बंगाल SIR के विरोध में राहुल गांधी को ममता बनर्जी क्या बिहार जैसा मंच देंगी?

6 days ago 1

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव भी बिहार के बाद ही होने वाले हैं. बिहार चुनाव के करीब छह महीने बाद. वक्त अब साल भर से भी कम ही बचा है. SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण के मामले में भी बिहार के बाद बंगाल की ही बारी है. चुनाव आयोग की तरफ से SIR की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. और, तैयारियों का असर भी नजर आने लगा है. 

मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे सीमावर्ती राज्यों में लोग अपने कागजात दुरुस्त कराने के लिए अभी से एक्टिव हो गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जन्मस्थान और जन्मतिथि से जुड़े दस्तावेज जुटाने के लिए लोग ग्राम पंचायतों, नगर पालिकाओं और स्थानीय अदालतों का रुख करने लगे हैं. ये इलाके बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं, और यहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की आबादी है. 

बिहार और बंगाल के SIR मामले में थोड़ा फर्क है. बिहार के मुकाबले बंगाल के लोगों को ज्यादा वक्त मिलने वाला है. और, जिस तरह से लोग अभी से सक्रिय हो गये हैं, लगता है बिहार जैसी अफरातफरी बंगाल में नहीं मचने वाली है - लेकिन राजनीति तो वैसी ही होगी, तय है. हो सकता है, बिहार के मुकाबले ज्यादा ही बवाल हो. 

सुना है राहुल गांधी और उनकी टीम वोटर अधिकार यात्रा को बिहार से बाहर बड़ा कैनवास देना चाहते हैं. ये बात तभी सामने आई थी, जब बिहार में वोटर अधिकार यात्रा शुरुआती दौर में थी. वोटर अधिकार यात्रा की नींव तो दिल्ली में ही पड़ी थी. पहले सड़क पर माहौल बनाया गया था, और बाद में इंडिया ब्लॉक की बैठक में. तब तो लगा था सब कुछ तेजस्वी यादव करने वाले हैं, लेकिन बाद में तो सब कुछ बदल गया. राहुल गांधी ने पूरी कमान ही अपने हाथ में ले ली थी, ऐसा लगने लगा. अब तो राहुल गांधी ने एटम बम के बाद हाइड्रोजन बम फोड़ने का भी ऐलान कर दिया है. 

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या तेजस्वी यादव की तरफ ममता बनर्जी भी राहुल गांधी को ऐसी छूट देंगी?  

कुछ बड़ा करने का इरादा तो है, लेकिन...

वोटर अधिकार यात्रा के समापन के मौके पर राहुल गांधी ने पटना में कोई स्पष्ट घोषणा तो नहीं की, लेकिन बड़ा संकेत जरूर दिया. वैसे ही बड़े संकेत जैसे पहले भी कई बार दे चुके हैं. भूकंप. एटम बम. और अब हाइड्रोजन बम. राहुल गांधी ने लोगों से सवाल जवाब वाली शैली में फीडबैक भी लिया. होना चाहिए कि नहीं चाहिए. हमेशा की तरह आक्रामक अंदाज में राहुल गांधी बोले, महादेवपुरा में वोट चोरी के रूप में परमाणु बम के बाद, हम जल्द ही हाइड्रोजन बम लाएंगे.

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी बात को सरल भाषा में समझाने की कोशिश की. बोले, वोट चोरी का मतलब अधिकार, आरक्षण, रोजगार, शिक्षा और युवाओं के भविष्य की चोरी है. 

दिल्ली के बाद बिहार की राजनीति में राहुल गांधी की दिलचस्पी तो देखी जा चुकी है. पश्चिम बंगाल का अभी नहीं पता. कांग्रेस की स्थिति के हिसाब से देखें तो दोनों राज्यों में मामूली ही फर्क है. बिहार में स्थिति कुछ बेहतर है. बिहार में जहां कांग्रेस के 19 विधायक हैं, बंगाल में तो खाता जीरो बैंलेस है. 

