का बड़ा उत्सव रुकवा दिया.
एक समाज का किशोर हमेशा से उत्साही, अनोखा, नए विचारों वाला और साहसिक कदम उठाने वाला रहा है. उम्र बढ़ने लगती है तो तमाम भ्रांतियां दिल-दिमाग में घर बनाने लगती हैं. फिर जब आप एक सेट पैटर्न पर चलने लगते हैं तो आप न उत्साही रह जाते हैं और न क्रांति ही कर पाते हैं.
नेपाल में एक बड़ा प्रोटेस्ट कर Gen-Z ने एक बार फिर ऐलानिया अंदाज में ये बता दिया है कि उसे छपरी और लापरवाह कहना बंद कीजिए. उन्हें अपनी भी जरूरतों का पता है, देश की भी और समाज की भी. वह इसके लिए हमेशा तैयार हैं. जरूरत आपको अपना नजरिया बदलने की है.
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