प्यार, कॉम्प्लिकेशन, इमोशन्स में लगा बढ़िया म्यूजिक का तड़का, दिल जीत लेगी 'मेट्रो इन दिनों'

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पता है फिल्मों में नजर आने वाले लोगों के पास क्या है, जो हमारे पास असल जिंदगी में बहुत कम होता है? लोग कभी भी आपके ऊपर गिवअप नहीं करते. आज के मॉडर्न, जेन जी वर्ल्ड में 'मेट्रो... इन दिनों ऐसी फिल्म है जिसकी आपको जरूरत है. क्यों? आइए मैं बताती हूं.

बॉलीवुड ने हमें हमेशा सिखाया है कि जिंदगी में प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं. लेकिन असल दुनिया में ये बात पूरी तरह सच नहीं है. जिंदगी में प्यार के साथ-साथ इज्जत, मन की शांति और पैसा बहुत बड़ी जरूरतें हैं, जिनके न मिलने पर हम सभी परेशान होते हैं. 

रिश्ते बहुत उलझी हुई चीज होते हैं. हमें साथ रहना है, लेकिन जो जिंदगी हम चाहते थे और जो आज जी रहे हैं, वो एकदम अलग है. जिंदगी जिसके साथ सालों बिताई आज वो मेरे साथ नहीं और जो साथ है, वो खुश नहीं. हम साथ रहते हैं लेकिन हमारे बीच का प्यार कहीं खो गया है और उसी के साथ हम भी एक दूसरे से दूर हो गए हैं. वापस जाने का रास्ता पता नहीं. और आज की जनरेशन की सबसे बड़ी दिक्कत मुझे जिंदगीभर का प्यार किसी से करना ही नहीं, पलभर के लिए काफी है, जो दे दे. यही है डायरेक्टर अनुराग बसु की 'मेट्रो... इन दिनों' के 6 किरदारों की कहानी.

क्या है फिल्म की कहानी?

पिक्चर की शुरुआत होती है 'मेट्रो... इन दिनों' के 6 किरदारों के इंट्रोडक्शन से. मोंटी (पंकज त्रिपाठी) और काजोल (कोंकणा सेन शर्मा) पति-पत्नी हैं. दोनों की एक 15 साल की बच्ची है. दोनों किसी जमाने में मिले थे और एक दूसरे के प्यार में पड़ गए. मोंटी, कोयल को मोमो खिलाने ले गया था. लेकिन अब मोमो की वो दुकान और इन दोनों का प्यार ढह चुके हैं. दोनों एक घर में रहते हैं, लेकिन जिंदगी फोन के अंदर बिता रहे हैं. उन्हें डर रहता है कि कहीं फोन से नजरें उठाकर एक दूसरे से मिला ली, तो बात करने के लिए कुछ नहीं होगा. मोंटी जिंदगी में बदलाव चाहते है और इसके लिए वो डेटिंग एप पर सेक्स, नहीं एक्सपीरिएंस लेने निकल पड़ता है.

काजोल की मां है शिबानी (नीना गुप्ता), जो सालों से अपने पति संजीव के साथ रहते हुए अब उसकी घर में तंगी तस्वीर के समान हो गई है. संजीव ने जैसे तस्वीर को भुला दिया है, वैसे ही पत्नी को भी वो अक्सर भूल जाया करता है. शादी में अडजस्ट करते-करते कब शिबानी अपना अस्तित्व खो बैठी वो भी नहीं जानती. लेकिन घुटन उसे इस जिंदगी को जीने भी नहीं देती. 

शिबानी शादी में अकेली है तो कोलकाता में रहने वाला परिमल (अनुपम खेर), अपनी बीवी और बेटे को खोने के बाद सच में तन्हा है. उसका सहारा है उसकी बहू झिनुक (दर्शना बानिक), जो अपनी जिंदगी को परे रख उसकी देवा में लगी हुई है. ऐसे में परिमल इस अफसोस में जी रहा है कि उसकी वजह से झिनुक का जीवन बर्बाद हो रहा है.

शिबानी की छोटी बेटी चुमकी (सारा अली खान) कन्फ्यूजन की दुकान है. कई करियर ऑप्शन चुनने के बाद चुमकी एमबीए कर एक बड़ी कंपनी में काम कर रही है, जहां उसका बॉस उसे रोज हैरेस करता है. चुमकी, कन्फ्यूज होने के साथ-साथ फट्टू भी है. ऐसे में वो किसी से कुछ कह भी नहीं पाती. उसका एक बॉयफ्रेंड है, जिसे देखकर आपको समझ आ जाएगा कि उसे चुमकी क्या, किसी का भी बॉयफ्रेंड नहीं होना चाहिए.

चुमकी से एकदम अलग है, उसे गलती से मिस्टेक करके मिला पार्थ (आदित्य रॉय कपूर). पार्थ जिंदादिल, मस्तमौला रोज किसी के प्यार में पड़ने वाला लड़का है, लेकिन उसे पता है कि वो क्या चाहता है और चीजों को पाने के लिए वो कोशिश भी करता है.

