ब्रिटेन में 'तीन पैरेंट्स' वाली IVF तकनीक से 8 बच्चों को पैदा किया है. ब्रिटेन में न्यूकैसल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक नई तीन-व्यक्ति इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक विकसित की है, जिससे आठ बच्चों को गंभीर आनुवंशिक बीमारियों से बचाया गया है. यह तकनीक मां के खराब माइटोकॉन्ड्रिया को स्वस्थ दानकर्ता के माइटोकॉन्ड्रिया से बदलती है. यह खबर 16 जुलाई को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुई.
क्या है यह तकनीक?
यह तकनीक मां और पिता के DNA को सुरक्षित रखते हुए मां की खराब माइटोकॉन्ड्रिया को हटाती है. माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं के "ऊर्जा कारखाने" कहते हैं. अगर इसमें खराबी होती है, तो यह मस्तिष्क, लीवर, हृदय, मांसपेशियों और किडनी जैसी ऊर्जा लेने वाले अंगों को प्रभावित कर सकती है.
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इस तकनीक में मां के निषेचित अंडे का नाभिक (प्रोन्यूक्ली) और पिता के शुक्राणु का नाभिक एक स्वस्थ दानकर्ता के अंडे में स्थानांतरित किया जाता है, जिसमें स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं. इससे बच्चे को मां की खराबी विरासत में नहीं मिलती.
कैसे काम करती है यह प्रक्रिया?
- पहले मां के अंडे को पिता के शुक्राणु से निषेचित किया जाता है.
- फिर निषेचित अंडे के नाभिक (मां और पिता का डीएनए) को निकाल लिया जाता है.
- इसे एक दानकर्ता के निषेचित अंडे में डाला जाता है, जिसका नाभिक पहले हटा दिया गया होता है.
- अब यह अंडा स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया और मां-पिता के डीएनए के साथ विकसित होने लगता है.
- इस तरह खराब माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को स्वस्थ डीएनए से बदल दिया जाता है.
वैज्ञानिक मैरी हर्बर्ट, जो न्यूकैसल विश्वविद्यालय में प्रजनन जीवविज्ञान की प्रोफेसर हैं. वो कहती हैं कि यह प्रक्रिया खराब माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को स्वस्थ डीएनए से बदल देती है.
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क्या हुआ परिणाम?
इस तकनीक का परीक्षण 22 महिलाओं पर किया गया, जिनके बच्चे को आनुवंशिक बीमारी होने का खतरा था. इनमें से आठ महिलाओं ने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. इनमें चार लड़के और चार लड़कियां हैं, जिनकी उम्र 6 महीने से 2 साल के बीच है. एक महिला अभी गर्भवती है. छह बच्चों में मां के खराब माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए 95-100% कम पाया गया, जबकि दो में 77-88% कम. सभी बच्चे जन्म के समय स्वस्थ थे. उनका विकास सामान्य है. एक बच्चे का दिल की लय में मामूली बदलाव था, जो इलाज से ठीक हो गया.
किसे मिलेगा फायदा?
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियां हर 5000 जन्म में से एक को प्रभावित करती हैं. ये बीमारियां मां से बच्चे को विरासत में मिलती हैं.इनका इलाज संभव नहीं है. इससे मांसपेशियों में कमजोरी, दृष्टि दोष, मधुमेह और अंगों की विफलता जैसी समस्याएं हो सकती हैं. आमतौर पर IVF में डॉक्टर कम जोखिम वाले अंडों का चयन कर सकते हैं, लेकिन अगर सभी अंडों में खराबी हो, तो यह नई तकनीक मदद करती है.
ब्रिटेन में मंजूरी और विवाद
2015 में ब्रिटेन पहला देश बना, जिसने इस माइटोकॉन्ड्रियल दान उपचार को मानव पर शोध के लिए वैध किया. लेकिन उसी साल अमेरिका ने इसे प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि यह वंशानुगत आनुवंशिक संशोधन माना गया. इस तकनीक को "तीन-माता-पिता के बच्चे" कहा जाता है, क्योंकि बच्चे का 99.9% डीएनए मां-पिता से और 0.1% दानकर्ता से आता है. कुछ धार्मिक और नैतिक समूहों ने इसका विरोध किया, क्योंकि इसमें भ्रूण को नष्ट करना पड़ता है. डर है कि यह "डिज़ाइनर बेबी" की ओर ले जा सकता है.
वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की राय
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रजनन विशेषज्ञ डॉ. एंडी ग्रीनफील्ड कहते हैं कि यह दशकों के वैज्ञानिक, नैतिक और कानूनी प्रयासों का परिणाम है. स्वीडन के प्रजनन विशेषज्ञ नील्स-गोरान लार्सन ने इसे "महत्वपूर्ण प्रजनन विकल्प" बताया, जो परिवारों को राहत देगा. हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि आठ बच्चों का डेटा सीमित है. लंबे समय तक निगरानी की जरूरत है.
भविष्य की राह
न्यूकैसल और ऑस्ट्रेलिया में इस तकनीक पर आगे शोध जारी है. वैज्ञानिक इसे और बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि मां का खराब डीएनए पूरी तरह हटाया जा सके. बच्चों की सेहत को 5 साल तक देखा जाएगा. अमेरिका में अभी इस पर शोध पर रोक है, लेकिन यह तकनीक बीमारी से मुक्त बच्चों की उम्मीद जगाती है.
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