बिहार की वोटर लिस्ट में 'संदिग्ध विदेशी' कौन? चुनाव से पहले सीमांचल में नागरिकता की 'अग्निपरीक्षा'

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बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया लगातार सुर्खियों में बनी हुई है. आरोप लग रहे हैं कि वोटर लिस्ट में कुछ ऐसे लोगों को 'संदिग्ध विदेशी' करार दिया जा रहा है, जिनके पास भारतीय नागरिकता के सभी वैध दस्तावेज़ हैं. 'इंडिया टुडे' की पड़ताल में सामने आया है कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को अनौपचारिक रूप से ऐसे लोगों के फॉर्म अलग रखने के निर्देश दिए गए हैं, जिससे क्षेत्र में पहचान और नागरिकता को लेकर गहरा डर फैल गया है.

किशनगंज जिले के दिघल बैंक ब्लॉक में एक चाय की दुकान पर तेज़ बारिश में बैठे BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) अपने पास रखे मतदाता पंजीकरण फॉर्म के ढेर से एक फॉर्म दिखाते हुए कहते हैं, "यह फॉर्म हमने सबमिट नहीं किया. नेपाली है. बोला गया- लंबित रखो, कहा गया बाद में बताएंगे."

जिस फॉर्म की वह बात कर रहे हैं, वह एक 32 वर्षीय महिला का है, जिसके पिता आज भी नेपाल सीमा के पार रहते हैं. दस्तावेज़- आधार, राशन कार्ड, मैट्रिक सर्टिफिकेट, सब कुछ सही हैं. लेकिन केवल विदेशी मूल के संदेह में, BLO ने उनका फॉर्म 'रोक' दिया है. ऐसे दर्जनों मामले विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दौरान आए हैं जो चुपचाप "संदिग्ध" घोषित कर दिए गए हैं.

संदिग्ध विदेशी नागरिकों की समानांतर गणना
किशनगंज और कटिहार के कम से कम तीन ब्लॉकों में, इंडिया टुडे की पड़ताल में सामने आया कि बीएलओ ने संदिग्ध विदेशी नागरिकों के फॉर्म्स को अलग रखे हुए हैं. कहीं-कहीं तो इसके लिए अलग नोटबुक तक बनाई गई हैं. ये सूचियां आधिकारिक तौर पर दर्ज नहीं हैं, लेकिन बीएलओ मानते हैं कि उन्हें मौखिक रूप से कहा गया है कि जिन व्यक्तियों की "विदेशी पृष्ठभूमि" हो, उनके फॉर्म्स को अलग रखा जाए. इसमें खासतौर से वे नेपाली मूल के लोग शामिल हैं, जिनके पारिवारिक संबंध या जन्म इतिहास नेपाल से जुड़े हैं. 

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सीमांचल में हालात जटिल
सीमांचल में स्थिति और जटिल है. यहां परंपरागत बिहार के सुरजापुरी मुस्लिम समुदाय के लोग SIR प्रक्रिया के पक्षधर हैं, लेकिन शेरशाबादी बस्तियों में रहने वाले लोगों को बांग्लादेशी प्रवासियों की ढाल मानते हैं. दोनों समुदायों के बीच भाषाई और क्षेत्रीय विभाजन से संदेह की यह धारा और गहरी होती है. जब थोड़ा कुरेदा गया, तो BLOs ने बताया कि उन्हें विशेष रूप से "बांग्लादेशी नागरिकों" की पहचान करने को कहा गया है.

 यह शब्द आमतौर पर बंगाली भाषी मुस्लिम समुदायों, खासकर शेरशहाबादी बस्तियों में रहने वालों के लिए इस्तेमाल होता है. ये लोग पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद से दशकों पहले आकर सीमांचल में बसे हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर उन्हें अब भी "बांग्लादेशी" माना जाता है. इस बीच स्थानीय भाषा, मूल और सामाजिक दूरी एक दूसरे पर संदेह पैदा कर रही है.

भारत-नेपाल की खुली सीमा, और बंगाल की ओर नदी किनारे के अनफेंस्ड नदी सीमा के चलते बिहार का सीमांचल क्षेत्र नागरिकता के भ्रम, दस्तावेज़ों और कई बार 'विदेशी खोज' का केंद्र बन गया है. यहां नागरिक और संदिग्ध की पहचान दस्तावेज़ों से नहीं, बल्कि बोली, वंश और अविश्वास से तय होती है.

