मोक्ष का साधन, 23 तीर्थों के दर्शन का फल और शिव-पार्वती की अमरकथा... बाबा बर्फानी की महिमा

4 days ago 1

'कंकर-कंकर शंकर' और 'एक लोटा जल- सब समस्या हल' के आध्यात्मिक जयकारों के साथ जुलाई-अगस्त का महीना शिव महिमा में एक और जयघोष जोड़ता है. आषाढ़ का महीना उतरने को होता है और सावन का महीना लगने को... चौमासे के विधान शुरू होने वाले होते हैं और कृषि प्रधान देश में खेती-किसानी के काम भी लगभग रुके ही रहते हैं. लिहाजा ये समय होता है 'शिव ही प्यारे और शिव ही सहारे' का. जब एक तरफ गांवों-गलियों में कांवड़ सजने लगती है तो कई श्रद्धालु शिव के उस परमधाम की यात्रा के लिए बढ़ते हैं जो भले ही कैलास से कुछ नीचे मौजूद है, लेकिन महिमा में उससे कम नहीं है. अमरनाथ नाम के इस प्रसिद्ध तीर्थ की ओर श्रद्धालुओं के जत्थे बढ़ते जाते हैं और कहते जाते हैं, 'जय हो बाबा बर्फानी'.

शिवजी को कैसे मिला बाबा बर्फानी नाम?

बाबा बर्फानी... महादेव शिव को तमाम नामों के साथ ये नाम कैसे मिला होगा? इस सवाल का जवाब उतना ही सरल है, जितने शिव खुद. बर्फ की आकृति में लिंग स्वरूप में प्रगट होने के कारण शिव बाबा बर्फानी कहलाते हैं. बेशक महादेव को यह नाम उनके भक्तों ने अपनी लोकभाषा की सहज बोली में दिया है और इस नाम का कोई पौराणिक आधार भी नहीं मिलता है. क्योंकि वेदों में रुद्र, संहिताओं में ईशान, छंदों में तत्पुरुष, पुराणों में महादेव और देवाधिदेव, और फिर प्रसंगों के आधार पर आशुतोष, नीलकंठ, गंगाधर, नंदीश्वर, पाशुपातेश्वर, केदारेश्वर जैसे तो उनके कई नाम हैं, लेकिन बाबा बर्फानी नाम उन्हें भक्तों से ही मिला है, क्योंकि संस्कृत में बर्फ के लिए हिम शब्द है और शिव के लिए 'हिमेश्वर' जैसा कोई संबोधन कहीं नहीं मिलता. बर्फ शब्द मूलतः फारसी से आया है, जो जमे हुए ठंडे पानी के लिए इस्तेमाल होता है. 

इसके उलट देवी दुर्गा और पार्वती के लिए पुराणों में हिमानी और हिमाद्री शब्द है, जो उन्हें उनके पिता हिमालय से मिला है. फिर भी शिवजी के लिए बाबा बर्फानी शब्द कितना सहज और सरल लगता है, जैसे कि युगों-युगों से उन्हें इसी नाम से पुकारा जाता रहा हो. शिवजी का यह नाम अपने आप में जितनी ऊंचाई लिए हुए है, बाबा बर्फानी का यह धाम अमरनाथ भी उतना ही पवित्र और परमतीर्थ है. शिवजी के इस परमपावन तीर्थ की यात्रा गुरुवार से शुरू हो गई है और पहले जत्थे ने प्राकृतिक तौर पर बनने वाले इस बर्फ के शिवलिंग के दर्शन कर लिए हैं.

Amarnath

क्या है अमरनाथ का महत्व?
शिवमहापुराण में जिक्र आता है कि देवी पार्वती ने महादेव से अमरता का रहस्य पूछा साथ ही पूछा कि मनुष्य के सामान्य कर्म में भी होने वाले पाप के नाश का क्या उपाय है? इस पर भगवान शिव ने कहा कि यह सभी कुछ मनुष्य के अपने कर्मों पर निर्भर करता है और कर्म के आधार पर ही संसार का संतुलन बना रहता है. कर्म के बंधन से सभी बंधे हैं. जब देवी पार्वती ने शिवजी से इसे और विस्तार से जानना चाहा तो महादेव शिव उन्हें एक दिव्य यात्रा पर ले गए. इस रहस्य को बताने से पहले उन्होंने एकांतवास चुना और हिमालय की बर्फ ढंकी कंदराओं के बीच एक निर्जन स्थान पर रहकर उन्होंने देवी पार्वती को पुराण कथाएं सुनाईं और संसार के रहस्यों से भी परिचित कराया. शिवजी द्वारा अमरकथा रहस्य सुनाए जाने के कारण ही इस गुफा का नाम पुराणों में अमरेश्वर तीर्थ पड़ गया जो आगे चलकर अमरनाथ कहलाया. 

