महाराष्ट्र में छिड़ी आरक्षण पर रार... कहीं मराठा बनाम ओबीसी की जंग में फंस न जाए बीजेपी?

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महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे पांच दिन से मुंबई के आजाद मैदान में भूख हड़ताल पर हैं. वो मराठा समाज के लिए कुनबी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, जिसे लेकर ओबीसी समुदाय की बेचैनी बढ़ गई है. महाराष्ट्र सरकार के मंत्री छगन भुजबल ने ओबीसी नेताओं के साथ बैठक कर अपने तेवर सख्त कर लिए हैं. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि ओबीसी कोटे में किसी भी जाति को गैरकानूनी तरीके से शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

मनोज जरांगे की मांग से आरक्षण का मुद्दा मराठा बनाम ओबीसी का बन गया है. मनोज जरांगे मराठा समाज को कुनबी जाति में शामिल करके ओबीसी के तहत आरक्षण का लाभ देने की मांग कर रहे हैं, इसके लिए ओबीसी समुदाय के लोग तैयार नहीं हैं. राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ ने साफ शब्दों में चेतावनी दे दी है कि अगर ओबीसी आरक्षण को नुकसान हुआ तो पूरा ओबीसी समाज सड़कों पर उतर जाएगा.

महाराष्ट्र की सियासत की दशा और दिशा मराठा समुदाय ही तय करते रहे हैं तो ओबीसी समुदाय भी कम नहीं है. 2023 से महाराष्ट्र की राजनीति मराठा समुदाय के गुस्से, हताशा और आरक्षण की मांग के इर्द-गिर्द घूमती रही है. मराठा आरक्षण की मांग को फिर से मनोज जरांगे धार दे रहे हैं तो जवाब में ओबीसी समुदाय भी अपनी सियासी एक्सरसाइज शुरू कर चुका है. चुनाव से ठीक पहले मराठा बनाम ओबीसी की लड़ाई बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी का सियासी गेम बिगाड़ सकती है.

मराठा आरक्षण को लेकर जरांगे का आंदोलन

मराठा समुदाय लंबे समय से अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहा है, लेकिन उसे अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. मराठाओं को लगता है कि आरक्षण न मिलने से वे शिक्षा और नौकरी में पिछड़ते जा रहे हैं. मनोज जरांगे एक बार फिर से मराठा आरक्षण की मांग लेकर आंदोलन शुरू कर चुके हैं, वो मराठाओं के लिए कुनबी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, जिससे कि उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सके. मराठा आंदोलन के चलते शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया था.

मनोज जरांगे ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत मराठा कोटे की मांग के लिए जालना में भूख हड़ताल कर दी थी. इसके चलते शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने का रास्ता निकाला, 2023 में शिंदे सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस संदीप शिंदे की अगुआई में एक कमेटी बनाई थी.

महाराष्ट्र में कुनबी समाज ओबीसी का हिस्सा है. आरक्षण कमेटी ने अंग्रेजों के दौर के दस्तावेजों में कुनबी का रेफरेंस तलाशा. हैदराबाद गजट में 58 लाख परिवारों का रिकॉर्ड मिला. इसके आधार पर सरकार मराठाओं को कुनबी सर्टिफिकेट जारी करने लगी. शिंदे ने यह भरोसा दिया कि मराठा आरक्षण के चलते ओबीसी के कोटे पर कोई असर नहीं पड़ेगा. मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण दिया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फीसदी आरक्षण सीमा से अधिक होने के कारण रोक लगा दी थी. शिंदे के आश्वासन के बाद मनोज जरांगे ने 2024 में अपना धरना समाप्त कर दिया था.

मनोज जरांगे ने सख्त तेवर अपनाया

मनोज जरांगे एक साल के बाद दोबारा से मराठा आरक्षण की मांग उठाई है. 29 अगस्त से जरांगे अपने करीब 40 हजार समर्थकों के साथ मुंबई के आजाद मैदान में डेरा जमाए हुए हैं. ऐसे में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मुंबई के आजाद मैदान को मराठा आरक्षण प्रदर्शनकारियों से मंगलवार दोपहर तक खाली कराने का आदेश दिया था. जरांगे ने कहा, "फडणवीस को पुलिस के जरिए लड़कों पर लाठीचार्ज करवाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए. वरना हम देवेंद्र फडणवीस को दिखा देंगे कि मराठा क्या होते हैं."

हालांकि, मराठा आरक्षण के नेतृत्वकर्ता मनोज जरांगे ने बगावती तेवर दिखाते हुए कहा है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक वे मुंबई नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने कहा कि वे सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं. पुलिस प्रदर्शनकारियों से मैदान खाली कराने पहुंची, लेकिन उसे मनोज जरांगे के समर्थकों से टकराव का सामना करना पड़ा. जरांगे ने सीएम फडणवीस को चेतावनी देते हुए कहा कि मैं महाराष्ट्र सरकार और फडणवीस से कहना चाहता हूं कि जब तक हमारी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, हम मुंबई नहीं छोड़ेंगे. इस तरह आरक्षण पर रार छिड़ गया है.

मराठा बनाम ओबीसी की लड़ाई बनी

मनोज जरांगे की मांग के खिलाफ ओबीसी भी लामबंद हो गए हैं. महाराष्ट्र के मंत्री और वरिष्ठ ओबीसी नेता छगन भुजबल ने सोमवार को कहा कि मराठाओं को ओबीसी के कोटे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. यदि ओबीसी समुदाय के लिए तय आरक्षण में कटौती की गई तो लाखों लोग प्रदर्शन करेंगे. इसके अलावा राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के अध्यक्ष बबनराव तायवाडे ने भी धमकी दे डाली है कि अगर ओबीसी आरक्षण को नुकसान पहुंचाया गया, तो पूरा ओबीसी समाज सड़कों पर उतर जाएगा.

भुजबल ने कहा कि ओबीसी के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण में छह फीसदी खानाबदोश जनजातियों के लिए, दो प्रतिशत गोवारी समुदाय के लिए और अन्य छोटे हिस्से विभिन्न समूहों के लिए निर्धारित हैं. इस तरह ओबीसी को 17 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, जिसमें 374 समुदायों के लोग शामिल हैं. ऐसे में अगर और जातियों को इसमें जोड़ा गया, तो यह सरासर अन्याय होगा.

मराठाओं के लिए ओबीसी का दर्जा दिए जाने की मांग भी हो रही है. दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय किसी भी सूरत में मराठों को आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है. इस तरह मराठा बनाम ओबीसी की लड़ाई बन गई है. बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बन गई है. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते सबसे ज्यादा असुरक्षित ओबीसी समाज ही महसूस कर रहा है. ओबीसी नहीं चाहता है कि उसके कोटे का आरक्षण मराठों को दिया जाए. इसके चलते ही ओबीसी और मराठा एक दूसरे के विरोधी बन गए हैं.

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