बिहार में वोटकटवा बनकर भी फायदा ही फायदा है आम आदमी पार्टी को

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बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. इसके साथ ही पार्टी ने यह भी घोषणा की है कि वह किसी भी अन्य दल के साथ गठबंधन नहीं करने जा रही है.पर सवाल उठता है कि आम आदमी पार्टी किस आधार पर बिहार के लोगों से यह उम्मीद रखती है कि वो उसे वोट देंगे. जाहिर है कि बिना किसी उम्मीद के अरविंद केजरीवाल इतना बड़ा कदम नहीं उठाने जा रहे हैं. चुनाव लड़ने में पैसा खर्च होता है इसके साथ ही वोट न मिलने पर पार्टी की क्रेडिबिल्टी भी जाती है. इसलिए आम आदमी पार्टी जैसा राजनीतिक दल कभी नहीं चाहेगा कि वह बेवजह चुनाव मैदान में उतरे. इसलिए ये समझना भी ठीक नहीं है कि अरविंद केजरीवाल केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मैदान में उतर रहे हैं. 

1-बिहार में वोटकटवा बनकर सहयोगियों को सबक सिखाएगी आप

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) वोटकटवा के रूप में उभरकर इंडिया गुट के अपने साथी दलों को सबक सिखाने का काम कर सकती है. RJD, कांग्रेस, वाम दलों को चैलेंज करके वह एक बार फिर से अपना इम्पॉर्टेंस साबित कर सकती है. भविष्य में गठबंधन की राजनीति अगर देश में हॉवी होती है तो आम आदमी पार्टी को उसमें पर्याप्त महत्व मिले इसके लिए ये बहुत जरूरी भी है. 

AAP का अकेले चुनाव लड़ना महागठबंधन के वोटों को बांट सकता है, क्योंकि दोनों समान मतदाता आधार है. जैसे गठबंधन की सभी पार्टियां युवा, शहरी, और बदलाव चाहने वाले मतदाताओं को टार्गेट कर रही हैं. 

2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को 42% वोट मिले, जबकि एनडीए को 52%. यदि AAP, खासकर शहरी क्षेत्रों जैसे पटना, दरभंगा, और मुजफ्फरपुर में, महागठबंधन के 2-4 प्रतिशत वोट भी काट लेती है, तो यह कई सीटों पर एनडीए को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचा सकता है.क्योंकि विधानसभा सीटों पर मतों का अंतर कम होता है. 

2-हार कर भी जमीन बनाने में सफल हो सकती है आम आदमी पार्टी

AAP का बिहार में संगठन अभी प्रारंभिक चरण में है. सभी सीटों पर चुनाव लड़ने से उसे बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने और जमीनी नेटवर्क तैयार करने का मौका मिलेगा. बिहार में बीजेपी ,जेडी यू और आरजेडी जैसी पार्टियों के लिए यह  ‘केजरीवाल जनसंपर्क यात्रा’ और कार्यकर्ता सम्मेलनों ने कुछ आधार तैयार किया है. पार्टी अगर बुरी तरह हारती भी है तो कम से कम से उसे बिहार की राजनीति समझने का मौका मिलेगा जो 2029 के लोकसभा चुनावों में काम आएगा. खासकर शहरी क्षेत्रों जैसे पटना और दरभंगा में.
 आम आदमी पार्टी ने बहुत से आईटी इंजिनियरों को चुनाव प्रचार के हायर किया है. इसके दम पर  AAP अपनी दिल्ली और पंजाब की उपलब्धियों, जैसे मुफ्त बिजली, मोहल्ला क्लीनिक, और शिक्षा सुधार, को बिहार में प्रचारित कर पार्टी की ब्रैंडिंग कर सकती है.
बिहार की बहुत सी जनता जो राजद, जद(यू), और बीजेपी की जातिगत राजनीति से तंग हैं उन्हें लुभाने का भी यह दीर्घकालिक फंडा हो सकता है. 

3-बिहार में जनसुराज को उसकी हैसियत बता सकती है आप

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) और जन सुराज पार्टी (JSP) दोनों ही वैकल्पिक राजनीतिक ताकतों के रूप में उभर रही हैं. AAP ने सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. जाहिर है कि बिहार में इस बार इन दोनों राजनीतिक विकल्पों की टक्कर देखने लायक होगी. AAP के पास दिल्ली और पंजाब में सिद्ध शासन मॉडल और तथाकथित भ्रष्टाचार-विरोधी छवि है तो जनसुराज के पास बिहार में पिछले दो सालों के सघन जनसंपर्क और स्थानीय प्रशांत किशोर का नेतृत्व है. जाहिर है कि राजनीतिक समीक्षकों की नजर दोनों पार्टियों की टक्कर पर होगी. आम जनता में भी उत्सुकता होगी दोनों पार्टियों में किसे ज्यादा महत्व मिलता है.
शहरी और युवा मतदाताओं के लिए बिहार में बिजली कटौती (8-10 घंटे प्रतिदिन) और कमजोर स्वास्थ्य-शिक्षा सेवाएं AAP के वादों को प्रासंगिक बनाती हैं.  AAP अपने अनुभव का लाभ उठाकर जन सुराज को चुनौती दे सकती है.

बिहार के शहरी क्षेत्रों और दिल्ली में रहने वाले बिहारी प्रवासियों के बल पर आप को उम्मीद है कि बिहार में नया राजनीतिक विकल्प वह ही दे सकती है .जबकि जन सुराज को 3500 किमी की पदयात्रा और 1 करोड़ संस्थापक सदस्यों का भरोसा है. विश्लेषकों का मानना है कि AAP के सभी सीटों पर लड़ने से महागठबंधन को तो नुकसान होगा, और यह जन सुराज के प्रभाव को भी कम कर सकता है.

4-राष्ट्रीय पार्टी का सही मायने में दर्जा 

बिहार में चुनाव लड़ना AAP के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को बनाए रखने के लिए सीधे तौर पर अनिवार्य नहीं है, पर पार्टी राष्ट्रीय दर्जा को और मजबूत करने के काम तो आएगा ही. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बनाए रखने की शर्तें मुख्य रूप से लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वोट शेयर और सीटों पर आधारित होता है. बिहार में मजबूत प्रदर्शन (6% वोट शेयर और कम से कम 2 विधानसभा सीटें) AAP को बिहार में राज्य पार्टी का दर्जा दिला सकता है, जो राष्ट्रीय पार्टी की स्थिति को मजबूत करने में मदद करेगा.

 इसके साथ ही बिहार एक बड़ा राज्य होने के साथ हिंदी हार्ट लैंड भी है. बिहार की हर राजनीतिक खबर राष्ट्रीय खबर होती है. अरविंद केजरीवाल अगर इस स्टेट में अच्छा वोट शेयर हासिल करते हैं तो AAP को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में उन्हें मदद मिलेगी. हालांकि आप को 4 राज्यों में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है पर अगर बिहार में भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है तो यह पार्टी के लिए सोने में सुहागा होगा. राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को बनाए रखने के लिए चार राज्यों में 6% वोट शेयर की शर्त होती है.

आम आदमी पार्टी बिहार में सरकार बनाने के दावे के साथ तो नहीं उतर रही है और न ही किंग मेकर की भूमिका निभाने के लिए. लेकिन, सियासी रूप से बेहद संवेदनशील राज्य के चुनावों में नई पार्टियों के लिए नई नई संभावनाएं हमेशा रही हैं. कौन जाने AAP की हथेली की रेखाओं में क्‍या लिखा है.

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