भारतीयों के घर में सप्लाई हो रहे पानी में क्या मिला? वैज्ञानिकों का खुलासा

11 hours ago 1

भारत में इतनी तरक्की होने के बाद भी आज भी कई जगहें और इलाके ऐसे हैं जहां लोग नल का पानी सीधे पीते हैं. उन लोगों का मानना है कि नल का पानी सुरक्षित है, लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नई स्टडी इस सोच को बदल सकती है. कोलकाता के जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) और IIT मद्रास के साइंटिस्ट्स ने पहली बार पता लगाया है कि भारत के नल के पानी में बहुत सारे माइक्रोऑर्गेनिज्म मौजूद हैं. इनमें कुछ ऐसे भी हैं जिनमें ऐसे जीन पाए गए हैं जो बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं से बचने की क्षमता देते हैं. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि अभी नल का पानी पीना तुरंत खतरनाक है, लेकिन ये एक बड़ी चेतावनी है. अगर ये 'सुपरबग' जीन फैलते रहे, तो आगे चलकर ऐसी बीमारियां बढ़ सकती हैं जिनका इलाज नॉर्मल दवाओं से करना मुश्किल होगा. 
 
स्टडी में क्या पता लगा? 
साइंटिस्ट्स/रिसर्चर्स ने देश के अलग-अलग शहरों से नल के पानी के सैंपल्स लेकर उनका डीएनए टेस्ट किया. जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, पानी भले ही सेफ्टी मेजर्स पर खरा उतरता है, लेकिन इसमें adeF और ermR जैसे जीन पाए गए हैं. ये वही जीन हैं जो बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं से बचने में मदद करते हैं. ZSI के डॉ. विकास कुमार ने बताया, 'हमने पाया कि साफ दिखने वाले पानी में भी कई प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज्म हैं. ये पहली बार है जब हम ये देख पा रहे हैं कि भारत के सार्वजनिक पिए जाए वाले पानी में सच में क्या मौजूद है.'

कैसे सब में फैल सकते हैं ये बैक्टीरिया?
आपका शरीर थोड़ी मात्रा में नॉर्मल बैक्टीरिया से निपट सकता है. लेकिन जिन माइक्रोऑर्गेनिज्म की पहचान इस स्टडी में हुई है, वो कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों, बुजुर्गों या ऐसे लोगों को जिन्हें पहले से ही कोई बीमारी है, उनके लिए खतरनाक हो सकते हैं. ये समस्या एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) यानी ऐसे बैक्टीरिया जिनपर अब एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हो पाता, उससे जुड़े हैं.

हर साल दुनिया भर में 10 लाख से ज्यादा लोग ऐसे इंफेक्शंस से मरते हैं जिन पर दवाएं काम नहीं करतीं. भारत में आबादी ज्यादा है और दवाओं का इस्तेमाल बहुत आम हो गया है, जिसकी वजह से खतरा और भी बढ़ जाता है. ZSI के डॉ. इंद्रजीत त्यागी ने कहा, 'पानी इंसानों, जानवरों और पर्यावरण तीनों को जोड़ता है. अगर ये जीन पानी के जरिए फैलते हैं, तो वे एक से दूसरे में आसानी से जा सकते हैं. इसलिए इस पर नजर रखना बहुत जरूरी है.'

डीएनए बेस्ड तकनीक ज्यादा असरदार
भारत में पहले से ही जल जीवन मिशन और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पर राष्ट्रीय योजना जैसी योजनाएं चल रही हैं. ये नई रिसर्च दिखाती है कि अब जल सुरक्षा के रिजल्ट्स में सिर्फ कैमिकल्स और बैक्टीरिया ही नहीं, बल्कि जीन लेवल पर निगरानी (genetic monitoring) भी जरूरी है. IIT मद्रास के प्रोफेसर कार्तिक रमन ने कहा, 'पुराने टेस्ट सिर्फ उन बैक्टीरिया को पकड़ते हैं जिन्हें हम पहले से जानते हैं. लेकिन डीएनए बेस्ड तकनीक से हम नए और अज्ञात माइक्रोऑर्गेनिज्म को भी पहचान सकते हैं. ये आने वाली बीमारियों के लिए एक शुरुआती चेतावनी की तरह है.'

क्या आपको घबराना चाहिए?
अब सवाल ये है कि क्या आपको घबराना चाहिए? तो इसका जवाब नहीं है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि फिलहाल वॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम्स अच्छी तरह काम कर रहे हैं, इसलिए नल का पानी तुरंत खतरनाक नहीं है. लेकिन इस स्टडी से पता चलता है कि पानी की सुरक्षा को समय के साथ बदलना और नई तकनीक अपनाना जरूरी है.  

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