बिहार में क्या वाकई मतदाता सूची से नाम हटाए जाएंगे? विपक्ष का क्यों छूट रहा है पसीना?

5 days ago 1

बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर बवाल मचा हुआ है. विपक्ष आरोप लगा रहा है कि यह प्रक्रिया गरीब, वंचित, और अल्पसंख्यक समुदायों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश है. दरअसल इस प्रक्रिया के तहत सभी मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए Enumeration Forms भरना होगा.  

1 जनवरी 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं को नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे. चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के तहत शुरू की गई है. निर्वाचन आयोग के अनुसार, बिहार में 7.89 करोड़ मतदाताओं की पात्रता की पुष्टि की जाएगी, जिसमें से 4.96 करोड़ मतदाताओं को केवल सत्यापन करना होगा, क्योंकि उनके नाम 2003 की मतदाता सूची में पहले से मौजूद हैं.

यानि कि कम से कम ढाई करोड़ मतदाताओं पर संकट के बादल हैं. यही कारण है कि विपक्ष ने इसे बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक सोची-समझी रणनीति के रूप में देख रही है. जिसका उद्देश्य समाज के कुछ वर्गों, खासकर गरीब, वंचित, और अल्पसंख्यक समुदायों को मतदाता सूची से बाहर करना हो सकता है. 

मतदाता सूची का पुनरीक्षण को विपक्ष क्यों कह रहा है वोटबंदी

चुनाव की ओर बढ़ते बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चिंतित विपक्षी गठबंधन INDIA Bloc की 10 पार्टियों ने बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात की और कहा कि इतने कम समय में मांगे जा रहे दस्तावेजों को जुटाना लोगों के लिए मुश्किल होगा और इससे राज्य के 2-3 करोड़ मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं.

INDIA ब्लॉक का प्रतिनिधिमंडल मुख्य चुनाव आयुक्त से मिला.  कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल उठाया कि क्या 2003 के बाद से अब तक बिहार में चार-पांच चुनाव हो चुके हैं, क्या वे सब गलत, अपूर्ण या अविश्वसनीय थे? दरअसल चुनाव आयोग 2003 के बाद मतदाता बने लोगों से उनका जन्म प्रमाण पत्र मांग रही है.इसका कारण यह है कि पिछला विशेष पुनरीक्षण 2003 में हुआ था. हालांकि ये लोकसभा चुनाव के एक साल और विधानसभा चुनाव से दो साल पहले हुआ था. आरोप है कि इस बार पुनरीक्षण के लिए बहुत कम समय मिल रहा है.

जाहिर है कि विपक्ष एक सुर में इस प्रक्रिया को लोकतंत्र पर हमला और प्रशासनिक एनआरसी करार दे रहा है. तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार में 8 करोड़ से अधिक मतदाताओं में से 60% को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी, जो गरीब और अशिक्षित आबादी के लिए मुश्किल है. योगेंद्र यादव ने अनुमान लगाया कि 4.76 करोड़ मतदाताओं का नाम सूची से हट सकता है. 

दरअसल सबसे मुश्किल यह है कि आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों को चुनाव आयोग स्वीकार नहीं कर रहा है. जाहिर है कि समाज के हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जैसे दलित, आदिवासी, और अल्पसंख्यकों, के मताधिकार पर असर पड़ सकता है.

चुनाव आयोग के तर्क

निर्वाचन आयोग ने इस प्रक्रिया को नियमित और संवैधानिक बताया है, जो पिछले 75 वर्षों से चल रही है. आयोग ने 2003 की मतदाता सूची को वेबसाइट पर अपलोड किया है, जिससे 4.96 करोड़ मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी. फिर भी, विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में और अपारदर्शी तरीके से लागू की जा रही है.

विपक्ष का तर्क है कि बिहार में सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखें तो 26.54% लोग टीन या खपरैल की छत के नीचे रहते हैं. 14.09% झोपड़ियों में, और केवल 45-50% युवा (18-40 आयु वर्ग) मैट्रिक पास हैं. इन समुदायों के पास जन्म प्रमाण पत्र या आवासीय प्रमाण जैसे दस्तावेजों की कमी हो सकती है.

पर   बिहार में आधार कार्ड धारकों का प्रतिशत अगर देखें तो विपक्ष का यह आरोप तर्कहीन ही लगता है. 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में औसतन 92.47% लोगों के पास आधार कार्ड है. विशेष रूप से सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया) में यह आंकड़ा 100% से अधिक है, क्योंकि वहां अनुमानित आबादी से ज्यादा आधार कार्ड बनाए गए हैं. दरअसल यह सभी जिलेँ ऐसे हैं जहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या की आबादी संभव हो सकती है. किशनगंज में 105.16%, अररिया में 102.23%, कटिहार में 101.92%, और पूर्णिया में 100.97% आधार कार्ड धारक हैं. जबकि राज्य के अन्य जिलों में यह 85-90% के बीच है. साफ दिखता है कि यहां आबादी से अधिक लोगों ने आधार कार्ड बनवा रखा है. 

टीएन शेषन ने वोटर आईडी कंपल्सरी किया, तब भी मचा था हल्ला 

जब टी.एन. शेषन ने 1993 में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी) को अनिवार्य करने का निर्णय लिया, तो इससे देश भर में व्यापक हंगामा और बहस छिड़ गई. उस समय भी कहा गया कि यह गरीब गुरबा लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर करने का तरीका है. पर शायद वंचित लोगों को लिए यह वोटर आईडी रामबाण बनकर आया. जिन लोगों के वोट कभी नहीं पड़े थे उन लोगों ने भी वोटर आईडी बनने के बाद अपने वोट दिए.

चुनाव प्रक्रिया में सुधार का ही कारण रहा कि कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के सामने बीएसपी, आरजेडी,समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां मजबूत होकर उभरीं.  शेषन का कठोर सुधारवादी रवैये ने मतदाता सूची को शुद्ध करने और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने का ऐतिहासिक काम किया. भारत में चुनावी प्रक्रिया में कई खामियां थीं, जैसे फर्जी मतदान, डुप्लिकेट मतदाता, और मतदाता सूची में गड़बड़ियां. शेषन के इस सुधारवादी कार्य ने हर मतदाता को उसका पहचान पत्र मिला जिसके चलते फर्जी वोटिंग रोका जा सका.

उस समय भारत में अधिकांश आबादी विशेषकर ग्रामीण और गरीब समुदायों के पास, कोई औपचारिक पहचान पत्र नहीं था. जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल प्रमाण पत्र, या अन्य दस्तावेजों की कमी के कारण लाखों लोगों के लिए वोटर आईडी बनवाना मुश्किल था. ग्रामीण क्षेत्रों में फोटोग्राफी और दस्तावेज सत्यापन की सुविधाएं सीमित थीं, जिससे प्रक्रिया जटिल हो गई फिर भी 2 साल के अंदर सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गई. आज तो कंप्यूटर है, इंटरनेट है जो काम की गति को सैकड़ों गुना बढ़ा देता है.
 

---- समाप्त ----

Read Entire Article