पार्थ के दोस्त हैं श्रुति (फातिमा सना शेख) और आकाश (अली फजल). दोनों लॉन्ग डिस्टेंस में रहते थे. अपने बीच कई किलोमीटर फैली दूरियां मिटाईं तो परिवार ने शादी करवा दी. शादी के बाद आकाश का म्यूजिशियन बनने का सपना, सपना ही रह गया. वो डेस्क जॉब में फंसा है और रोज अपने अधूरे सपने की अर्थी उठते देखता है. इस बीच श्रुति का अचानक प्रेग्नेंट होना उसे कॉम्प्लेक्स में डाल देता है.

बढ़िया है 'मेट्रो... इन दिनों'

इन सभी के अलावा फिल्म में और भी बहुत-से किरदार हैं, जिनकी अपनी कहानी चल रही है. हर एक कहानी को डायरेक्टर अनुराग बसु ने सम्राट चक्रवर्ती और संदीप श्रीवास्तव संग मिलकर अच्छे से लिखा और फिर पर्दे पर उतारा है. हर किरदार की जर्नी गानों के सहारे आपके मन में उतारी जाती है. यहां नोकझोंक, धोखा, प्यार, रोना, धोना, कन्फ्यूजन, मस्ती के साथ-साथ कॉमेडी भी है. अनुराग बसु ने इस फिल्म को खुले दिन से फील करके बनाया है और आप ये स्क्रीन पर साफ देख सकते हैं. हर किरदार अपने में अलग है.

पंकज त्रिपाठी ने किरदार में डाली जान, अली जफर ह‍िट, जानें कैसी है बाकी कास्ट? 

अगर आपको फिल्म 'लाइफ इन अ मेट्रो' याद है तो उसमें मोंटी का किरदार इरफान ने निभाया था. इस बार इरफान फिल्म का हिस्सा नहीं है बल्कि पंकज त्रिपाठी को लिया गया है. बहुत-से दर्शकों के मन में सवाल था कि इस फन लविंग और तड़क-भड़क वाली फिल्म में पंकज कैसे फिट होंगे. और यही पंकज त्रिपाठी के काम की खूबसूरती है कि वो जिस भी किरदार में ढलते हैं, उसे अपना बना लेते हैं. मोंटी के किरदार में पंकज को देखना बेहद मजेदार था. कोंकणा सेन शर्मा के साथ उनकी जोड़ी काफी यूनीक है और यही अच्छी चीज है. काजोल के रोल में कोंकणा सेनशर्मा कमाल हैं. उन्होंने बहुत बढ़िया काम किया है. काजोल के रूप में कोंकणा न सिर्फ आपको इम्प्रेस करती हैं बल्कि अपना स्टैंड लेने की सीख भी देती है. फिर वो इधर-उधर निकल जाती है, वो बात अलग है.

अली फजल और आदित्य रॉय कपूर अपने किरदारों में एकदम फिट होते हैं. अली को देखकर आपको 'फुकरे' के जफर भाई की याद आएगी. उनका लुक और बॉडी लैंग्वेज काफी हद तक पहले जैसी है. लेकिन फिर भी उनका काम अच्छा है. आदित्य रॉय कपूर तो एकदम बिंदास हैं. फातिमा सना शेख, श्रुति के रोल में अच्छी हैं. चुमकी के रोल में सारा अली खान को देखना भी काफी अच्छा रहा. फिल्म में चुमकी की जर्नी बढ़िया है.

नीना गुप्ता, अनुपम खेर और शाश्वत चटर्जी का काम भी पिक्चर में बढ़िया है. अनुपम खेर, वो इंसान है, जो आपको रुलाते हैं. उनका किरदार परिमल बेहद प्यारा है, पर परिमल की कहानी एकदम ट्रैजिक है. अनुपम अपने किरदार के साथ आपको हंसाते भी हैं और उनके लिए आपका दिल भी दुखता है. नीना गुप्ता को देखकर काफी फन रहा. उनकी और शाश्वत की जोड़ी भी काफी अलग है. वो सीनियर काजोल और मोंटी हैं.

गानों ने फ‍िल्म में लगाया चार चांद 

डायरेक्टर अनुराग बसु का स्क्रीनप्ले बढ़िया है. मेरे एक दोस्त ने मुझे कई बार 'मेट्रो... इन दिनों' की एल्बम सुनने को कहा था. लेकिन मैं तो 'लाइफ इन अ मेट्रो' की फैन हूं, तो मैंने साफ मना कर दिया था. लेकिन अब जब मैंने फिल्म देखने के साथ-साथ सारे गाने सुन लिये हैं, तो मुझे समझ आ गया है कि वो क्यों बोल रहा था. फिल्म का हर गाना बेहतरीन है. प्रीतम और पापोन को पूरी फिल्म में अलग-अलग जगह गाते देखा जा सकता है. हां, पिक्चर के VFX थोड़ा बेहतर हो सकता था. लेकिन इसकी थोड़ी बहुत जो भी कमियां हैं, उनको इग्नोर करें तो आप इसे अच्छे से एन्जॉय कर पाएंगे. 

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