भारत से फ्रस्ट्रेट क्यों हैं ट्रंप, क्यों दे रहे कोरिया-जापान का उदाहरण? न इंडिया टैरिफ पर डिमांड मान रहा, न बातचीत पर पहल

6 days ago 1

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि वह रूस से तेल की खरीदे न करे. लेकिन भारत इसके लिए राजी नहीं है और उसका साफ कहना है कि अपने हितों की रक्षा के लिए रूसी तेल की खरीद जारी रहेगी. ट्रंप प्रशासन संकेत दे रहा है कि अगर भारत मान जाए तो टैरिफ में रियायत मिल सकती है, लेकिन भारत झुकने को तैयार नहीं है. ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप हताश हैं, क्योंकि न तो भारत तेल खरीद रोक रहा है और न ही बातचीत की टेबल पर आने के लिए पहल कर रहा है.

टैरिफ को लेकर ट्रंप का दोहरा रवैया

डोनाल्ड ट्रंप भारत को बातचीत के लिए राजी करने के लिए जापान-दक्षिण कोरिया का उदाहरण दे रहे हैं. ट्रंप प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद भारत मानने को तैयार नहीं है. ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया और इसके बाद 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ रूस से तेल खरीदने को लेकर लगाया गया है. इस तरह भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाया गया है. ट्रंप का दावा है कि भारत की रूस से तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध को हवा दे रहा है.

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हालांकि भारत ने इन आरोपों को खारिज किया और जंग रोकने में अमेरिका की विफलता को उजागर किया. भारत ने रूस तेल खरीद को लेकर भी अमेरिका पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया और तर्क दिया कि चीन, तुर्की, और यूरोपियन यूनियन भी रूस से तेल खरीद रहे हैं, फिर भी उन पर इतना भारी टैरिफ नहीं लगाया गया. दूसरी ओर अमेरिका लगातार चीन को मोहलत दे रहा है, जबकि भारत पर एक महीने के भीतर की टैरिक की दरों को दोगुना कर दिया गया है.

भारत अपने हितों की रक्षा के लिए अडिग

ट्रंप का कहना है कि भारत के साथ उसे व्यापार घाटा हो रहा है, क्योंकि वह कई अमेरिकी सामानों पर सौ फीसदी तक टैरिफ लगाता है. अमेरिका ने भारत को 'टैरिफ का महाराजा' तक बता दिया है. ट्रंप चाहते हैं कि भारत अपने बाजार को अमेरिकी कृषि, डेयरी, और ऑटोमोबाइल उत्पादों के लिए खोले और टैरिफ को कम करे, लेकिन भारत ने इन क्षेत्रों में अमेरिकी दखल से साफ इनकार कर चुका है.

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति भी ट्रंप की नाराजगी की वजह है, क्योंकि अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए भारत किसी की भी चौधराहट को बर्दाश्त नहीं करता, न ही किसी देश के दबाव में आकर फैसले लेता है. भारत अपने पुराने दोस्त रूस से संबंधों को मजबूत कर रहा है, दूसरी ओर अमेरिकी के कड़े प्रतिद्वंदी चीन से भी रिश्ते अब पटरी पर आ रहे हैं. रूस और ब्रिक्स देशों के साथ भारत की घनिष्टता ट्रंप की बेचैनी की वजह बन चुकी है. भारत ने रूस-यूक्रेन जंग पर तटस्थ रुख अपनाया और रूस से तेल खरीद जारी रखी, जो ट्रंप को रास नहीं आ रहा है.

नोबेल प्राइज की तमन्ना को झटका

इसके अलावा क्रेडिट लेने में सबसे आगे रहने वाले ट्रंप की पोल भारत ने खोल दी. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का श्रेय लिया तो भारत ने उनका झूठ बेनकाब कर दिया. साथ ही ट्रंप की तरफ से मध्यस्थता की पेशकश को भी ठुकरा दिया. भारत शुरू से ही पाकिस्तान के मामले में किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को अस्वीकार करता आया है. इससे ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार पाने के सपने को भी धक्का लगा है.