दीघल बैंक के एक बीएलओ ने एक स्टिंग इंटरव्यू में स्वीकार किया, "27 लोग नेपाली थे. फॉर्म भरवाए थे, पर ऑनलाइन नहीं भेजे. बोला गया इनको अभी जमा नहीं करना है और तब तक उनके नेपाल के रिश्तेदारों के दस्तावेज़ मंगवा लो."

BLO ने 'आजतक' को वे फॉर्म भी दिखाए, जो अलग रखे गए थे. कई के पास आधार और मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट थे, फिर भी इन फॉर्म्स को दस्तावेज़ों के कारण नहीं बल्कि मूल के कारण रोक दिया गया. क्षेत्रीय BLO का स्थानीय होना ही 'लोकल इंटेलिजेंस' समझा जाता है.

मौखिक आदेश: “अभी सबमिट मत करना इनके फॉर्म”
बीएलओ का दावा है कि कोई लिखित आदेश नहीं है लेकिन यह आदेश ऊपर से आया है- "अनौपचारिक लेकिन सख्त". " ठाकुरगंज के एक बीएलओ ने कहा,"हमें बोला गया जिसका संदेह हो, उनका फॉर्म मत भरो ऑनलाइन, उनका निरीक्षण होना है."

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इससे मतदाता गणना की दोहरी प्रणाली बन गई है- एक सामान्य नागरिकों के लिए और दूसरी शंका के आधार पर अलग किए गए लोगों के लिए, जिनकी पहचान बोलचाल, शक, वंश या BLO की “स्थानीय खुफिया जानकारी” पर आधारित है.

बांग्लादेशी नागरिकों के मतदाता सूची में नाम दर्ज होने के सवाल पर, संशोधन का काम संभाल रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "ये लोग 10-20 साल पहले बस गए हैं, उनके पास सभी ज़रूरी दस्तावेज़ हैं, यहां तक कि हम चुनाव आयोग से लगातार इस बारे में बात कर रहे हैं कि वे किस प्रक्रिया का पालन करने के लिए कहेंगे."

गाइघट्टा (कटिहार) के बीएलओ बताते हैं, "जो आदमी फ़ॉर्म लेता है, आधार देता है, राशन कार्ड देता है... हमें कैसे पता चले कि वो बांग्लादेशी या नेपाली है? पर फिर भी बोलते हैं, रुक जाओ." BLOs का कहना है कि यह दबाव बीडीओ या ज़िला स्तर के सुपरवाइज़रों से आता है- ये ऊपर से है."

आधार कार्ड कैसे बनते हैं: ‘माध्यमा’ बोर्ड के सर्टिफिकेट से राह आसान
नेपाल और भारत के बीच की खुली सीमा के चलते, नेपाल से शादी के बाद कोई व्यक्ति भारत में रहकर आधार, वोटर आईडी आदि आसानी से बनवा लेता है. 1950 की भारत-नेपाल संधि के तहत, दोनों देशों के नागरिक एक दूसरे के क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से रह और काम कर सकते हैं. दीघल बैंक के एक बीएलओ, जिनकी पत्नी नेपाल से हैं, ने खुलासा किया कि उन्हें भी जांच का सामना करना पड़ा.

बीएलओ बताते हैं, 'शादी के बाद मध्यमा सर्टिफिकेट बनवा लिया, अप्लाई के तीन महीने में मैट्रिकुलेशन मिल जाता है, उसमें डेट ऑफ बर्थ होता है, उससे आधार बना, वोटर कार्ड बना. अब लोग बोलते हैं यह भी चेक करो. प्रोसेस तो डॉक्यूमेंट्स का है और वह है तो हम कैसे क्वेश्चन करें.' वह कहते हैं कि अब उन्हें अपनी पत्नी के नेपाल-आधारित पारिवारिक कागजात पेश करने के लिए कहा गया है, ऐसा सबूत जो किसी भी भारतीय नागरिक से कभी नहीं मांगा जाता है, "यहां पर ब्लॉक से बोला गया है कि मां-बाप का नेपाल का पेपर लाओ."

