दिल्ली सरकार ने 10 साल पुरानी डीज़ल गाड़ियों और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों में फ्यूल भरवाने पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है. सरकार इसे वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए साहसिक कदम बता रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति से शहर के प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आने की संभावना नहीं है. साथ ही प्रदूषण के असली कारणों को छू भी नहीं पाएगा.
कितना प्रदूषण छोड़ती हैं पुरानी गाड़ियां?
पुरानी गाड़ियों से निकलने वाला धुआं निश्चित रूप से प्रदूषण का बड़ा स्रोत है. ये PM2.5 (सूक्ष्म कण) के 28% और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के 41% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण का मामला बहुत जटिल और बहु-स्रोत आधारित है. इसमें निर्माण स्थलों से उड़ती धूल, फैक्ट्रियों और उद्योगों का धुआं, हर साल हरियाणा-पंजाब में होने वाली पराली जलाने की घटनाएं, कचरा जलाने वाले प्लांट्स (WTE प्लांट्स) और मौसम की स्थिति शामिल है, जो प्रदूषकों को ज़मीन पर ही रोक देती है.
वाहनों पर रोक, लेकिन असर कितना?
CSE के वायु प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के सीनियर फेलो विवेक चट्टोपाध्याय ने आजतक को बताया कि 2020 में BS-VI मानकों के लागू होने के बाद गाड़ियों से निकलने वाला प्रदूषण BS-IV से 80% और BS-I से 98% तक घट चुका है. हालांकि, दिल्ली में जीवन-काल पूरा कर चुके वाहनों को फ्यूल भरने की अनुमति न देने के निर्णय से उनके संचालन में कमी आएगी, लेकिन समस्या प्रदूषण नियंत्रण (PUC) प्रमाण पत्र जारी करने के सिस्टम में है. उन्होंने कहा कि PUC (Pollution Under Control) वाहनों में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 या नाइट्रोजन ऑक्साइड की जांच नहीं करता है. PUC की जांच प्रणाली को वैज्ञानिक और प्रभावी बनाए बिना, सिर्फ पुराने वाहनों पर रोक लगाने से हवा साफ नहीं होगी.
वर्तमान में वाहनों से लगभग 50% PM2.5 और 80% NOx उत्सर्जित होता है, और यह सभी उम्र के वाहनों से होता है. दिल्ली में पिछले वाहन प्रतिबंध प्रयोग- जैसे ऑड-ईवन योजना ने केवल मामूली अल्पकालिक सुधार किए. PM2.5 में सिर्फ 10-13% की कमी आई, जो कुछ ही दिनों में वापस पुराने स्तर पर लौट आई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अन्य स्रोतों पर ध्यान नहीं दिया गया और ट्रैफ़िक पैटर्न नए नियमों के अनुसार समायोजित हो गए.
गाड़ी की उम्र देखकर बैन लगाना सही नहीं
इसके अलावा सिर्फ गाड़ी की उम्र देखकर बैन लगाना सही नहीं है. कई पुरानी गाड़ियां अगर अच्छी तरह से मेंटेन की गई हों या रेट्रोफिट की गई हों, तो वे नई लेकिन खराब गाड़ियों से कम प्रदूषण कर सकती हैं.
गरीब वर्ग पर आर्थिक मार
इस नीति का सबसे बुरा असर गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ेगा, जो पुरानी गाड़ियां चलाते हैं. इनके पास न तो नई गाड़ी खरीदने की ताकत है, और न ही दिल्ली में अभी पर्याप्त और सस्ती पब्लिक ट्रांसपोर्ट मौजूद है.
दिल्ली की जहरीली हवा का सेहत पर विपरीत असर
दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है. विशेषज्ञों के अनुसार, यहां के लोगों की औसतन 12 साल कम उम्र हो रही है, सिर्फ जहरीली हवा की वजह से. सिर्फ पुराने वाहनों को हटाने से और व्यापक स्रोतों या बुनियादी ढांचे में सुधार किए बिना वायु गुणवत्ता में स्थायी सुधार होने की संभावना नहीं है. सरकार ने इलेक्ट्रिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट और साइकिलिंग/पैदल यातायात को बढ़ावा देने की योजनाएं बनाई हैं, लेकिन इनमें व्यवस्थित सुधार और क्षेत्रीय सहयोग की भारी कमी है.
क्या है समाधान?
विशेषज्ञ मानते हैं कि असरदार सुधार के लिए जरूरी है- वाहनों की नियमित और सख्त जांच व्यवस्था, स्वच्छ ईंधन की ओर तेज़ी से बदलाव, निर्माण और औद्योगिक धूल/धुएं पर नियंत्रण, पराली जलाने पर राज्यों के साथ मिलकर सख्त नीति. जब तक सरकार इन मूल कारणों का समाधान नहीं करती, तब तक सिर्फ पुरानी गाड़ियों पर रोक एक प्रतीकात्मक फैसला रह जाएगा, ये एक ठोस समाधान नहीं है.
(रिपोर्ट- शिबू त्रिपाठी)