रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत पर उठ रही अमेरिकी आलोचनाओं के बीच एक बड़ी और प्रभावशाली यहूदी संस्था ने साफ कहा है कि भारत इस युद्ध का जिम्मेदार नहीं है. अमेरिकन ज्यूइश कमेटी (AJC) ने ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों को बेतुका और परेशान करने वाला बताया. इसी के साथ संस्था ने कहा कि अब समय आ गया है कि अमेरिका-भारत रिश्तों को 'रीसेट' किया जाए.
एजेंसी के अनुसार, दरअसल, अमेरिका के कुछ अधिकारियों ने हाल ही में भारत की रूस से तेल खरीद पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह कदम राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की वॉर मशीन को मदद दे रहा है. ट्रंप प्रशासन के पूर्व व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भी बयान दिया और कहा कि शांति की राह नई दिल्ली से होकर गुजरती है.
इसी पर आपत्ति जताते हुए AJC ने कहा,
'भारत ऊर्जा की ज़रूरतों के चलते रूस से तेल खरीद रहा है, लेकिन वह पुतिन के युद्ध अपराधों का जिम्मेदार नहीं है. भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है और बड़ी ताकतों की प्रतिस्पर्धा में अहम भूमिका निभाता है.'
रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया की राजनीति, कूटनीति और तेल बाजार को बदल दिया है. पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए. लेकिन इस दौरान भारत ने रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदना जारी रखा. यही मुद्दा अब भारत-अमेरिका रिश्तों में विवाद का कारण बन रहा है.
हाल ही में, अमेरिका के कुछ अधिकारियों ने भारत की आलोचना करते हुए कहा कि रूस से तेल खरीदकर भारत 'पुतिन की वॉर मशीन' की मदद कर रहा है. यहां तक कि ट्रंप प्रशासन के एक सीनियर ऑफिसर पीटर नवारो ने इस वॉर को 'मोदी का युद्ध' तक कह डाला. इन बयानों ने भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी हलचल मचा दी.
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अहम अमेरिकी संस्था अमेरिकन ज्यूइश कमेटी (AJC) ने इन आलोचनाओं को 'गलत और परेशान करने वाला' बताया है. कमेटी ने कहा कि भारत किसी भी हाल में यूक्रेन युद्ध का जिम्मेदार नहीं है और अमेरिका-भारत रिश्तों में 'रीसेट' की जरूरत है.
... तो आखिर यह पूरा विवाद है क्या?
... अमेरिका भारत पर क्यों दबाव डाल रहा है?
... और भारत की स्थिति क्या है?
अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद दुनिया के देशों से अपील की कि वे मॉस्को से तेल और गैस न खरीदें. यूरोप ने भी धीरे-धीरे रूस से एनर्जी खरीद कम की.
लेकिन भारत जैसे देश, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी तेल खपत वाली अर्थव्यवस्था है, ने रूस से डिस्काउंट पर कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया. रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर बन गया. अमेरिका को यह रास नहीं आया. उनका कहना है कि भारत की खरीदारी से रूस को पैसे मिल रहे हैं और वो पैसा यूक्रेन पर युद्ध में इस्तेमाल हो रहा है.
यानी अमेरिकी अधिकारियों की नजर में भारत सीधे-सीधे 'पुतिन की मदद' कर रहा है.
AJC क्यों भड़का?
- अमेरिकन ज्यूइश कमेटी (AJC) अमेरिका की एक पुरानी और प्रभावशाली थिंक-टैंक और एडवोकेसी ग्रुप है. इसने कहा कि
- भारत जिम्मेदार नहीं है. युद्ध की शुरुआत रूस ने की है, भारत ने नहीं.
- भारत लोकतांत्रिक देश है. अमेरिका का करीबी साझेदार है, दुश्मन नहीं.
- भारत की ऊर्जा जरूरतें असली हैं. इतनी बड़ी आबादी वाला देश अगर सस्ता तेल लेता है तो इसे समझा जाना चाहिए. कमेटी ने साफ कहा कि भारत की आलोचना करना अमेरिका-भारत रिश्तों के लिए ठीक नहीं है.
पीटर नवारो का विवादित बयान
पीटर नवारो, जो ट्रंप प्रशासन में व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइजर रहे हैं, उन्होंने हाल ही में कहा कि यह युद्ध आंशिक रूप से मोदी का युद्ध है. शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर जाता है.
उनके इस बयान को भारत विरोधी और बेहद अपमानजनक माना गया. अमेरिकी ज्यूइश कमेटी ने इसे 'scurrilous charge' यानी बेबुनियाद आरोप करार दिया.
- भारत ने पहले ही साफ किया है कि तेल खरीद हमारी जरूरत है. भारत 85% तेल आयात करता है. अगर सस्ता तेल रूस से नहीं खरीदा जाएगा तो महंगाई बढ़ेगी, गरीबों पर बोझ पड़ेगा.
- हम अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं तोड़ रहे. रूस से तेल खरीदने पर कोई वैश्विक प्रतिबंध नहीं है. अमेरिका और यूरोप के अपने कारोबारी हित हैं, तो भारत भी अपने हित देखेगा.
- भारत रूस-यूक्रेन युद्ध का पक्षकार नहीं है. भारत ने युद्ध शुरू नहीं किया. भारत बार-बार युद्धविराम और शांति की अपील करता रहा है.
अमेरिका में डबल स्टैंडर्ड का सवाल
AJC और कई विश्लेषक कहते हैं कि अमेरिका भारत की आलोचना करता है, लेकिन चीन पर उतना दबाव नहीं डालता. जबकि रूस से सबसे ज्यादा तेल तो चीन ही खरीदता है.
फिर भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है? क्या ये राजनीतिक वजहों से है?
ट्रंप के टैरिफ और विवाद
- यह विवाद सिर्फ तेल तक सीमित नहीं है. ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25% टैरिफ लगाए.
- रूस से तेल खरीद पर भी 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया.
- इसमें 25% पारस्परिक शुल्क (Reciprocal Tariff) है और 25% अतिरिक्त शुल्क (Additional Tariff on Russian Oil Purchases) है.
दरअसल, ट्रंप ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि अगर भारत रूसी तेल खरीदता है, तो अमेरिका भारतीय सामान पर 25% का अतिरिक्त शुल्क और लगा देगा. इसका मतलब, भारत पर कुल मिलाकर 50% तक टैरिफ की बात कही. भारत ने इसे 'अनुचित और अस्वीकार्य' बताया. अब अमेरिकी अदालत ने भी ट्रंप के टैरिफ को गैरकानूनी करार दिया है. यानी खुद अमेरिका के भीतर इस पर मतभेद है.
आगे की राह: रीसेट की जरूरत
AJC संस्था के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका दोनों एक-दूसरे के लिए बेहद अहम साझेदार हैं. अमेरिका-भारत संबंधों को पुनर्स्थापित करने की जरूरत है. ऐसे में ऊर्जा विवाद को रिश्तों पर हावी होने देना नुकसानदेह होगा.
भारत की आलोचना करके अमेरिका न तो रूस को रोक पाएगा और न ही युद्ध खत्म होगा, बल्कि इससे भारत जैसे सहयोगी देश दूर हो सकते हैं. अमेरिकन ज्यूइश कमेटी की आवाज यह बताती है कि अब अमेरिका के भीतर भी भारत की आलोचना पर सवाल उठ रहे हैं. भारत की स्थिति साफ है - वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों से समझौता नहीं कर सकता. और यही असली चुनौती है कि अमेरिका इस हकीकत को कब तक स्वीकार करता है.
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