इस कहानी की शुरुआत तब हुई जब मेरे सीनियर ने बातचीत में कहा कि चुनाव आयोग की तरफ से बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की निष्पक्ष जांच असल में जरूरी है. खासकर तब जब घुसपैठ का मुद्दा फिर से चर्चा में है. उनकी इसी बात ने मुझे इंसपायर किया, या यूं कहूं कि फोर्स किया कि मैं बिहार की धरती पर पहुंचू.
बस क्या था, हाल के ही विमान दुर्घटना की वजह से डर के बावजूद मैंने दिल्ली से पटना के लिए फ्लाइट ली, मकसद था कि वोटर लिस्ट से नाम काटे जाने की कहानियां किस तरह शहरों से होते हुए सीमांचल के कोनों तक पहुंच रही हैं. जब हम मुजफ्फरपुर से होते हुए हाजीपुर पहुंचे, तो बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) पहले ही आधे सच और आधे झूठ में बातें करने लगे थे.
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सवाल था - इस SIR प्रक्रिया में हो क्या रहा है? क्यों खासतौर पर मुस्लिम, बंगाली मूल या शेरशहाबादी समुदाय के लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब पाए जा रहे हैं, जब कि उन्होंने पिछले साल ही वोट किया था?
बिहार में यह SIR प्रक्रिया मृत, डुप्लिकेट या शिफ्टेड वोटर्स की पहचान के लिए हो रही है. इससे पहले जून 2024 में Summary Revision हो चुका था, जो कि एक वार्षिक प्रक्रिया है. यानी 2024 के लोकसभा चुनाव और SIR के बीच एक औपचारिक मौका मिला था नाम जोड़ने या सुधार का. फिर भी अब लोगों को पता चल रहा है कि उनका नाम चुपचाप हटा दिया गया है.
इससे एक बड़ा सवाल खड़ा होता है - ये डिलीशन असल में कब हुए? क्या Summary Revision के दौरान बिना जानकारी हटाया गया या SIR को अब बस वैध ठहराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है?
पूर्णिया में क्या कह रहे बीएलओ अधिकारी?
हम पूर्णिया के मुस्लिम बहुल चिमनी बाजार पहुंचे. वार्ड पार्षद सिताब ने बताया कि करीब 400 मुस्लिम मतदाताओं के नाम गायब हैं. एक शख्स ने हमें 2024 का वोटर स्लिप दिखाया - उन्होंने वोट डाला था, अब कहा जा रहा है "नाम लिस्ट में ही नहीं है." लोगों के पास वोटर ID है लेकिन नाम डिलीट कर दिए गए. उन्होंने कभी कोई आपत्ति नहीं सुनी, कोई दस्तावेज नहीं मांगा गया, लेकिन अब फॉर्म 6 भरने को कहा जा रहा है.
BLO की उलझन: "डिलीशन तो जिला से होता है"
एक वार्ड में चार बीएलओ अधिकारी काम कर रहे हैं. 18 साल से सिस्टम में काम कर रहे एक बीएलओ ने कहा, "2024 में वोट दिया, 2025 में नाम कट गया. नाम जिला से कटते हैं. हम बस सिस्टम में डालते हैं." जब हमने पूछा कि जिनके पास सारे दस्तावेज हैं उनका नाम कैसे हट गया? उन्होंने कहा - "कुछ गड़बड़ मिली होगी तभी कटा होगा. वैसे ही नहीं काटते."
बीएलओ ने दावा किया कि 60 प्रतिशत लोग बाहर से आए हुए लगते हैं. BLO ने यह भी स्वीकारा कि उन्हें धमकी मिली थी जब एक व्यक्ति का नाम कटा था. उन्होंने दावा किया कि नाम डिलीट करने की प्रक्रिया जिला लेवल पर हुए थे और ये बीएलओ के द्वारा नहीं किए गए. उन्होंने कहा कि उनके हाथ बंधे थे. अधिकारी ने यह भी कहा कि पहले लाखों नाम हटाए गए और नहीं जानता कि ये कैसे हुआ.
मुजफ्फरपुर और हाजीपुर में फार्म बिना दस्तावेज के अपलोड हो रहे हैं
पूर्णिया पहुंचने से पहले हम मुजफ्फरपुर और हाजीपुर में रुके, यहां मिक्स आबादी है और यहां भी लोगों में हैरानी है. यहां हमने पाया कि फॉर्म सबमीशन में ही गड़बड़ी चल रही है. मुजफ्फरपुर में एक BLO ने हमें मोबाइल ऐप का डेमो दिखाया - बिना कोई दस्तावेज स्कैन किए, सिर्फ नाम, जन्मतिथि और फोटो डालकर फॉर्म सबमिट किया जा रहा है.
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BLO ने कहा — "हम स्थानीय हैं, पहचानते हैं लोगों को. बाद में अगर आपत्ति आई तो डॉक्युमेंट मांगेंगे." हाजीपुर में एक BLO ने कहा — "पहले बिना दस्तावेज फार्म नहीं लेना था. अब कहा जा रहा है पहले फार्म लो, डॉक्युमेंट बाद में." एक BLO सहायक ने बताया कि कुछ दिन पहले तक आधार नंबर मान्य नहीं था, लेकिन अब सिर्फ आधार, नाम, जन्मतिथि और हस्ताक्षर से भी फार्म जमा हो रहा है.
यह एक अहम बदलाव है. कागजों पर, एसआईआर प्रक्रिया में नागरिकता, आयु और निवास का प्रमाण आवश्यक है, लेकिन हाजीपुर के बीएलओ स्वीकार करते हैं कि उन्हें अपने विवेक का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है. एक बीएलओ ऑब्जर्वर ने बताया, "यह प्रक्रिया मुख्य रूप से मृत या डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाने के लिए है. नए निर्देशों के आधार पर 25 अगस्त के बाद दस्तावेजों की जांच की जाएगी."
गंभीर असमानताएं और भ्रम का माहौल
आजतक के कैमरे में कैद किए गए फुटेज में हमने पाया कि कहीं BLO आधार को जरूरी मान रहे हैं, कहीं नहीं. एक BLO ने कहा, "हर जगह अलग सिस्टम है. कुछ जगह आधार चलता है, कुछ जगह ऑप्शनल है." इसने नागरिकों में बड़ा भ्रम पैदा किया है. आने वाले हिस्से में हम दिखाएंगे कि कैसे विदेशी नागरिकों की पहचान हो रही है, दस्तावेज गायब हो रहे हैं, और BLO पर भारी दबाव है जबकि डोर-टू-डोर सर्वे पूरे नहीं हुए.
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