ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन गाजा के भोजन वितरण स्थल पर सैकड़ों लोगों को भूख यहां लेकर आई थी. अचानक हुए स्टेन ग्रेनेड के हमले से अफरातफरी मच गई. धमाके का शोर थमा तो धुंएं का गुबार, घायलों की चीखों से पूरा माहौल बदल गया. ये तस्वीर हमले के ठीक बाद की है जिसमें एक महिला अपने घायल बच्चे को गधा गाड़ी में लेकर कहीं भाग जाना चाह रही है, शायद अस्पताल या शायद ऐसी दुनिया में जहां वो इस खूनी जंग का अर्थ भी न समझे. गाजा-इजरायल युद्ध ने बच्चों के स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाला है, जिसमें कुपोषण, बीमारियां और मानसिक आघात शामिल हैं. साफ पानी और खाना तो छोड़िए, हरेक को इलाज भी मयस्सर नहीं है. (AP)
तस्वीर में दिख रहा एक बच्चा हमले के बाद फूट-फूटकर रोता नजर आ रहा है. आंखों में लुढ़कते आंसू इस जंग में किसने क्या खोया, क्या पाया जैसे सवालों का जवाब देते हैं. उसके ठीक बगल में विलाप करते हुए एक आदमी को कोई ढ़ांढस बंधा रहा है. इस दर्द और अपनों के खोने का खालीपन शायद ही कोई भर पाए. विस्थापन और परिवार से बिछड़ने की इस पीड़ा ने बच्चों की मानसिक स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अक्टूबर 2023 से मई 2025 तक कम से कम 52,829 फिलिस्तीनी मारे गए, जिनमें 18,000 से अधिक बच्चे थे. (AP)
घुंघराले बालों ये बच्चा अभी अभी हमले वाली जगह से बचाकर लाया गया है. बारूद के धुंए में नहाए इस बच्चे की आंखों में मानो कई सवाल हैं, ये सवाल इंसानियत के उन ठेकेदारों से हैं जो युद्ध को महानता से जोड़ते हैं. कानों में गूंज रही धमाके की आवाजें पता नहीं इस मासूम को कब तक याद रहने वाली हैं. फिलहाल हमले में घायल बच्चे को सुरक्षित स्थान पर ले जाता हुआ बचावकर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए दिख रहा है. ये तस्वीर आज के आधुनिक युग में युद्ध की विभीषिका की सटीक गवाही देती है. (AP)
गाजा में इजराइली हमले के बाद घायल हुई एक नन्ही बच्ची को गोद में उठाकर बैपटिस्ट अस्पताल लाया गया. पांच-छह साल की ये मासूम दर्द से कराह रही थी, आंखों में खौफ और शरीर पर मलबे के ज़ख्म थे. माना जा रहा है कि ये बच्ची उस इमारत में थी, जो हमले में ढह गई. अक्टूबर 2023 से जारी गाजा-इजराइल संघर्ष में सबसे भारी कीमत उन बच्चों ने चुकाई है, जिनका इस युद्ध से कोई लेना-देना नहीं, सिवाय इसके कि वो गलत वक्त में गलत जगह पैदा हुए. (AFP)
खून से सनी फ्रॉक, कांपती घायल उंगलियां और आंखों में डरा हुआ सन्नाटा... दक्षिणी गाजा पट्टी के खान यूनिस स्थित नासेर अस्पताल में इजरायली हमले में घायल एक नन्ही बच्ची का इलाज किया जा रहा है. हाथ में वीगो लगा है, फ्रॉक उतारी जा रही है ताकि खून से सने कपड़ों की जगह उसे इलाज के लिए तैयार किया जा सके. ये बच्ची उन सैकड़ों विस्थापित फिलिस्तीनियों में से एक है, जो हालिया हमले में घायल हुए. वहीं, इजरायली सेना का कहना है कि उसने गाजा में अपना सैन्य अभियान और तेज कर दिया है. (AFP)
गाजा शहर के शिफा अस्पताल की ओर एक व्यक्ति घायल बच्चे को गोद में लिए दौड़ता चला जा रहा है. इजरायली हमले में जख्मी यह मासूम न तो युद्ध को समझता है, न इसकी वजह जानता है पर सबसे भारी कीमत वही चुका रहा है. गाजा में अब तक सैकड़ों बच्चे मारे जा चुके हैं और हजारों घायल हैं, जिनका बचपन मलबे, खून और सायरन की आवाजों में दब कर रह गया है. (AP)
गाजा शहर में इजरायली हमले के बाद मलबे से निकाले गए एक फिलिस्तीनी बच्चे का शव, लाल कंबल में लिपटा पड़ा है. मिट्टी से सने छोटे-छोटे पैर इस खामोश लाश की आखिरी गवाही हैं कि यह बच्चा भी कभी जिंदा था, कभी खेलता था, कभी मां को पुकारता था. इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष के बीच अब तक हजारों बच्चे मारे जा चुके हैं. UNICEF ने गाजा को बच्चों के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक स्थान बताया है. (AFP)
इस तस्वीर में जितना शोर मासूम आंखों से उठ रहा है, उतनी ही खामोशी दिल में उतर रही है. गाजा पट्टी में हुए इजरायली हमले के बाद सिर पर सरमाया खो चुके एक परिवार के सदस्य महिलाएं और बच्चे ग़म, घबराहट और सदमे में हैं. मां अपना चेहरा हाथों में छुपाकर रो रही है, बच्चे भूख, भय और असुरक्षा के साए में खड़े हैं. किसी का घर गया, किसी के सिर से पिता का साया. युद्ध ने इन मासूमों से उनका बचपन छीन लिया. अब उनके हिस्से सिर्फ मलबा, सन्नाटा और आंसू बचे हैं. (AP)
गाजा पट्टी के अल-ज़वायदेह में अल-ऐमावी परिवार के घर का मलबा… और उस पर खड़ी एक नन्ही सी बच्ची तस्वीर में नजर आ रही है. इज़रायली हवाई हमलों ने उसका घर छीन लिया, शायद परिवार भी. अब वो वहीं खड़ी है...खंडहरों पर, खामोश आंखों के साथ. UNICEF के अनुसार गाजा में सिर्फ दो महीनों में जितने बच्चे मारे गए, वो संख्या पिछले तीन वर्षों में दुनिया भर के युद्धों में मारे गए बच्चों से भी ज्यादा है. (AP)
गाजा शहर पर ढलती शाम और टूटे शहर के ऊपर डूबता हुआ सूरज... ये सिर्फ दिन का अंत नहीं, एक और रक्तरंजित दिन का मातम है. ये सूरज नहीं मानो लहूलुहान शाम ढल रही हो. इजरायली सैन्य कार्रवाइयों, हमास के हमलों और मानवीय सहायता पर लगे प्रतिबंधों ने यहां के बच्चों को भूख, बीमारी और हिंसा के नरक में धकेल दिया है. संयुक्त राष्ट्र, यूनिसेफ और अन्य संगठनों ने इसे ‘मानवता के लिए त्रासदी’ बताया है. (AP)