ये तो पहले ही साफ हो गया है कि महागठबंधन का चुनाव कैंपेन बिहार में वोटर अधिकार यात्रा से अलग होगा. चुनाव कैंपेन का नेतृत्व तो तेजस्वी यादव ही करने जा रहे हैं. वोटर अधिकार यात्रा में ये काम राहुल गांधी कर रहे थे. लेकिन लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल के धीरे धीरे पांव पसारते हुए आगे बढ़ने के बाद कांग्रेस का हाल करीब करीब किनारे लगा दिए जाने जैसा ही है.
अव्वल तो चुनाव घोषणा पत्र महागठबंधन की तरफ से होना चाहिए था. भले ही कैंपेन का नेतृत्व तेजस्वी यादव के जिम्मे रहता, लेकिन उसे तो नाम ही 'तेजस्वी का प्रण' दे दिया गया है. महागठबंधन तो महज वैसे रह गया है जैसे कागजों में इंडिया ब्लॉक के बिहार चैप्टर का नाम भर हो.
अब तो लगता है तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाना भी ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रह गया है. अब तो तेजस्वी यादव ही महागठबंधन हैं. जैसे ब्रांड तेजस्वी यादव बनाने की कवायद चल पड़ी हो. ये भी नहीं है कि ऐसा पहली बार हो रहा है, पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ऐसा कर चुके हैं. देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और झारखंड में हेमंत सोरेन के नाम भी वोट ऐसे ही पड़े हैं.
नतीजा जो भी हो, बिहार की लड़ाई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनाम नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बनाने की रणनीति पर काम आगे तो बढ़ ही चुका है. और, इस रणनीति में कांग्रेस पिछड़ चुकी है. कांग्रेस के पिछड़ जाने का मतलब तो राहुल गांधी का मौका चूक जाना ही हुआ - जो कुछ बचा है, उसमें राहुल गांधी का रोल तो काफी सीमित ही लग रहा है.
राहुल गांधी फिर से बिहार दौरे पर
सोशल साइट X पर राहुल गांधी ने छठ की जो शुभकामननाएं दी हैं, बीजेपी ने घेर लिया है. दो स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए बीजेपी की तरह से आरोप लगाया गया है कि शुभकामनाएं भी अलग से नहीं दी जातीं, कॉपी-पेस्ट कर दी जाती हैं. लेकिन, फेसबुक पर राहुल गांधी का एक वीडियो जारी हुआ है जिसमें वो भोजपुरी में बिहार के लोगों को संबोधित करते हैं, 'हमार बिहार के भाई-बहन... रउरा के छठ के हार्दिक बधाई... रउरा सबके मिलके बिहार के अस्मिता वापस लाबे के बा, बिहार फिर से देश के नंबर एक पर पहुंचावे के बा.'
लंबे गैप के बाद बिहार के दौरे पर निकलने से पहले राहुल गांधी ने कांग्रेस मुख्यालय में बिहार के कुछ युवाओं से मुलाकात की है, और बिहार पर उनसे चर्चा की है. ये वीडियो मैसेज भी उसी से जुड़ा है. बातचीत का पूरा वीडियो अभी आना बाकी है, ऐसा मैसेज देने की भी कोशिश की गई है.
राहुल गांधी बिहार दौरे पर ऐसे वक्त पहुंच रहे हैं, जब तेजस्वी यादव के कद में काफी बदलाव आ चुका है. तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार ही नहीं, महागठबंधन के नेता ही नहीं, बल्कि उससे भी कहीं ऊपर खुद को पेश करने लगे हैं - राहुल गांधी के लिए भी ये किसी चैलेंज से कम नहीं है. सब कुछ कितना औपचारिक और कितना अनौपचारिक होगा, ये राहुल गांधी को भी तेजस्वी के साथ कैंपेन के बाद ही समझ में आएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक राहुल गांधी पहले चरण की ही तरह दूसरे चरण के कैंपेन में भी शामिल होंगे - और इस दौरान कांग्रेस से जुड़ी करीब दर्जन भर सीटें कवर करने की कोशिश होगी.
बिहार चुनाव में राहुल गांधी की बची हुई भूमिका
लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने 'तेजस्वी प्रण' नाम से मैनिफेस्टो लाकर कई चीजें साफ कर दी है. तेजस्वी यादव ने नये रूप में मैनिफेस्टो पेशकर करीब करीब ये मैसेज देने की कोशिश की है कि कांग्रेस और राहुल गांधी की लालू परिवार को कोई खास जरूरत नहीं रह गई है - जो नजारे वोटर अधिकार यात्रा में देखने को मिले, दोबारा नजर नहीं आने वाले हैं.
राहुल गांधी की तरफ से संयुक्त कैंपेन एक्सचेंज ऑफर जैसा ही लगता है. तेजस्वी यादव के साथ राहुल गांधी इसलिए कैंपेन करने जा रहे हैं, ताकि वो भी कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए करें. और, कांग्रेस की भी कुछ सीटें आ जाएं. खुद को महागठबंधन से ऊपर करके तेजस्वी यादव ने अपनी तरफ से हिसाब किताब शुरू कर दिया है.
ऐसे में राहुल गांधी के लिए स्कोप कम ही बचता है. कोशिश तो कांग्रेस की स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ने की है, लेकिन राहुल गांधी भला उसमें कितना कर पाएंगे, देखना होगा. स्थानीय मुद्दे उठाने से नीतीश कुमार के 20 साल के शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा तो उठाया जा सकता है, बशर्तें ऐसा हो पाए.
स्थानीय मुद्दे तो तेजस्वी यादव ही बेहतर तरीके से उठा सकते हैं, ऐसे में राहुल गांधी के लिए वो काम बचेगा, जो उनका पसंदीदा शगल भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को टार्गेट करना. जब ऐसा करेंगे तो बीच बीच में निशाने पर नीतीश कुमार भी आते रहेंगे.
सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि राहुल गांधी के निशाने पर बिहार की एनडीए सरकार का सुशासन-मॉडल भी हो सकता है. साथ ही, बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा भी. ये दोनों ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर शुरू से ही प्रशांत किशोर का सबसे ज्यादा जोर देखा गया है. कांग्रेस की तरफ से कन्हैया कुमार भी पलायन रोको नौकरी दो यात्रा कर चुके हैं. जिसे सपोर्ट करने के लिए राहुल गांधी बेगूसराय तक गए थे.
तेजस्वी यादव के बयान और भाषण में अब SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण का जिक्र नहीं ही सुनने को मिलता है. एक वायरल वीडियो भी, इस बीच, चर्चा में है. वीडियो में तेजस्वी यादव बिहार की नौकरशाही को धमकाते हुए अंदाज में लोगों से पूछते हैं, 'जो वोट चोरी कराएगा उसे सजा मिलनी चाहिए या नहीं... इस बार जनता तैयार है न सजा देने के लिए! छोड़ा नहीं जाएगा. अब भी मेरी सलाह है भ्रष्ट अधिकारियों, अमित शाह के चेलों-चमचों, बेईमानी का 'ब' भी दिमाग में मत लाना... मत लाना.'
कांग्रेस का तो पूरा जोर एसआईआर पर ही रहा है. संभव है बिहार दौरे में राहुल गांधी फिर से एसआईआर और वोट-चोरी के मुद्दे पर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को घेरने की कोशिश करें. असर हो न हो, अलग बात है, लेकिन राहुल गांधी पसंदीदा टॉपिक छोड़ते तो नहीं ही हैं. ऐसे तमाम उदाहरण हैं. मसलन, अडानी का मुद्दा.
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