बिहार में प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान में अरविंद केजरीवाल राजनीति का मिजाज महसूस किया गया. लेकिन, अरविंद केजरीवाल जैसा व्यवहार महागठबंधन में असदुद्दीन ओवैसी के साथ हो रहा है. इंडिया ब्लॉक के बनने से पहले अरविंद केजरीवाल के साथ भी विपक्षी खेमे में अछूत की तरह व्यवहार किया जाता था. खैर अब तो अरविंद केजरीवाल ने खुद ही इंडिया ब्लॉक छोड़कर अपनी अलग राह अख्तियार कर ली है. प्रशांत किशोर और अरविंद केजरीवाल दोनों ही बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
हैदराबाद से बाहर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM चुनावी गठबंधन तो करती रही है, लेकिन देश के दोनों प्रमुख गठबंधनों से अलग ही खड़ा नजर आती है. असदुद्दीन ओवैसी अब तक एनडीए और यूपीए से बराबर दूरी बनाकर राजनीति करते आये हैं - लेकिन, अब लगता है मन बदल गया है.
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी बिहार में महागठबंधन में शामिल होना चाहती है, लेकिन लगता नहीं कि तेजस्वी यादव और लालू यादव की ओवैसी के प्रस्ताव में कोई दिलचस्पी है. तेजस्वी यादव के बयान में तो अनिच्छा ही लग रही है, और लालू यादव की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
AIMIM के बिहार अध्यक्ष अख्तरुल ईमान का तो कहना है कि महागठबंधन में तो उनकी पार्टी पहले से ही शामिल होना चाहती है, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई है. फिर भी अख्तरुल ईमान हार मानने को तैयार नहीं नजर आते, AIMIM की तरफ से ऐसी गुजारिश के साथ आरजेडी प्रमुख लालू यादव को पत्र भी लिखा गया है - और जवाब का इंतजार है.
AIMIM बिहार महागठबंधन में शामिल क्यों होना चाहता है?
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के महागठबंधन में शामिल होने की गुजारिश के साथ दलील तो वाजिब है, लेकिन पार्टी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए तेजस्वी यादव पहले से ही सतर्क हो गये हैं. AIMIM की पेशकश पर तेजस्वी यादव या लालू यादव की तरफ से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है. अंदर से सुना ये गया है कि तेजस्वी यादव का कहना है कि उनके पास AIMIM की तरफ से कोई सीधा प्रस्ताव नहीं मिला है. एक मतलब तो ये भी हुआ कि किसी न किसी माध्यम से परोक्ष तरीके से संपर्क साधने की कोशिश चल रही है, लेकिन बात नहीं बन पा रही है.
AIMIM के बिहार में बचे एकमात्र विधायक और प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव को इस सिलसिले में एक पत्र भी लिखा है. अख्तरुल ईमान का दावा है कि ऐसे ही प्रयास 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी किये गये थे, और 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी - लेकिन, सारी कोशिशें नाकाम रह गईं.
अख्तरुल ईमान कहते हैं, अगर सेक्युलर वोटों का बिखराव रोकना है, तो AIMIM को महागठबंधन में शामिल करना जरूरी है. AIMIM नेता ने पत्र में लिखा है, वोटों के बिखराव का सीधा फायदा सांप्रदायिक ताकतों को मिलता है. और ये बिखराव हर हाल में रोकना 2025 के चुनाव में बेहद जरूरी है.
पत्र में AIMIM ने साफ कहा है कि अगर सेकुलर वोटों का बिखराव रोका जाना है, तो पार्टी को महागठबंधन में शामिल करना जरूरी है. अख्तरुल ईमान ने लिखा कि इस बिखराव का सीधा फायदा सांप्रदायिक ताकतों को मिलता है, जिसे 2025 के चुनाव में रोकना जरूरी है.
AIMIM के लिए महागठबंधन में नो-एंट्री का बोर्ड क्यों लगा है?
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 5 सीटें जीत कर वैसे ही सनसनी मचा दी थी, जैसे 2022 में गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी ने.
बाद में जब AIMIM के विधायक सत्ता पक्ष के करीब लगने लगे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी दूरगामी सोच के तहत 4 विधायकों को लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल में शामिल करा दिया - लेकिन अख्तरुल ईमान नहीं गये.
बिहार के जिन इलाकों (सीमांचल) में असदुद्दीन ओवैसी की प्रभाव है, वहां के विधायक तो पहले से ही तेजस्वी यादव के साथ हो गये हैं. साथ ही, तेजस्वी यादव और असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति में एक पक्ष कॉमन तो है ही. तेजस्वी यादव को MY समीकरण की राजनीति विरासत में मिली है, और ओवैसी उसी लाइन की कट्टर मुस्लिम राजनीति करते हैं.
जाहिर है असदुद्दीन ओवैसी ही सीमांचल इलाके से ही ज्यादातर सीटें चाहते होंगे, और ये बात भला तेजस्वी यादव को मंजूर भी कैसे हो. अगर वहां ओवैसी ने पांव जमा लिये तो आरजेडी को कौन पूछेगा. फिर तो वहां भी पूर्णिया जैसा हाल हो जाएगा. ओवैसी भी पप्पू यादव की तरह ललकारने लगेंगे - और जहां मनमाफिक मिला हाथ भी मिला लेंगे.
असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति के बारे में विपक्षी खेमे में ऐसी धारणा भी बनी हुई है कि वो मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटों का बंटवारा कर देते हैं, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल जाता है.
और, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तो ओवैसी का बिल्कुल नया ही तेवर देखने को मिला है. कट्टर मुस्लिम नेता से कट्टर राष्ट्रवादी नेता के रूप में. देश के साथ साथ विदेश दौरे में भी असदुद्दीन ओवैसी की एक जैसी छवि देखी गई है - लगता है, ऐसी ही वजहों से तेजस्वी यादव दूरी बनाकर चल रहे हैं.
समाज से छुआछूत की बीमारी तो कब की खत्म हो चुकी है, सवाल ये है कि राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी के साथ तेजस्वी यादव अछूत जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
सवाल ये भी है कि असदुद्दीन ओवैसी को अपनी राजनीतिक को सेक्युलर साबित करने के लिए तेजस्वी यादव और महागठबंधन की जरूरत क्यों पड़ रही है?
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