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बीएलओ की अपनी दिक्कतें

दीघल बैंक में, एक स्थानीय फास्ट फूड विक्रेता हमें लापरवाही से बताता है कि पूरा क्षेत्र "90% बांग्लादेशी" है. यह पूछे जाने पर कि वह कैसे जानता है, वह कहता है, "भाषा से पता चलता है. और तार तो लगा ही नहीं. सब आ जाते हैं. आप उनकी भाषा से बता सकते हैं. और कोई बाड़ नहीं है, इसलिए कोई भी आ सकता है."

बीएलओ का कहना है कि उन पर "बाहरी लोगों की पहचान" करने का दबाव है, लेकिन स्वीकार करते हैं कि सुनी-सुनाई बातों से परे ऐसा करने की कोई व्यवस्था नहीं है. वो बताते हैं, "कौन है बांग्लादेशी, कौन है बंगाल का, कौन है नेपाल का, सब एक जैसे दस्तावेज ले आते हैं. हम तो मार खाएंगे अगर किसी को हटा दिया बिना सबूत के,"

किशनगंज के एक बीएलओ ने कहा, "यहां सब बाहरी हैं, हम यहां जमींदार परिवार से थे, उस समय हम लोग बंदूक रखते थे यहां डकैती होती थी, तब ये लोग कोई नहीं थे, सब बाद में आए हैं. लेकिन हम इनको पहचान नहीं पाएंगे, कर नहीं पाएंगे हमें टारगेट किया जाएगा, यहां मेरे स्कूल का अध्यक्ष भी उन्हीं के हैं."

पूर्णिया में एक मतदाता का नाम कथित तौर पर हटाए जाने के बाद एक बीएलओ को धमकी मिलने की भी खबर है. फिर भी, बीएलओ को ऐसा टास्क सौंपा जा रहा है जो वे कानूनी और व्यावहारिक रूप से नहीं कर सकते.

2003 की वोटर लिस्ट: अब एक भूतिया दस्तावेज़?

अधिकारी "विरासत सत्यापन" के लिए 2003 की मतदाता सूची को आधार के रूप में उद्धृत करते रहते हैं, लेकिन 'आजतक' ने कटिहार की तीन ग्राम पंचायतों, गाईघाटा, जलकी और मलिकपुर का दौरा किया और यह सूची गायब मिली.

हमने उस क्षेत्र के तीन बीएलओ और एक बीएलओ पर्यवेक्षक से बात की, सभी रिकॉर्ड पर कहते हैं कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे वे एक अभिशाप मानते हैं. गांव के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मुद्दे ने जानबूझकर बाहर किए जाने के डर को जन्म दिया है, एक ने इसे एक साजिश करार दिया है.

किशनगंज के एक बीएलओ ने कहा, "लोग बोलते हैं 2003 में नाम था. पर लिस्ट ही नहीं मिलती. बीडीओ से पूछो तो कहता है जो है उसी में काम करो." एक सुसंगत विरासत दस्तावेज़ के बिना, कई वास्तविक निवासी अब डर रहे हैं कि उनके साथ संदिग्धों जैसा व्यवहार किया जा सकता है.

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छाया सूची (Shadow List): लोकतंत्र का काला चेहरा?
जैसे-जैसे एसआईआर प्रक्रिया की अंतिम तिथि नजदीक आ रही है, बीएलओ दैनिक गणना लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दौड़ रहे हैं, जबकि अलग से 'विदेशी मूल' के आवेदकों की ब्लैक लिस्ट बनाए रख रहे हैं. इनमें से अधिकांश लोगों के पास भारतीय आधार, भारतीय राशन कार्ड, लेबर कार्ड, भूमि रिकॉर्ड या किराएदारी पर्ची है, और कई मामलों में, पिछले चुनावों में मतदान का इतिहास है.

फिर भी, उन्हें चुनावी प्रणाली से रोका जा रहा है, एक ऐसी प्रक्रिया में स्कैन किया जा रहा है जो अपने निर्धारित निर्देशों से भटक रही है, क्षेत्र-विशिष्ट प्रतिक्रियाओं और चिंताओं को पूरा कर रही है. हालांकि हमें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जिसे गणना फॉर्म की रसीद मिली हो, हमें कुछ ऐसे व्यक्ति मिले हैं जिन्हें ईसीआई से उनके फॉर्म जमा होने की पुष्टि करने वाले संदेश मिले हैं.
 

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