कश्मीर का इतिहास और पुराणों से उसका नाता जोड़ने वाले दो प्रसिद्ध ग्रंथ हैं, एक कल्हड़ रचित राजतरंगिणी और दूसरा है नीलमत पुराण. नीलमत पुराण की गिनती उपपुराणों में होती है, जो 18 मुख्य पुराणों से इतर हैं और इनमें पुराणों में आए प्रसंगों और कुछ किरदारों की अलग से साथ ही विस्तार से चर्चा होती है. राजतरंगिणी और नीलमत पुराण दोनों में ही कश्मीर के कई धार्मिक और पौराणिक तीर्थस्थलों का जिक्र होता है, जिनमें अमरनाथ भी मुख्य रूप से शामिल है. 

नीलमत पुराण में आता है विस्तार से जिक्र
पुराणों में नागों का जिक्र कई बार आता है, लेकिन उनके नागवंश का जिक्र मुख्य तौर पर नहीं है, वह सिर्फ हर प्रसंग में प्रसंगवश किरदार के तौर पर सामने आते हैं, लेकिन नीलमत पुराण में नागों का जिक्र मुख्य किरदार के तौर पर आता है, बल्कि वही इसके नायक भी हैं. इसी में एक प्रसंग आता है कि ऋषि कश्यप मैदानी भू भाग के सभी तीर्थों का दर्शन, स्तवन और उनका स्मरण करते हुए उत्तर के पर्वतीय क्षेत्रों की ओर बढ़े. इससे पहले उन्होंने वाराणसी के ज्ञानकूप, प्रयाग के संगम, नैमिषारण्य के चक्र तीर्थ, कनखल तीर्थ, हरिद्वार तीर्थ, गंग सरोवर तीर्थ, पुष्कर तीर्थ समेत आदि कई अन्य तीर्थों का दर्शन किया और उनके जल को अपने कमंडलु में लेकर आगे बढ़े. 

जब वह पुराणों में वर्णित कशीर क्षेत्र पहुंचे, तब उनके आने पर नागों का राजा नील उनके स्वागत के लिए पहुंचा. उसने ऋषि कश्यप को जलोद्भव नामके एक राक्षस के बारे में बताया, जिसने सारे जल को एक सरोवर में सीमित कर कशीर क्षेत्र को उजाड़ बना दिया था. तब ऋषि कश्यप ने जलोद्भव का देवताओं से वध करवाकर जल (यानी कम्) को मुक्त किया और इस तरह कश्यप ऋषि के प्रभाव से कशीर क्षेत्र काश्मीर बन गया. नील नाग ने उन्हें इस पुण्य भूमि में उन सभी स्थलों की यात्रा कराई जो पुराणों मे पवित्र थी और ऋषि ने तीर्थों के जल से पुनः उन्हें स्थापित किया. 

इस तरह वह दोनों अमरेश्वरा गह्ववर (जिसे अमरनाथ गुफा कहते हैं) पहुंचे, जहां उन्हें स्वयंभू शिव के दर्शन हुए और वह अमरनाथ तीर्थ प्रसिद्ध हो गया. नीलमत पुराण में इस वार्तालाप का वर्णन है, जहां नीलनाग बताते हैं कि अमरेश्वर तीर्थ में स्नान बहुत पुण्य देने वाला और बहुत फलदायी है. 

स्वाता तू सवतन्त्रीश्च स्वं स्वतन्त्रांश्च च मानवः।
तथा सवतन्त्राः स्वर्लोके महीयते॥1369॥

मृत्युप महापथं, सवतन्त्रों तथा सुर्यस्तव तीर्थों में स्थान करता। स्वतन्त्रतों में आदर पाता है॥1369॥

मार्गं तु समासाद्य नित्यमस्तेय लोभवर्जितम्।
नानाविधं विनीतात्मा गत्वा चैव विजायते॥1370॥

मार्गों में प्रवेश एकरस (अर्थात् सत्य व धार्मिकता) स्थिरों के चरण का फल प्राप्त होता है। विनीत और निष्ठा के मार्ग में स्वतन्त्र रहते हुए मुक्ति प्राप्त होती है॥1370॥

नियुज्यमानः पुण्यधामाय तु माहेश्वरी।
महादेवस्य पूजनं कर्त्तव्यं यत्नतः सदा॥1371॥

जिस पथिक को माहेश्वरी मार्ग प्राप्त हो महादेव पर्वत का दर्शन करके पुण्य और सम्यक पूजन का फल प्राप्त होता है॥१३७१॥

अमोघं सः फलाद गोक्षीरस्य फलं लभेत्।
तथा पापविनाशाय स्नानं धर्माय कल्पते॥1372॥

जो पथिक अमरनाथ (जिसे सत्त स्वरूप में प्रख्यात किया अमरनाथ तीर्थ) में स्नान करते हैं उन्हें गोक्षीर (गौ दूध) तुल्य पवित्र फल प्राप्त होता है और समस्त पापों का नाश होता है तथा धर्म की सिद्धि होती है॥1372॥


अमरनाथ गुफा में शिव लिंग 3,888 मीटर (12,756 फीट) की ऊंचाई पर 40 मीटर (130 फीट) लंबी गुफा में मौजूद है. वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो यह एक प्राकृतिक स्टैलागमाइट संरचना है. यह स्टैलागमाइट गुफा की छत से गिरने वाली पानी की बूंदों के जमने से बनता है, जो फर्श पर एकत्र होकर बर्फ की संरचना के रूप में ऊपर की ओर बढ़ता है. तो है तो यह प्राकृतिक और वैज्ञानिक घटना, लेकिन वही बात मानो तो ईश्वर न मानो तो पत्थर. अमरनाथ गुफा के इस लिंग का महत्व इतना है कि श्रद्धालु इसे साक्षात ईश्वर ही मानते हैं. 

