बाढ़, बारिश और नदियों में उफान, शहर से गांव तक जलमग्न... पंजाब में इस बार इतनी क्यों मच रही है तबाही?

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अगस्त-सितंबर 2025 में पंजाब में आई भयानक बाढ़ ने पूरे राज्य को हिला दिया. यह बाढ़ पिछले 40 सालों में सबसे खराब बताई जा रही है, जो 1988 वाली बाढ़ से भी ज्यादा विनाशकारी है. 1300 से ज्यादा गांव पानी में डूब गए. लाखों लोग बेघर हो गए. फसलें बर्बाद हो गईं और जानमाल का भारी नुकसान हुआ. इस बार बाढ़ क्यों आई? क्या ज्यादा बारिश जिम्मेदार है या नदियों का बहाव? वैज्ञानिक कारण क्या हैं?

बाढ़ का आना: क्या हुआ और क्यों?

यह बाढ़ 13 अगस्त 2025 से शुरू हुई, जब हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ऊपरी इलाकों में भारी बारिश हुई. मानसून का 9वां दौर इतना तेज था कि सतलुज, ब्यास और रावी नदियां उफान पर आ गईं. पोंग, भाखड़ा और रंजीत सागर डैमों से अतिरिक्त पानी छोड़ा गया, क्योंकि डैम भर चुके थे. 

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Punjab Flood

कुल 14 जिलों में बाढ़ फैली

गुरदासपुर (323 गांव), कपूरथला (107), फिरोजपुर (101), पठानकोट (89), होशियारपुर (85), मुक्तसर (64), फाजिल्का (52), तरन तारन (45), मोगा (35), संगरूर और बरनाला (22-22 गांव). 1312 गांव प्रभावित हुए, जो करीब 1.46 लाख लोगों को बेघर कर दिया. स्कूल 3 सितंबर तक बंद हैं. सेना, एनडीआरएफ, बीएसएफ ने 11330 से ज्यादा लोगों को बचाया. 

ज्यादा बारिश या नदियों का बहाव: असली वजह क्या?

दोनों जिम्मेदार हैं, लेकिन मुख्य वजह ऊपरी इलाकों में हुई ज्यादा बारिश है. हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में मॉनसून की भारी बारिश से नदियों के कैचमेंट एरिया भर गए. इससे सतलुज, ब्यास और रावी नदियां 2-4 लाख क्यूसेक पानी लेकर बहने लगीं, जो खतरे के स्तर से ऊपर थीं. डैमों से पानी छोड़ना पड़ा, जिससे डाउनस्ट्रीम में बहाव बढ़ गया. 

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क्लाइमेट चेंज से मॉनसून अनियमित हो गया है, जिससे बारिश की तीव्रता बढ़ी. हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की बारिश से नदियां उफान पर आ गईं. नदियों का बहाव ही नहीं, बल्कि सीजनल नहर (जैसे घग्गर) भी उफान पर आईं. कुल मिलाकर, 70% नुकसान बारिश से और 30% डैम रिलीज से हुआ.

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वैज्ञानिक कारण: क्यों डूबे 1300 गांव?

वैज्ञानिक रूप से यह बाढ़ कई फैक्टर्स का मिला-जुला नतीजा है. सबसे पहले...

हिमालयी क्षेत्र का भूगोल: पंजाब मैदानी है, लेकिन नदियां ऊंचे पहाड़ों से आती हैं. जहां क्लाउडबर्स्ट से तेज पानी बहता है. वाइली जर्नल की एक स्टडी (2024) के अनुसार, क्लाइमेट चेंज से मॉनसून सिस्टम बदल गया है – पूर्व, दक्षिण और पश्चिम से वेदर सिस्टम एक साथ आते हैं, जिससे नमी बढ़ जाती है. इससे नॉर्थ इंडिया में 26.5% ज्यादा बारिश हुई.

सेडिमेंट डिपॉजिशन: नदियों में गाद जमा हो जाती है, जिससे उनकी कैपेसिटी कम हो जाती है. सिल्टिंग से नदियां जल्दी ओवरफ्लो करती हैं. 

डैम मैनेजमेंट: भाखड़ा (सतलुज), पोंग (ब्यास) और रंजीत सागर (रावी) डैम भरने पर पानी छोड़ना पड़ता है, जो डाउनस्ट्रीम गांवों को डुबो देता है. पोंग डैम 1,393 फीट पर पहुंच गया, जो मैक्सिमम से ऊपर था.

एन्थ्रोपोजेनिक फैक्टर्स: फ्लडप्लेन्स पर अतिक्रमण, ड्रेनेज सिस्टम की कमी और क्लाइमेट चेंज से बाढ़ की फ्रीक्वेंसी बढ़ गई. आईपीसीसी रिपोर्ट कहती है कि हिमालय में बाढ़ 60 सालों में दोगुनी हो गई. गुरदासपुर जैसे बॉर्डर जिलों में रावी का ब्रेक सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. कुल 61632 हेक्टेयर खेती की जमीन डूबी, खासकर धान की फसल. 

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नुकसान का आंकड़ा: कितनी बर्बादी हुई?

यह बाढ़ आर्थिक त्रासदी है. 3 लाख एकड़ फसल बर्बाद, जिसमें धान सबसे ज्यादा प्रभावित. 29 मौतें हुईं, 3 लापता और 2.56 लाख लोग प्रभावित. फाजिल्का में 41099 एकड़, फिरोजपुर में 27000 एकड़ जमीन डूबी. पशुधन का भी नुकसान – हजारों जानवर मरे या बीमार.

स्कूल-कॉलेज बंद, सड़कें टूटीं, बिजली-पानी बाधित. सीएम भगवंत मान ने पीएम मोदी को 60000 करोड़ की मदद मांगी. एनडीआरएफ, आर्मी ने हेलीकॉप्टर से बचाव किया. खालसा एड जैसे एनजीओ ने राशन बांटा है. 

सरकार ने 77 रिलीफ कैंप लगाए हैं, जहां 4729 लोग शरण में हैं. आर्मी ने 27 लोगों को हेलीकॉप्टर से बचाया. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि मजबूत डैम, बेहतर ड्रेनेज और रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट जरूरी. इमरजेंसी प्लान और कम्युनिटी ट्रेनिंग से नुकसान कम हो सकता है. 

यह बाढ़ क्लाइमेट चेंज का चेतावनी है. ज्यादा बारिश और नदियों का तेज बहाव ने 1300 गांव डुबो दिए. पंजाब को मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर और केंद्र की मदद चाहिए.  

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