भारत पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाने वाला अमेरिका खुद कितना रेसिस्ट?

6 days ago 1

अमेरिका और भारत के बीच तल्खी लगातार बढ़ रही है. कभी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के साथ जंग को लेकर बड़बोलापन दिखाते हैं, तो कभी भारी-भरकम टैरिफ लगा देते हैं. ट्रंप की टीम भी आग में घी डाल रही है. उनके सलाहकार पीटर नवारो ने ब्राह्मणों पर रूस से तेल खरीद मुनाफाखोरी का आरोप लगा डाला. आम लोगों को उकसाने के लिए उन्होंने ये तक कह दिया कि ब्राह्मणों की इस करनी का नुकसान आम भारतीय झेल रहे हैं. जातिगत फूट डालने के लिए की गई उकसाऊ बयानबाजी के बीच ये भी चर्चा है कि समानता को लेकर अमेरिका खुद कितने पानी में है. 

अमेरिका का रेसिज्म का पुराना इतिहास

यह देश आज जिस बराबरी की बात करता है, उसके पीछे एक लंबा काला इतिहास है. अफ्रीकी मूल के लोगों को वहां 17वीं सदी से गुलाम बनाया गया. 19वीं सदी के अधबीच में गुलामी भले ही खत्म हो गई, लेकिन भेदभाव बना रहा. गहरे रंग वालों के लिए अलग से स्कूल, अस्पताल और यहां तक कि टॉयलेट बनाए गए. ये लोग वोट देने, अच्छी नौकरी पाने या बराबरी का हक मांगने में भी दबाए जाते थे. साठ के दशक में भारी बवाल के बाद कानूनी तौर पर बराबरी मिल गई लेकिन नस्लभेद अब भी वहां है. 

इसी साल हुई घटनाएं 

- अगस्त के आखिर में मिनेसोटा के स्कूल में गोलीबारी हुई. फेडरल जांच में इसे एंटी-कैथोलिक हेट क्राइम माना गया. 

- जून में प्रो-इजरायली वॉक कर रहे समूह पर हमला होता है, साथ में यहूदियों के खिलाफ नारे लगाए गए. 

- इसी साल एंटी-यहूदियों घटनाओं में 361 प्रतिशत बढ़त, ये डेटा टाइम मैग्जीन में छपा था. 

- टेक्सास में बना वाइट सुप्रीमिस्ट गुट- आर्यन फ्रीडम नेटवर्क, अपने सिवाय लगभग सबसे नफरत कर रहा है. 

- अफ्रीकन अमेरिकन और भारतीयों के खिलाफ भी हेट क्राइम तेजी से बढ़ा.

- इमिग्रेंट्स भी अमेरिकियों की नफरत और हिंसा का शिकार हो रहे हैं. 

peter navarro on brahmins india (Photo- AFP)ट्रंप के ट्रेड एडवायजर पीटर नवारो आलोचनाओं के बाद नर्म बयान दे रहे हैं. (Photo- AFP)

असल रहवासी साइडलाइन कर दिए गए

बाहर से आए लोगों की छोड़ दें तो भी अमेरिका के अपने लोग ही किनारे धकिया दिए गए. दरअसल, यूएस की असल आबादी नेटिव अमेरिकन्स की थी. लेकिन अब वे अपने ही घर में मेहमान हो चुके. यहां तक कि उनकी जनसंख्या घटते हुए 2 फीसदी से भी कम रह चुकी. उनकी जगह सदियों पहले यूरोप से आकर बसे लोगों ने ले ली.

क्रूरता कब्जे पर खत्म नहीं हुई, बल्कि इसके चैप्टर हिंसा से सने हुए हैं. मुख्यधारा में लाने के नाम पर नेटिव जातियों पर जमकर हिंसा हुई. यहां तक कि उनकी भाषा और कल्चर तक छीन लिया गया. यह एक तरह का कल्चरल नरसंहार ही था लेकिन अमेरिका इसकी बात नहीं करता. 

क्या कहते हैं शोध

जमीन पर दिख रहे फर्क को रिसर्च भी सपोर्ट करते हैं. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के चार साल पहले हुए अध्ययन के अनुसार, अश्वेत अमेरिकन्स की पुलिसिया हिंसा से मरने की आशंका श्वेत अमेरिकियों से लगभग 3.5 गुना ज्यादा रहती है. छुटपुट से लेकर बड़े जुर्म में भी अश्वेत लोगों की कॉलोनी पर सबसे पहले छापा पड़ता है, या शक के आधार पर उन्हीं पर पहला एक्शन लिया जाता है. 

भारतीयों समेत एशियाई तबका भी हिंसा से बचा हुआ नहीं. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की पिछले साल की रिपोर्ट बताती है कि यूएस में एशियाई समुदाय में 53% वयस्कों ने नस्लभेदी कमेंट्स सुनीं या हिंसा झेली. इसमें भी ज्यादातर घटनाएं पुलिस की जानकारी में नहीं आ सकीं क्योंकि लोग डरते हैं कि इससे वे और परेशान किए जाएंगे. यहूदियों के बाद ऑनलाइन हेट क्राइम के सबसे ज्यादा शिकार भारतीय हैं. इसी साल सिर्फ जनवरी में दक्षिण एशियाई मूल के खिलाफ लगभग 88 हजार हेट कमेंट्स दर्ज की गईं. हिंदू मंदिरों पर हमले बढ़ते दिख रहे हैं.

hate crime migrants america (Photo- Reuters)अमेरिका अब प्रवासियों को लेकर भी उदार नहीं दिख रहा. (Photo- Reuters)

एंटी-सेमिटिज्म सबसे ज्यादा

इजरायल भले ही यूएस का खास लगे, लेकिन अमेरिका में वो सबसे ज्यादा असुरक्षित है. ज्यूइश लोगों से नफरत को एंटी-सेमिटिज्म कहते हैं. इसी साल अगस्त में रिलीज हुए सालाना FBI डेटा के मुताबिक, अमेरिका में साढ़े ग्यारह हजार से ज्यादा हेट क्राइम हुए, जिनमें से लगभग ढाई हजार मामले अकेले यहूदियों के खिलाफ थे. ये संख्या इसलिए चौंकाती है क्योंकि उनकी आबादी लगभग 2 प्रतिशत ही है. यहूदियों के अलावा जेंडर, सेक्सुअल चॉइस जैसी श्रेणियों में भी नफरती कमेंट्स या घटनाएं बढ़ीं. 

ट्रंप के आने पर क्या बदला 

वाइट हाउस आने से पहले ही ट्रंप ने मास डिपोर्टेशन के नारे लगाए और आते ही उसपर अमल भी शुरू कर दिया. इस दौरान इमिग्रेंट्स को डर्टी और पालतू पशुओं को खाने वाला तक कह दिया गया. कई वीडियो वायरल हुई, जिससे अपने से अलग लोगों को लेकर आम अमेरिकियों के मन में कुछ दूरी तो जरूर आ गई. अब कई एक्सट्रीमिस्ट समूह चल रहे हैं, जो अलग-अलग मुद्दों को लेकर किसी न किसी रेस को घेरते हैं.

अलबामा स्थित थिंक टैंक एसपीएलसी के अनुसार, ट्रंप के आने के बाद से खासकर श्वेत सुप्रीमेसी वाले समूहों की लोकप्रियता बढ़ी, लेकिन ये दावा कहीं नहीं है कि ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद दूसरे समुदायों को लेकर हिंसा बढ़ी. हां, आंकड़े ये इशारा जरूर दे रहे हैं कि हेट क्राइम हर साल के साथ बढ़ रहा है. 

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