बिहार में वोटर लिस्ट का बड़ा फेरबदल: यहां छोटे मार्जिन से भी बदल सकते हैं चुनावी समीकरण!

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बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वोटर लिस्ट को लेकर बड़ा हंगामा मच गया है. इसमें से 65 लाख नाम हटाए गए या शिफ्ट किए गए हैं, जो हर 12 में से एक वोटर के बराबर है! यह संख्या ज्यादातर सीटों पर औसत जीत के अंतर से भी ज्यादा है. क्या यह बदलाव चुनावी नतीजों को पलट सकता है? आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं.

क्यों है ये मसला गंभीर?

बिहार में ज्यादातर विधानसभा सीटें बेहद कम अंतर से जीती जाती हैं. साल 2020 के चुनाव में औसत जीत का अंतर करीब 16,825 वोट था लेकिन हर सीट पर औसतन 26,749 वोटरों के नाम हटाए गए या शिफ्ट किए गए हैं. यानी दो-तिहाई सीटों पर यह बदलाव नतीजों को पलट सकता है.  

आंकड़ों में सच

7.89 करोड़: 24 जून तक रजिस्टर्ड वोटर  
7.24 करोड़: वेरीफिकेशन फॉर्म जमा करने वाले वोटर  
65 लाख: हटाए गए या शिफ्ट हुए वोटर  
26,749: हर विधानसभा सीट पर औसत हटाए गए वोटर  
16,825: 2020 का औसत जीत का अंतर  
165: 2020 में उन सीटों की संख्या जहां मार्जिन हटाए गए वोटरों की औसत संख्या से कम था

गहराई से समझें पूरा मामला 

27 जुलाई को चुनाव आयोग (ECI) ने बताया कि बिहार के 91.69% वोटरों ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान फॉर्म जमा कर दिए हैं. यह प्रक्रिया 2025 के चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को साफ करने के लिए की जा रही है, जिसमें 65 लाख नाम ऐसे हैं, जो मृत हो गए, कहीं और चले गए या डुप्लिकेट पाए गए.  

इन नामों को 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली ड्राफ्ट लिस्ट से बाहर रखा जाएगा. हालांकि, यह अंतिम नहीं है. 1 अगस्त से 1 सितंबर तक वोटर आपत्ति उठा सकते हैं और दावे पेश कर सकते हैं.  ECI का दावा है कि यह नियमित रखरखाव का हिस्सा है, लेकिन इसका समय और भारी-भरकम पैमाना बिहार के कड़े चुनावी मुकाबलों को प्रभावित कर सकता है.  

2020 के आंकड़े बताते हैं कहानी

साल 2020 में 243 में से 165 सीटें ऐसी थीं जहां जीत का अंतर औसत हटाए गए वोटरों की संख्या से कम था. उदाहरण के लिए भोरे सीट पर जनता दल (यूनाइटेड) के सुनील कुमार ने सिर्फ 462 वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन वहां 7,680 वोटर हटाए गए या शिफ्ट हो गए.  

बड़ा सवाल

बिहार में चुनाव अक्सर कुछ सौ या हजार वोटों पर टिके होते हैं. ऐसे में 65 लाख वोटरों का यह फेरबदल दर्जनों सीटों के नतीजों को बदल सकता है. इस साल होने वाले चुनाव में इस डेटा और इसके बाद की प्रक्रिया का असर लंबे समय तक देखने को मिलेगा. चुनाव आयोग ने 27 जुलाई को कहा कि हम ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी पात्र वोटर बाहर न रहे. दावे और आपत्तियों के दौरान गलत तरीके से हटाए गए वोटरों को फिर से जोड़ा जा सकेगा.

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