उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अपने पहले कार्यकाल से ही एनडीए के साथी दलों के बहुत मधुर संबंध नहीं रहे. 2022 में दूसरी बार सत्ता के आने के बाद ये संबंध और खराब होते गए. 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली कम सीटों का एक बड़ा कारण यह भी माना गया कि सहयोगी दलों के साथ सीएम का रवैया ठीक न रहने से जनता में गलत संदेश गया. लोकसभा चुनावों के बाद लगातार कई मौके ऐसे आए जब उत्तर प्रदेश में एनडीए के भीतर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के बीच बहुत हद तक तनाव दिखा.
जाहिर है कि इससे सरकार और पार्टी की प्रदेश में छीछालेदर हो रही थी. पर शायद अब योगी सरकार सतर्क हो गई है. योगी आदित्यनाथ ने पिछले कुछ महीनों से अपने सहयोगी दलों के साथ मेल-मिलाप की ऐसी कोशिशें की हैं जो लोगों को आश्चर्यजनक लगी हैं. जाहिर है राजनीतिक गलियारों में ये सवाल उठने लगे हैं कि आखिर योगी के साथ ऐसी क्या बात हो गई कि सहयोगी दलों के लिए उनका नजरिया बदला बदला लग रहा है.
1-अखिलेश के पीडीए से निपटने के लिए एनडीए के सहयोगी जरूरी
रविवार को एक कार्यक्रम अपराधमुक्त एवं घुमंतू जनजाति दिवस (Denotified and Nomadic Tribes Day) के उपलक्ष्य में था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन समुदायों के लिए कई योजनाओं की घोषणाएं की और सहयोगी दलों के साथ तनाव की खबरों के बीच एनडीए भागीदारों के साथ एकजुटता भी दिखाई.
आदित्यनाथ ने इन समुदायों के लिए आवास योजना, एक कल्याण बोर्ड की स्थापना और जमीन उपलब्ध कराने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि मैं मंत्री असीम अरुण से अनुरोध करूंगा कि वे इन जनजातियों के लिए भूमि और आवास उपलब्ध कराएं. सबसे महत्वपूर्ण रहा कि निषाद पार्टी प्रमुख और प्रदेश मंत्री संजय निषाद भी यहां मौजूद रहे .हाल ही में निषाद ने भाजपा से नाता तोड़ने की बात कही थी. पर मंच पर मुख्यमंत्री के साथ मौजूद निषाद ने यूपी और केंद्र की एनडीए सरकारों की जमकर प्रशंसा की.
मुख्यमंत्री का धन्यवाद करते हुए उन्होंने कहा, जो जनजातियां कभी पुलिस से भागा करती थीं, वे आज भाजपा सरकार की कोशिशों से पुलिस में भर्ती हो रही हैं. मुख्यमंत्री ने इन जनजातियों का सर्वे कराने और लाभ सुनिश्चित करने का आदेश दिया है. यही असली पिछड़ा, दलित, आदिवासी (पीडीए) है.
दरअसल योगी को यह बात समझ में आ गई है कि अखिलेश यादव के पीडीए फार्मूला को ध्वस्त करना है तो सहयोगी दलो की हौसलाअफजाई करनी होगी. योगी की घोषणाओं से उत्तर प्रदेश की करीब 29 समुदायों को लाभ मिलने की संभावना है, जिनकी संख्या अधिकारियों के अनुसार लगभग 1.5 करोड़ है. इनमें से 14 समुदाय अनुसूचित जाति (SC) के अंतर्गत हैं, नौ अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समूह हैं और छह अन्य श्रेणी में आते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट की मानें तो ये समुदाय पूरे प्रदेश में फैले हुए हैं और कहा जाता है कि वे यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से लगभग 130–150 सीटों पर प्रभाव रखते हैं. उदाहरण के लिए, बनजारा समुदाय, जो ओबीसी श्रेणी में आता है, आगरा, फर्रुखाबाद, हरदोई, मैनपुरी, मेरठ, सीतापुर, उन्नाव और इटावा में केंद्रित है. निषाद समुदाय की कुछ उपजातियां, जो मुख्य रूप से निषाद पार्टी का समर्थन करती हैं, बस्ती और सिद्धार्थनगर में केंद्रित हैं, जबकि ओबीसी मल्लाह समुदाय अलीगढ़, बलिया, इटावा, बुलंदशहर, गोरखपुर, मिर्जापुर, मथुरा, सोनभद्र और महाराजगंज में प्रभावशाली माना जाता है.