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ट्रंप ने भारत को व्यापार समझौते के लिए 90 दिन की डेडलाइन दी थी. लेकिन भारत ने इस पर धीमी प्रतिक्रिया दी है. ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर बातचीत को टालने का आरोप लगाया. यही वजह है कि न सिर्फ ट्रंप बल्कि नवारो भी लगातार भारत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं.

भारत के रुख से नाराज ट्रंप ने 2025 में नई दिल्ली में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया. यह कदम भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को कमजोर करता है, खासकर जब भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया वाले क्वाड का अहम सदस्य है.

जापान और दक्षिण कोरिया की मिसाल क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जापान और दक्षिण कोरिया का उदाहरण देते हुए कहा कि जापान और दक्षिण कोरिया अमेरिकी सामानों पर हाई टैरिफ लगाते हैं. उन्होंने भारत पर 100% टैरिफ का आरोप लगाते हुए इन देशों से तुलना की ताकि यह बताए जाए कि भारत भी अमेरिका के साथ गलत व्यापार करता है. ट्रंप ने जापान, दक्षिण कोरिया, और भारत जैसे सहयोगी देशों पर टैरिफ लगाकर दिखाया कि वह किसी भी देश को बख्शने के मूड में नहीं हैं, चाहे वे साझेदार ही क्यों न हों.

ट्रंप ने जापान और दक्षिण कोरिया पर भी 25% टैरिफ लगाया, लेकिन भारत पर अतिरिक्त 25% जुर्माना लगाया गया, जो ट्रंप की भारत के प्रति नाराजगी को साफ दिखाता. जापान और दक्षिण कोरिया क्वाड के सदस्य हैं और इंडो-पैसिफिक में अमेरिका के प्रमुख साझेदार हैं. ट्रंप इन देशों का उदाहरण देकर भारत को यह संदेश देना चाहते हैं कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो भारत को भी कठोर नतीजे भुगतने होंगे. ट्रंप का मानना है कि जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने अमेरिकी बाजार का फायदा उठाया है. इसी कैटेगरी में रखकर वह भारत को भी सजा देने की कोशिश कर रहे हैं.

हड़बड़ी में गड़बड़ी नहीं चाहता भारत

भारत ने ट्रंप की टैरिफ घटाने और बाजार खोलने की मांग को स्वीकार नहीं किया, भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा इसके पीछे का मकसद है. भारत ने कृषि और डेयरी क्षेत्र को संरक्षण देने के लिए सख्त रुख अपनाया है, क्योंकि अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करने से स्थानीय किसानों और उद्योगों को नुकसान हो सकता है. भारत ने इसके बजाय कूटनीतिक बातचीत और वैकल्पिक बाजारों की तलाश को प्राथमिकता दी है.

अमेरिका की आक्रामकता का जवाब भारत शांति और धैर्य के साथ देना चाहता है और इसी वजह से अबतक व्यापार समझौते या टैरिफ पर बातचीत को लेकर कोई बड़ी पहल नहीं की गई है. अमेरिका के साथ जल्दबाजी में किसी फैसले तक पहुंचने से दूरगामी नुकसान हो सकता है. हालांकि सरकार का कहना है कि बातचीत पूरी तरह बंद नहीं हुई है और टैरिफ के असर को कम करने के लिए उचित कदम उठाए जा रहे हैं.

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इस बीच भारत वैकल्पिक बाजार भी तलाश रहा है ताकि टैरिफ के जवाब निकाला जा सके. रणनीति ट्रंप के दबाव को कम करने और भारत की कारोबारी निर्भरता को अमेरिका से हटाकर बाकी देशों की तरफ मोड़ने की कोशिश का हिस्सा है. ट्रंप अक्सर हड़बड़ी में फैसले करते हैं और फिर कई बार अपने फैसलों से पीछे भी हट जाते हैं. पहले उन्होंने भारत पर 20% से कम टैरिफ लगाने के संकेत दिए थे, लेकिन आखिर में 50% टैरिफ लागू कर दिया. लेकिन भारत जल्दबाजी और अपने हितों को किनारे रखकर कोई कदम नहीं उठाना चाहता.

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