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ऋषि भृगु ने किए थे दर्शन
एक और पौराणिक आख्यान में वर्णन आता है कि ऋषि भृगु ने इस स्थान की खोज सबसे पहले की थी. वह जल में डूबी घाटी में कई वर्षों की तपस्या करते रहे और जब ऋषि कश्यप ने पर्वत के भूमि को तोड़कर कई छोटी-छोटी नदियों में इस जल को बहाया तो ऋषि भृगु को महादेव के स्फटिक धवल लिंग स्वरूप के दर्शन हुए, उन्हें दर्शन देकर महादेव उनके अनुरोध सूक्ष्म रूप में  वहां भी अपने परिवार समेत निवास करते हैं. इसलिए आज भी महादेव के हिमलिंग के निकट ही पार्वती स्वरूप और गणेश लिंग भी बनते हैं. 

पहलगाम, चंदनबाड़ी और शेषनाग का महत्व
देवी पार्वती को कथा सुनाने के लिए महादेव ने यात्रा के लिए जिस मार्ग को चुना, श्रद्धालुओं की वही मार्ग उनके पदचिह्नों पर चलने के जैसा है और वह उसी से यात्रा करते हैं. 
ऐसा माना जाता है कि शिव ने अपने वाहन नंदी, बैल को सबसे पहले जिस स्थान पर छोड़ा, वह बैलग्राम कहलाया. यही आज पहलगाम है. वह जब आगे बढ़े तो चंद्रवाड़ी में उन्होंने जटाओं से चंद्रदेव को उतारा और विश्राम करने को कहा. आज यह चंदनबाड़ी गांव कहलाता है. फिर वह आगे बढ़े और पहाड़ी सर्पिल रास्ते से ऊपर की ओर चढ़ते गए.

यह रास्ता अनंतनाग है, ऐसा लगता है कि जैसे नाम की अनुरूप ही कभी खत्म नहीं होगा. फिर वह आगे बढ़े तो एक झील के किनारे अपने कंठहार वासुकी नाग को उतारा. यह झील आज भी नागवासुकी कहलाती है. चूंकि अपने शरीर पर धारण सभी अवयवों में नाग ही शेष बचे थे, इसलिए नागवासुकी झील शेषनाग भी कहलाती है. 

अमरनाथ के मार्ग में कितने तीर्थ?
आगे महागुनस पर्वत (महागणेश पर्वत) पर बढ़ने से पहले पुत्र गणेश को वहीं रुकने के लिए कहा. इसके बाद एक स्थान पर उन्होंने सभी पंच तत्वों को खुद से अलग कर दिया. इस स्थान को पंचतरनी कहते हैं. यहां पांच तत्वों के प्रतीक में अलग-अलग दिशा में जाती पांच बहुत छोटी-छोटी नदियां भी बहती हैं. इन्हें पंचगंगा भी कहते हैं, क्योंकि शिवजी ने इसी स्थान पर देवी गंगा को भी जटा से मुक्त किया था और वह पांच धाराओं में विभक्त होकर अलग-अलग तीर्थों का निर्माण करती हैं. 

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इसके बाद शिवजी ने पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया. चूंकि उन्होंने पंचतत्वों को खुद से अलग कर दिया था इसलिए वह ज्योति स्वरूप में संघनित हो गए और हिम में बदल गए. देवी पार्वती ने खुद ही हिम पत्थर का आधार बन गईं और इस तरह शिव-शक्ति एक हो गए. शिव जी ने इसी एकांत स्थान पर देवी को संसार के चक्र, इसके निर्माण और इसकी अमरता का रहस्य बताया था, जिसे सुनकर कबूतरों का एक जोड़ा अमर हो गया. खुद शुकदेव जी ने इस गाथा को उन कबूतरों से सुना और वह भी ब्रह्मज्ञान के अधिकारी हो गए. 

इस तरह पुराणों में वर्णित अमरेश्वर, अमरनाथ बन गया. शिवजी इसके प्रधान देवता बने और ऋषि कश्यप के कमंडल से पहुंचा कई तीर्थों का जल इसे उन सभी के बराबर पवित्र और पुण्य बना देता है. श्रद्धालुओं में अमरनाथ के बाबा बर्फानी के दर्शन की मान्यता इसीलिए है, क्योंकि सिर्फ उनके ही दर्शन भर से चारों दिशाओं में मौजूद सभी शिवतीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है. इसलिए तो कहते हैं, भूखे को अन्न, प्यासे को पानी, जय हो बाबा बर्फानी

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