अनुसूचित जाति (SC) श्रेणी के अंतर्गत आने वाले समुदायों में मुसहरों को बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर और वाराणसी जैसे क्षेत्रों में प्रभावशाली माना जाता है, जबकि नट समुदाय का प्रभुत्व इलाहाबाद, बिजनौर, फतेहपुर, झांसी, मुरादाबाद और मुजफ्फरनगर में देखा जाता है.
2- आगामी उपचुनाव और पंचायत चुनाव
उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव और 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव नजदीक हैं. ये चुनाव बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के लिए अपनी साख को पुनर्स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है. जाहिर है कि बिना सहयोगी दलों का साथ लिए अखिलेश यादव और उनकी पार्टी से मुकाबला संभव नहीं होने वाला है. लेकिन इनमें हार उनकी स्थिति को और कमजोर कर सकती है.
अगर उपचुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा, तो यह योगी के नेतृत्व पर और सवाल उठाएगा. सहयोगी दलों की नाराजगी इस स्थिति को और जटिल बना सकती है, क्योंकि निषाद पार्टी और अपना दल (एस) जैसे दल अपने समुदायों के बीच प्रभाव रखते हैं, जो उपचुनावों में निर्णायक हो सकते हैं.
3- सहयोगी दलों की नाराजगी से ओबीसी और दलित समुदायों में जनाधार खोने का डर
पिछले कुछ दिनों से एनडीए के सहयोगी दलों, विशेष रूप से निषाद पार्टी और अपना दल (सोनेलाल) ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के साथ संबंधों पर असंतोष जता रहे थे. निषाद पार्टी के प्रमुख और राज्य मंत्री संजय निषाद ने हाल ही में बीजेपी को गठबंधन तोड़ने की चुनौती दी थी. उन्होंने गरीबों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई की आलोचना भी की थी. निषाद समुदाय, जो मल्लाह और अन्य नाविक जातियों का प्रतिनिधित्व करता है, उत्तर प्रदेश में करीब 1.5 करोड़ की आबादी के साथ एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है.
इसी तरह अपना दल (सोनेलाल) ने भी सरकार के कुछ फैसलों पर नाराजगी जताई थी. खासकर नौकरियों में आरक्षण को लेकर. केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने योगी को पत्र लिखकर शिकायत की थी. इसके अलावा, अपना दल (एस) के भीतर एक बागी गुट ने अपना मोर्चा बनाकर पार्टी को कमजोर करने की कोशिश की, जिसके जवाब में अनुप्रिया पटेल ने योगी से बागी नेताओं को सरकारी पदों से हटाने की मांग की थी.
ये सहयोगी दल बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे ओबीसी और दलित समुदायों के बीच अपनी पैठ रखते हैं. इन दलों का समर्थन खोना बीजेपी के लिए वोट बैंक के नुकसान का खतरा पैदा करता है, खासकर जब विपक्षी दल जैसे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस लोकसभा चुनावों के बाद आक्रामक रुख अपना रहे हैं.
4- हिंदुत्व की छवि और राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा
योगी आदित्यनाथ को बीजेपी के प्रमुख हिंदुत्व चेहरों में से एक माना जाता है, और उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा भी किसी से छिपी नहीं है. भारतीय जनता पार्टी में भी उन्हें भविष्य के नेता के रूप में माना जा रहा है. लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सफलता न मिलने और गठबंधन में तनाव ने उनकी देश के भविष्य के नेता बनने के लिए शुभ संकेत नहीं दे रहा था.अगर गठबंधन टूटता या सहयोगी दल बीजेपी से दूरी बनाते हैं, तो यह योगी की राष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा सकता था. जाहिर है कि सहयोगी दलों को एकजुट रखना योगी की राजनीतिक विश्वसनीयता और भविष्य की महत्वाकांक्षाओं के लिए जरूरी हो गया था.
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