पश्चिम बंगाल के साथ ही केरल और तमिलनाडु में भी विधानसभा के चुनाव 2026 में ही होने वाले हैं, जहां राहुल गांधी की खास दिलचस्पी देखी गई है. तमिलनाडु का मामला तो करीब करीब बिहार जैसा ही है. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन विपक्षी खेमे के देश के एकमात्र नेता हैं जो राहुल गांधी को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं. वो तो तेजस्वी यादव के पहले से ही राहुल गांधी के देश के प्रधानमंत्री बनने के समर्थक रहे हैं. बिहार की वोटर यात्रा में भी एमके स्टालिन के शामिल होने की बड़ी वजह राहुल गांधी ही रहे होंगे. वैसे तेजस्वी यादव भी एमके स्टालिन के बुलावे पर तमिलनाडु जा चुके हैं. 

केरल में तो कांग्रेस को किसी की परवाह करने की जरूरत है नहीं. वहां अगर राहुल गांधी को कोई दिक्कत है, तो वो सिर्फ शशि थरूर से हो सकती है. तमिलनाडु में भी मामला बिहार जैसा हो सकता है - लेकिन पश्चिम बंगाल में?

बंगाल में तो ममता अपनी ही चलाएंगी

पश्चिम बंगाल में बिहार जैसी वोटर अधिकार यात्रा की संभावना को भी बिहार से जोड़कर ही समझना होगा. विशेष रूप से बिहार वोटर यात्रा को लेकर ममता बनर्जी के रुख के हिसाब से. कहने को तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार जैसे नेताओं ने भी वोटर अधिकार यात्रा या उसके समापन कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन अखिलेश यादव, एमके स्टालिन और हेमंत सोरेन का शामिल होना मायने तो रखता ही है. लेकिन, ममता बनर्जी ने तो ऐसा नहीं किया. ममता बनर्जी ने तो डेरेक ओ'ब्रायन को भी नहीं भेजा, युसुफ पठान और ललितेशपति त्रिपाठी को भेजकर रस्म निभा दी - और ऐसा करके अपना स्टैंड भी साफ कर दिया. 

हो सकता है, राहुल गांधी की जगह तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा का नेतृत्व कर रहे होते, तो ममता बनर्जी का फैसला अलग होता. कम से कम किसी बड़े नेता को तो भेजतीं ही, अगर खुद जाना ठीक नहीं लगता तो भी. आखिर, लालू यादव ने ही तो ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बनाने का सपोर्ट किया था. लालू यादव का ये रुख करीब करीब वैसा ही था, जैसा सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के मुद्दे पर. 

कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी का रुख कभी बदला हो ऐसा तो नहीं दिखा. और ये अभी की बात नहीं है, जब से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं तभी से. बीच में यूपीए सरकार का हिस्सा जरूर थीं, लेकिन अपनी ही शर्तों पर. 2024 के लोकसभा चुनाव में तो तृणमूल कांग्रेस के आस पास फटकने तक नहीं दिया - और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर भी बिल्कुल वैसा ही माहौल पहले से ही बना रखा है. 

ममता बनर्जी के रुख को राहुल गांधी तो समझते ही होंगे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के रिएक्शन से भी कई बातें साफ हो गई हैं. अधीर रंजन चौधरी का कहना है, हिंदू, मुसलमान, दलित सभी के पास वोट देने का अधिकार है... और, राहुल गांधी सभी के वोटिंग के अधिकार की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं... जब मोदी उस लड़ाई को रोकने की कोशिश कर रहे हैं... जब देश के तमाम विपक्षी नेता एक होकर ये लड़ाई लड़ रहे हैं, तब बंगाल की मुख्यमंत्री वहा नहीं जाना चाहतीं... क्योंकि, वहां जाकर राहुल गांधी के सामने उनका प्रभाव फीका पड़ जाएगा.

जाहिर है, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का भी राहुल गांधी और कांग्रेस के प्रति वैसा ही रवैया होगा, जैसा पिछले आम चुनाव में अखिलेश यादव की तरफ से देखने को मिला था. सीटों के बंटवारे को लेकर अखिलेश यादव ने पहले ही अपना मैसेज साफ कर दिया था, यूपी में सारी चीजें वो तय करेंगे. कोई और नहीं. पश्चिम बंगाल में भी बिल्कुल यही होगा.

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